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धन्यवाद प्रधानमंत्री जी ! ‘कैशलेस’ न होता तो भूखे मर जाते

महाराष्ट्र से बंगाल के लिए निकले साइकिल सवार मजदूरों ने सफर के 13वें दिन सुनाई आपबीती। बताया कि कठिन हालात में भीम एप पेटीएम व फोन-पे जैसे एप से पेमेंट कर सफर आसान हुआ।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Thu, 21 May 2020 12:23 PM (IST)Updated: Thu, 21 May 2020 02:51 PM (IST)
धन्यवाद प्रधानमंत्री जी ! ‘कैशलेस’ न होता तो भूखे मर जाते
धन्यवाद प्रधानमंत्री जी ! ‘कैशलेस’ न होता तो भूखे मर जाते

घाटशिला (पूर्वी सिंहभूम), मंतोष मंडल। कठिन यात्र कर घरों को लौटते प्रवासी श्रमिक प्रधानमंत्री मोदी को धन्यवाद देते हुए कहते हैं, पीएम के कैशलेस अभियान का महत्व संकट काल में अच्छे से समझ में आ गया। हम यदि कैशलेस पेमेंट की सुविधा से संपन्न न होते तो कठिन सफर में भूखे मर जाते..।

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महाराष्ट्र के थाणो से बंगाल के मेदिनीपुर जा रहे साइकिल सवार पांच प्रवासी मजदूरों का एक जत्था झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला में पेड़ के नीचे थकान मिटा रहा था, जिसने अपनी आपबीती सुनाते हुए उक्त बात कही। 13 दिनों की साइकिल यात्रा के बावजूद मंजिल फिलहाल दूर है। 12 हजार रुपये खर्च हो चुके हैं। इन श्रमिकों ने बताया कि जब परदेस से घर के लिए रवाना हुए थे तो जेब में नकदी नहीं थी। मीलों लंबे सफर में सहारा थे तो गूगल पे, भीम एप, पेटीएम और फोन-पे जैसे कैश ट्रांसफर करने वाले एप। रास्ते में जहां भी खाना-पानी खरीदने की जरूरत पड़ी, इन्हीं के बूते खरीदारी की। कान्हू साव, चंदन साव, चंदन जाना, प्रशांत गिरी और जितेन्द्र ने बताया कि लॉकडाउन में यह यात्र दुखदाई तो रही, जिसे शायद जिंदगी भर न भूल पाएं, पैरों में पड़े छाले ताउम्र यादों में चुभते रहेंगे। लेकिन एक बात की राहत है कि सफर में भूखे मरने से बच गए। इसके लिए प्रधानमंत्री जी को धन्यवाद..। उनके कैशलेस अभियान का महत्व भी इस सफर में बखूब समझ में आया।

तब समझ में नहीं आई थी बात

प्रशांत गिरी ने कहा, जब प्रधानमंत्री ने कैशलेस अभियान की बात पहली बार की थी तब लगा था कि कैशलेस होने से गरीबों को क्या फायदा? लेकिन अब सोचते हैं कि यह न होता तो हमारा क्या हाल होता। वाकई यह सफर में काम आया। जरूरत पड़ी तो परिजनों को फोन किया, उन्होंने भी पेटीएम पर तत्काल पैसे डाल दिए। इससे लॉकडाउन के दौरान थाणो में और फिर वहां से निकलने पर रास्ते में कोई तकलीफ नहीं हुई।पूरी रात चलाते साइकिल, दिन में करते आराम

चंदन साव ने बताया कि रात में ही सफर तय करते हैं क्योंकि दिन में कड़ी धूप में साइकिल चलाना संभव नहीं होता। पूरी रात साइकिल चलाते हैं और दिन भर किसी पेड़ के नीचे सोते हैं। यहां आकर पता चला कि पास में प्रशासन ने श्रमिकों के लिए भोजन-पानी का प्रबंध कर रखा है, तो राहत मिली। जितेंद्र ने अपने सूजे हुए पैर दिखाते हुए कहा, सोचा नहीं था कि ऐसे दिन भी देखने पड़ेंगे। खैर चंद रोज और लगेंगे घर पहुंच जाएंगे। सब ठीक हो जाएगा। मां और पिता जी इंतजार कर रहे होंगे.। साइकिल लेकर क्यों निकल पड़े, वहीं रुक जाते? इस पर चंदन ने कहा, कोई चारा नहीं था। हालात ऐसे बने कि घर जाने का जुनून सवार हो गया। वहां रुक नहीं सकते थे क्योंकि काम-धंधे सब बंद हो गए थे। इसीलिए इतने लंबे सफर पर निकलने के लिए मजबूर हो गए।

होटल मालिक ने बंद कर दी मदद

महाराष्ट्र में क्या काम करते थे? इस पर कान्हू साव बताने लगे कि सभी पिछले 10 सालों से वहां होटल में काम करते थे। पिछली बार चार जनवरी को पहुंचे थे। लॉकडाउन में होटल बंद हो गया। होटल मालिक ने मदद बंद कर दी। कहा, जाओ एकाउंट में पैसा डाल दूंगा। मोबाइल के एप पर रोज चेक कर रहा हूं, लेकिन अब तक बकाया पैसा नहीं आया है। महाराष्ट्र से घाटशिला तक आने में 12 हजार रुपये खर्च हुए। सारे खर्च मोबाइल के एप से ही किए। खैर, अब घर जाकर थोड़े दिन आराम कर विचार करेंगे कि आगे क्या करना है।


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