Mustard oil Price: अब भूल जाइए 100 रुपये लीटर सरसों तेल, ये है खास वजह
धीरे-धीरे सभी खाद्य पदार्थों के दाम गिर रहे हैं लेकिन सरसों तेल का भाव 145 रुपये प्रति लीटर से कम होने का नाम नहीं ले रहा है। इसे लेकर हर आदमी परेशान है कि जब सभी चीजों के दाम गिर रहे हैं तो सरसों तेल के क्यों नहीं।
जमशेदपुर, जासं। लॉकडाउन खुलने के बाद धीरे-धीरे सभी खाद्य पदार्थों के दाम गिर रहे हैं, लेकिन सरसों तेल का भाव 145 रुपये प्रति लीटर से कम होने का नाम नहीं ले रहा है। इसे लेकर हर आदमी परेशान है कि जब सभी चीजों के दाम गिर रहे हैं, तो इसे क्या हो गया। कुछ तो अब भी इस उम्मीद में बैठे हैं कि सरसों तेल का दाम 100 रुपये लीटर से नीचे आएगा। वास्तव में ऐसा नहीं होने वाला है।
परसुडीह स्थित कृषि उत्पादन बाजार समिति के थोक कारोबारियों का कहना है कि अब सरसों या रिफाइंड तेल 100 रुपये से नीचे नहीं आने वाला है। गत वर्ष 24 मार्च में जब कोरोना का लॉकडाउन शुरू हुआ था, तो बाजार में सरसों तेल 90-95 रुपये लीटर बिक रहा था। इसके बाद जब मजदूर घर लौटने लगे तो राजस्थान व आगरा समेत उत्तर प्रदेश की तमाम तेल मिलों में उत्पादन बंद हो गया था। कुछ चल भी रहे थे तो मजदूरों की कमी से सीमित उत्पादन हो रहा था। इससे एकाएक उत्पादन व आपूर्ति बाधित हो गई, जिससे सरसों तेल की कीमत में एकबारगी उछाल आया। 120-125 से 150 रुपये प्रति लीटर तेल मिलने लगा। इसी दौरान बड़े कारोबारियों ने सरकार पर सरसों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) बढ़ाने का दबाव बनाया। इसके बाद सरसों का समर्थन मूल्य 58 रुपये किलो और रबी सीजन में 46.50 रुपये प्रति किलो हो गया। एक किलो सरसों तेल के लिए तीन किलो सरसों की आवश्यकता होती है। इस लिहाज से सरसों तेल का मूल्य 150 रुपये के आसपास ही रहने की संभावना है। मुनाफे की बात तो दूर इसमें पेराई खर्र्च, ढुलाई और परिवहन आदि का खर्च भी शामिल होता है। कारोबारियों का कहना है कि आने वाले दिनों में तेल के भाव और चढ़ सकते हैं, क्योंकि अंतरराष्ट्रीय बाजार में क्रूड आयल का भाव गिरने का नाम नहीं ले रहा है।
चावल कारोबारी भी परेशान
परसुडीह मंडी के चावल कारोबारियों की अलग समस्या है। उनका कहना है कि इन दिनों चावल की बिक्री काफी घट गई है, क्योंकि सबसे ज्यादा जो चावल बिकता है, उसी क्वालिटी का चावल सरकार जनवितरण प्रणाली से दे रही है। एक रुपये में यह चावल 30 रुपये वाले चावल का मुकाबला कर रहा है। कार्डधारक ही ये चावल दुकानों में बेच दे रहे हैं, क्योंकि सरकार उन्हें आवश्यकता से अधिक चावल दे रही है। अब कार्डधारक ही वह काम कर रहे हैं, जो कभी बड़े कारोबारी अवैध कारोबार करते थे। सरकार ने जनवितरण प्रणाली की व्यवस्था तो पारदर्शी बना दी है, जिससे बड़े पैमाने पर अवैध कारोबार रुका है।