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यहां पूरा गांव समझदार, कोई नहीं पीता शराब; इस तरह हुआ ये मुमक‍िन

पूर्वी सिंहभूम के चार गांवों ने शराब के खिलाफ मशाल जला रखी है। शराब पीने पर जुर्माने का प्रावधान है। आपस में झगड़े भी नहीं होते। युवा विभिन्न क्षेत्रों में सफल हो रहे हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Mon, 10 Feb 2020 01:18 PM (IST)Updated: Tue, 11 Feb 2020 09:53 AM (IST)
यहां पूरा गांव समझदार, कोई नहीं पीता शराब; इस तरह हुआ ये मुमक‍िन
यहां पूरा गांव समझदार, कोई नहीं पीता शराब; इस तरह हुआ ये मुमक‍िन

जमशेदपुर, दिलीप कुमार । Liquor ban in four villages of Jharkhand झारखंड के पूर्वी सिंहभूम के कई गांव ऐसे हैं जहां के लोगों ने जागरूकता का परिचय देते हुए अरसे से शराब के खिलाफ मुहिम छेड़ रखी है। इसका सकारात्‍मक असर खासतौर से देखा जा रहा है। 

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 शराब से लोगों के स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान से लेकर घरों के बर्बाद होने तक के खतरों के प्रति इन गांवों के लोग इतने सचेत रहे हैं कि गांववालों ने आपसी सहमति के आधार पर दशकों से यहां शराब पर पूरी तरह पाबंदी लगा रखी है। शराब का सेवन करने पर यहां पंचायत ने दंड का भी प्रावधान कर रखा है। इतना ही नहीं कुछ गांवों में धार्मिक भावना इतनी प्रबल है कि वहां के लोगों ने आज तक शराब को हाथ नहीं लगाया है। सुशिक्षित समाज की नजीर पेश कर रहे ये गांव समाज को नई राह दिखा रहे हैं। 

शराब से किया तौबा तो बदल गई देवघर की तस्वीर

देवघर गांव स्थित पंडित रघुनाथ मुर्मू मेमोरियल क्लब।

जमशेदपुर शहर से 10 किलोमीटर दूर देवघर गांव में गांववालों ने 25 साल से शराबबंदी लागू कर रखी है। इस गांव में संताल, भूमिज और मुंडा जाति के लोग निवास करते हैं। गांव की जनसंख्या करीब एक हजार है। अधिकतर लोग किसान हैं। सालों पहले शराब से लोगों की बर्बादी देखकर गांव के पंडित रघुनाथ मुर्मू मेमोरियल क्लब और बिदु चांदान महिला समिति, सरस्वती एभेन गांवता और हिर्ला जाहेर आयो महिला समिति ने संयुक्त रूप से बैठक कर गांव में शराब बेचने व पीने पर प्रतिबंध लगा दिया। पंचायत के पूर्व सरपंच संग्राम सोरेन कहते हैं कि पहले गांव में शराब हावी थी। इसके बाद ग्रामीणों ने सामूहिक निर्णय लेकर शराबबंदी लागू कर दी। ग्राम प्रधान सिमल मुर्मू कहते हैं कि 1992 से यहां शराब पर प्रतिबंध है। देवघर निवासी वृधान सोरेन ने बताया कि शराबबंदी के बाद गांव का विकास तीव्र गति से होने लगा। युवा शिक्षा के साथ खेल के क्षेत्र में आगे जाने लगे। विभिन्न विभागों में युवाओं ने अपनी प्रतिभा के दम पर नौकरी हासिल की। सभी खुशहाल हैं।

लखाईडीह गांव में किसी ने अबतक नहीं पी शराब

डुमरिया प्रखंड क्षेत्र का लखाईडीह गांव।

नक्सल प्रभावित डुमरिया प्रखंड क्षेत्र का लखाईडीह गांव करीब 100 साल पुराना है। 60 घर और 300 आबादी है। दावा है कि यहां के ग्रामीणों ने अबतक शराब नहीं पी है। वजह, यहां प्रत्येक वर्ष बुद्ध पूर्णिमा पर बिहार, झारखंड, ओडिशा, पश्चिम बंगाल और असम के सरना धर्मावलंबी जुटते हैं। रीति रिवाज के अनुसार पूजा पाठ करते हैं। इनसे प्रेरित होकर धार्मिक भावना के तहत यहां के लोग शराब नहीं छूते हैं। गांव के किसी भी व्यक्ति पर थाने में मामला भी दर्ज नहीं है। 

दामूडीह में 30 साल से शराबबंदी, बेचने व पीने पर जुर्माना

शंकरदा पंचायत स्थित दामूडीह गांव।

पोटका प्रखंड की शंकरदा पंचायत स्थित दामूडीह गांव में 30 वर्ष से शराबबंदी है। यहां शराब पीने पर पांच हजार व बेचने पर 10 हजार जुर्माना देने का भी प्रावधान है। 800 आबादी वाले इस गांव में महतो व आदिवासी परिवार मिलकर रहते हैं। शराबबंदी के बाद से इस गांव में अब तक पुलिस नहीं पहुंची है। ग्रामीण लखन हांसदा, बाबूलाल हांसदा व बादल हेंब्रम जैसे कई युवा राज्य और राष्ट्रीय स्तर की फुटबॉल प्रतियोगिता में प्रतिभा दिखा चुके हैं। दामूडीह के ग्रामीण शिबू मांझी कहते हैं कि गांव में झगड़ा नहीं होता है। 

तिलकागढ़ में 20 साल से बंद है शराब व जुआ

दामूडीह के ग्रामीण शिबू मांझी। 

जमशेदपुर प्रखंड की पूर्वी हलुदबनी पंचायत में बसा छोटा का गांव तिलकागढ़ पूरी तरह बाबा तिलका मांझी के आदर्शों पर चलता है। शराब और हडिय़ा पीने व बेचने पर पाबंदी है। 1976 में महज 10 परिवार इस गांव में थे। आज करीब तीन हजार आबादी है। यहां 100 प्रतिशत आदिवासी समुदाय के लोगों की है। गांव बसने के साथ ही बाबा तिलका मांझी कमेटी का गठन हुआ था। आज भी कमेटी सक्रिय है। गांव में जुआ, शराब, मुर्गा पाड़ा (मुर्गे की लड़ाई) से लेकर गलत आदतों पर पूरी तरह से प्रतिबंध है। 

 

लखाईडीह के ग्रामप्रधान कान्‍हू। 


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