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World Polio Day : काश! हम भी जंग जीत जाते,चाहत तो मुझमें भी थी लेकिन...लाचार हूं

World Polio Day. विश्व पोलियो दिवस पर पोलियो पीडि़तों का दर्द छलका आया। उन्‍होंने जो कहा वह सुनकर आपकी आंखेंं छलक पड़ेगी।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Thu, 24 Oct 2019 12:49 PM (IST)Updated: Thu, 24 Oct 2019 12:49 PM (IST)
World Polio Day : काश! हम भी जंग जीत जाते,चाहत तो मुझमें भी थी लेकिन...लाचार हूं
World Polio Day : काश! हम भी जंग जीत जाते,चाहत तो मुझमें भी थी लेकिन...लाचार हूं

जमशेदपुर,अमित तिवारी। World Polio Day भारत पोलियो रोग से मुक्त जरूर हुआ है, लेकिन इनकी जंग अधूरी है। सिदगोड़ा निवासी काजल राय (43) की उम्र जब पांच साल थी तभी वह पोलियो की चपेट में आ गए थे। उनके बाएं पैर ने काम करना बंद कर दिया। दैनिक जागरण से वह अपनी पीड़ा बयां कर रहे थे कि उनकी आंखें भर आती हैं। कहा ईश्वर ने उनका मानवाधिकार छीन लिया है। ठीक न होने वाली बीमारी पोलियो से जंग लड़ते-लड़ते उनकी जिंदगी कट जाएगी। 

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इसी तरह, बारीडीह निवासी सपन माझी (32) में हौसले की कमी नहीं है। उन्होंने इंटर तक की पढ़ाई भी की है, लेकिन पैर से दिव्यांग होने की वजह से लाचार हैं। वह चाह कर भी कुछ नहीं कर सकते। उनकी उम्र जब चार साल की थी तभी वह पोलियो की चपेट में आ गए थे। कहते हैं काश, उनकी बीमारी ठीक हो जाती। इसके बाद वह भी देश के लिए कुछ कर पाता। सपन को क्रिकेटर बनने का बहुत शौक था, लेकिन व दिव्यांग हैं। वह कहते है कि जब भी क्रिकेट मैच होता तो वह देखना नहीं भूलते। सपन फिलहाल कृत्रिम पैर लगाकर किसी तरह जिंदगी जीने को मजबूर हैं।

देवेंद्र की भी कुछ ऐसी ही कहानी

देवेंद्र कुमार पांडे।

कुछ ऐसी ही कहनी देवेंद्र कुमार पांडे की है। छह साल की उम्र में उनके पैर में अचानक से झनझनाहट हुई और वह पोलियो की चपेट में आ गए। इसके बाद से उनके एक पैर ने काम करना बंद कर दिया। इसके बाद जब उनकी उम्र 22 साल की हुई तो परिजनों ने उन्हें बैसाखी खरीद कर दी। फिलहाल वह भी कृत्रिम पैर लगाकर जिंदगी काट रहे हैं।

क्या है पोलियो

पोलियो एक संक्रामक बीमारी है, जो वायरस के कारण होती है। यह वायरस गुदा और मुंह के रास्ते तंत्रिका तंत्र पर हमला करता है। इसके शुरुआती लक्षण हैं, बुखार, थकान, सिरदर्द, उल्टी, गर्दन में अकडऩ और तमाम अंगों में दर्द होना। औसतन 200 संक्रमण में से एक संक्रमण पक्षाघात के रूप में सामने आता है, जो सामान्यत: पैरों पर असर करता है। पक्षाघात के शिकार हुए औसतन दस मरीजों में से एक मरीज मर जाता है। पोलियो का सबसे ज्यादा असर पांच साल से कम उम्र के बच्चों पर होता है।

भारत में 13 जनवरी 2011 को मिला था आखिरी केस

भारत में पोलियो का आखिरी मरीज 13 जनवरी 2011 में मिला था। वह वाइल्ड पोलियो वायरस टाइप-1 केस पश्चिम बंगाल के हावड़ा का था। हावड़ा के शुभारारा गांव, पंचला ब्लॉक की पांच साल की रुक्शा शाह को पोलियो का संक्रमण हुआ था। संक्रमण का नतीजा यह हुआ कि उसके बायें पैर के मुकाबले दाहिना पैर काफी पतला और कमजोर हो गया। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने 27 मार्च 2014 में भारत को पोलियो मुक्त घोषित किया। 


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