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Chaibasa News: वीर किशुन मुर्मू के वंशज पिथो मुर्मू जेपी आंदोलन में गये थे जेल, आज जी रहे गुमनाम जिंदगी

शहीद के वंशज जेपी आंदोलन के आंदोलनकारी होने के बावजूद 64 वर्ष होने के बाद भी पेंशन के लिए तरस रहे हैं। हमारे घर तक पहुंचने वाली सड़क बरसात में चलने लायक नहीं रहती है। सरकार से एक आवास दिया गया है लेकिन वह भी अधूरा है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sun, 05 Dec 2021 05:55 PM (IST)Updated: Sun, 05 Dec 2021 05:55 PM (IST)
Chaibasa News: वीर किशुन मुर्मू के वंशज पिथो मुर्मू जेपी आंदोलन में गये थे जेल, आज जी रहे गुमनाम जिंदगी
शहीद वीर किशुन मुर्मू के प्रपौत्र पिथो मुर्मू। दैनिक जागरण

मो. तकी, चाईबासा : जिनके रगों में स्वतंत्रता सेनानियों का खून हो वह अन्याय के विरुद्ध हमेशा खड़ा होता है। तत्कालीन राजा अभिराम सिंह एवं ब्रिटिश सेना के विरुद्ध 1847 से 1853 ई. तक वीरतापूर्वक लड़ाई लड़ने वाले वीर किशुन मुर्मू के प्रपौत्र पिथो मुर्मू  जेपी आंदोलन में भी भाग लेकर 10 माह तक जेल में रह चुके हैं। इस संबंध में जानकारी देते हुए शहीद किशून के वंशज पिथो मुर्मू ने कहा कि 1974-75 में वे बोकारो स्टील प्लांट में स्थायी नौकरी करते थे। इसी दौरान वह 15 दिन की छुट्टी लेकर वह अपने घर लौटे थे। कादे मांझी के नेतृत्व में जेपी आंदोलन इस क्षेत्र में चल रहा था। हम लोग भी आंदोलन में भाग लेने के लिए आदित्यपुर पहुंच गये।

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पुलिस को पता चल गया कि सभा करने के लिए कई लोग गांव से पहुंचे हैं। इसके बाद पुलिस ने मेरे साथ 15-20 लोगों को पकड़ कर साकची जेल में भेज दिया। वहां कुछ दिन रहने के बाद सभी को गया जेल में शिफ्ट कर दिया गया। 10 तक जेल में रहने के बाद रिहा होकर लौटे तो बोकारो स्टील प्लांट में नौकरी जा चुकी थी। घर लौट कर खेती किसानी शुरू कर दी। उन्होंने कहा कि वर्तमान समय में जेपी आंदोलन के कोल्हान में मात्र तीन लोग बचे हैं। जिसमें से पंचु टुडू व सावना सोरेन जीवित हैं जिन्हें सरकार की ओर से पेंशन दिया जा रहा है। जबकि मुझे आज तक कोई सुविधा और पेंशन नहीं दी गयी। सबसे बड़े अफसोस की बात यह है कि आम आदमी को सरकार 60 वर्ष पूरा होने पर वृद्धा पेंशन देती है। लेकिन हम शहीद के वंशज, जेपी आंदोलन के आंदोलनकारी होने के बावजूद 64 वर्ष होने के बाद भी पेंशन के लिए तरस रहे हैं। हमारे घर तक पहुंचने वाली सड़क बरसात में चलने लायक नहीं रहती है। सरकार से एक आवास दिया गया है लेकिन वह भी अधूरा है। पीने के पानी के लिए पड़ोस के निजी चापाकल पर निर्भर रहते हैं। रोजगार का कोई साधन नहीं रहने के कारण बैल चराने को मजबूर हैं। यह शहीद के वंशज के साथ एक विबंडना ही कहा जायेगा।


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