Gandhi Jayanti 2019: Mahatma Gandhi का जमशेदपुर से था खास रिश्ता, यहां खोला था यूनियन कार्यालय Jamshedpur news
MGandhi Jayanti 2019. महात्मा गांधी का जमशेदपुर से खास रिश्ता था। उन्होंने यहां यूनियन कार्यालय खोला था और मजदूरों के लिए लड़ाई लड़ी थी।
जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। Gandhi Jayanti 2019 राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के लौहनगरी यानी जमशेदपुर में तीन बार कदम पड़े थे। वे पहली बार 1917 में, दूसरी बार 1925 व तीसरी बार 1934 में आए। पहली बार तो वे वर्धा से चंपारण जाने के क्रम में थोड़ी देर रूके थे, लेकिन शहर भ्रमण का मौका नहीं निकाल पाए थे।
दूसरी बार उनका आगमन बड़ी विकट स्थिति में हुआ। टाटा स्टील में मजदूरों की हड़ताल चल रही थी। यहां के मजदूरों के आग्रह पर दीनबंधु सीएफ एंड्रयूज भी आए, लेकिन उन्हें भी हड़ताल खत्म कराने में सफलता नहीं मिली। एंड्रयूज ने तब गांधीजी से यहां आने का आग्रह किया। गांधीजी आए, दीनबंधु सीएफ एंड्रयूज समेत कुछ और मजदूर नेताओं के साथ टाटा स्टील के जेनरल मैनेजर सर जहांगीर घांदी से वार्ता की और सम्मानजनक समझौते के साथ दूसरे दिन ही हड़ताल टूट गई।
लेबर एसोसिएशन की रखी नींव
गांधीजी ने उसी दिन कंपनी प्रबंधन से एक क्वार्टर देने को कहा, जहां मजदूर यूनियन का कार्यालय खोला जा सके। कंपनी ने बिष्टुपुर के आउटर सर्किल रो्रड स्थित एक नंबर क्वार्टर उपलब्ध करा दिया। आनन-फानन में टेबुल-कुर्सी, अलमारी, फाइल समेत कार्यालय के लिए आवश्यक सभी सामग्री कंपनी प्रबंधन ने उपलब्ध करा दिए। गांधीजी करीब तीन घंटे तक इस क्वार्टर में रहे और टाटा के मजदूरों से बात की। उन्होंने उसी दिन लेबर एसोसिएशन की नींव रखी, जिसका नाम बाद में टाटा वर्कर्स यूनियन हुआ।
क्वार्टर में रहते कीर्तन सिंह
फिलहाल इस क्वार्टर में टाटा स्टील के आरएमएम (रॉ मैटेरियल मैनेजमेंट) विभाग के कर्मचारी सरदार कीर्तन सिंह रहते हैं। वह बताते हैं कि इस क्वार्टर में पहले टाटा वर्कर्स यूनियन के पूर्व संयुक्त सचिव बीपी रामा रहते थे। उनकी सेवानिवृत्ति के बाद तीन वर्ष पहले उन्हें यह क्वार्टर मिला, लेकिन उन्हें यह नहीं पता था कि जिस घर में वह रहने जा रहे हैं, यह ऐतिहासिक महत्व भी रखता है। उन्हें रामाजी ने ही बताया था कि इस घर में गांधीजी ठहरे थे। बीपी रामा बताते इस क्वार्टर में वर्ष 1994 से रह रहे थे। रामा बताते हैं कि उन्हें इस घर में आज तक कभी कोई परेशानी नहीं हुई, बल्कि सुकून का अहसास हुआ। शायद इस घर पर गांधीजी की विशेष कृपा है। उनकी इच्छा है कि कंपनी व यूनियन को इस क्वार्टर को गांधी की स्मृति में सुरक्षित रखना चाहिए। आखिर शहर के लिए यह क्वार्टर किसी धरोहर से कम नहीं है। फिलहाल बिष्टुपुर स्थित के. रोड में टाटा वर्कर्स यूनियन का भव्य कार्यालय है।
सर एडवर्ड ग्रेट के कहने पर आए जमशेदपुर
अविस्मरणीय बताते हुए कहा कि इस कंपनी को देखने की इच्छा उनके मन में 1917 से ही थी। जब वे चंपारण में निलहे किसानों के लिए संघर्ष कर रहे थे, तो अंग्रेज शासक सर एडवर्ड ग्रेट ने उन्हें सलाह दी थी कि एक टाटा स्टील का कारखाना और शहर देखे बिना उन्हें बिहार से नहीं जाना चाहिए। गांधी ने कहा कि यहां उन्हें जिस चीज ने सबसे ज्यादा प्रभावित किया, वह भारत के विभिन्न प्रदेशों से आए भिन्न-भिन्न धर्म, जाति व संप्रदाय के लोगों का मिल-जुलकर रहना है। सचमुच टाटा ने इस शहर में राष्ट्रीय एकता व सौहार्द का जीवंत उदाहरण प्रस्तुत किया है। 1925 में जब गांधीजी जमशेदपुर आए तो उनके साथ पंडित जवाहरलाल नेहरू भी थे। शहर प्रवास के दौरान गांधीजी टाटा कंपनी के डायरेक्टर्स बंगलो में रूके, जहां उन्होंने आरडी टाटा (जेआरडी टाटा के पिता) से मुलाकात की।
हरिजन कोष के लिए दान
गांधीजी 1934 में पूरे भारत में घूम-घूमकर हरिजन आंदोलन के लिए कोष संग्रह कर रहे थे। उसी क्रम में गांधीजी जमशेदपुर भी आए और करीब दस घंटे यहां रहे। चार मई 1934 को रांची से सड़क मार्ग द्वारा उड़ीसा जाने के क्रम में वे यहां पहुंचे थे। उस समय उनके साथ डा. राजेंद्र प्रसाद भी थे। इस बार गांधीजी टिस्को इंस्टीट्यूट में ठहरे और वहीं से विभिन्न बस्तियों में गए। मीरा बेन भीड़ में जाकर कोष संग्रह कर रही थीं, जिसमें गांधीजी को जमशेदपुर के नागरिकों से लगभग पांच हजार रुपये दान के रूप में मिले।