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नमो देव्यै-महा देव्यै : ज्ञान की गंगा बहा रहीं निभा, शिक्षा की ज्योति जला रहीं

निभा मिश्रा की पहचान समाजसेवी के रूप में हैं। वह रोटरी व इनर व्हील क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़कर शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही हैं। कदमा निवासी निभा ने मुहिम वर्ष 2000 में कदमा से ही की जहां बाल कल्याण विद्या मंदिर शुरू किया।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sun, 10 Oct 2021 05:42 PM (IST)Updated: Sun, 10 Oct 2021 05:42 PM (IST)
नमो देव्यै-महा देव्यै : ज्ञान की गंगा बहा रहीं निभा, शिक्षा की ज्योति जला रहीं
स्कंदकुमार की माता का स्वरूप ज्ञान, ध्यान से जुड़ा है।

वीरेंद्र ओझा, जमशेदपुर । शहर में निभा मिश्रा की पहचान समाजसेवी के रूप में हैं। वह रोटरी व इनर व्हील क्लब सहित कई सामाजिक संस्थाओं से जुड़कर शिक्षा के क्षेत्र में काम कर रही हैं। कदमा निवासी निभा ने इसकी मुहिम वर्ष 2000 में कदमा से ही की, जहां इन्होंने पारडी रोड पर बाल कल्याण विद्या मंदिर शुरू किया। यहां आसपास के आउटहाउस में रहने वाले लगभग 200 बच्चे गुणवत्तापूर्ण शिक्षा के लिए नियमित रूप से पढ़ते थे।

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कोरोना के बाद अब इनकी संख्या 130 तक हो गई है। फिलहाल सातवीं तक के बच्चे हैं, लेकिन यदि दूसरी कक्षाओं के बच्चे आ गए तो उन्हें भी पढ़ाया जाता है। मुख्य उद्देश्य इन बच्चों को स्कूली पढ़ाई के अलावा नैतिक मूल्यों और रोजगारपरक शिक्षा देना है। निभा बताती हैं कि मैं इस स्कूल को बढ़ाने में तन मन धन से जुटी रहती हूं। पढ़ाने से लेकर प्रबंधन और आर्थिक मदद तक, जो भी स्कूल काे चाहिए, करती हूं। यह स्कूल मेरे दिल के बहुत करीब है। टाटा स्टील की मदद से एक कमरा बनवाया, तो पांच कंप्यूटर भी दिलाया। इससे बच्चों को कंप्यूटर क्लास कराया जाता है। वह बताती हैं कि गत वर्ष मैं इनर व्हील क्लब ऑफ जमशेदपुर वेस्ट की अध्यक्ष थी, तो क्लब के माध्यम से भी स्कूल में काफी संसाधन जुटाए। गत वर्ष ही सोनारी में एक घर के गैराज में गुरुकुल खोला, जो जनता बस्ती के पास है। यहां भी जनता बस्ती के बच्चे पढ़ते हैं। गत वर्ष कोरोना के दौरान, जब स्कूल पूरी तरह बंद थे, गरीब बच्चों के लिए ऑनलाइन क्लास कराया।

बारीडीह बस्ती समेत आसपास के बच्चों को मोबाइल फोन पर अंग्रेजी और गणित की शिक्षा देती थी। कोरोना के दौरान भी वहां गई, कुछ बच्चों को मोबाइल फोन भी दिया, ताकि इसी बहाने उनमें पढ़ने की रुचि जाग्रत रहे। ऐसा हुआ भी। करीब 40 बच्चे नियमित रूप से ऑनलाइन क्लास में शामिल होते थे।

पति ने किया प्रेरित

आमतौर पर यही कहा जाता है कि हर सफल पुरुष के पीछे एक स्त्री का हाथ होता है, लेकिन यहां मामला अलग है। निभा बताती हैं कि मैं सिंदरी की रहने वाली हूं। पिताजी वहां फर्टिलाइजर कंपनी में अधिकारी थे। 1991 में मेरी शादी हुई तो जमशेदपुर आई। पति पीके मिश्रा टाटा स्टील में अधिकारी हैं। उन्होंने ही मुझे कहा कि किसी स्कूल में पढ़ाने से अच्छा है कि ऐसे बच्चों को पढ़ाओ, जिन्हें अच्छे शिक्षक नहीं मिल पाते। बस यहीं से मैंने ठान लिया कि जहां तक संभव होगा, ज्यादा से ज्यादा गरीब बच्चों को अच्छी शिक्षा दूंगी।

10 अक्टूबर : पंचम, मां स्कंदमाताः स्कंदकुमार की माता का स्वरूप ज्ञान, ध्यान से जुड़ा है। ज्ञान और विवेक के प्रयोग से सफलता के नित नए सोपान चढ़तीं नारियां मां स्कंदमाता का ही स्वरूप तो हैं। प्रगति के निमित्त संतानों का ज्ञानवर्द्धन करने व सही राह दिखाने वाली मां का भी स्वरूप है यह।


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