हाथ में लोहे की पतली छड़ी और डोर से बंधे चुबंक, जानिए लोग क्यों कहते हैं इस बुजुर्ग को मैगनेट मैन
68 वर्षीय लखन विश्वकर्मा सुबह होते ही हाथ में लोहे की पतली छड़ी एवं डोर से बंधे चुबंक लेकर निकल पड़ते हैं अभियान पर। लक्ष्य होता है सड़क पर बिखरे लोहे के नुकीले वस्तुओं को चुनना।
जमशेदपुर, जेएनएन। जी हां ! स्वच्छता के प्रतीक बन गए हैं लखन बाबू। लोग उनके जज्बे को अब सलाम करने लगे हैं। लखन बाबू का पूरा नाम लखन विश्वकर्मा है परंतु लोग उन्हें मैगनेट मैन, चुबंक बाबा और गांव के गांधी नाम से भी जानने लगे हैं। दरअसल, उनका काम ही उनकी पहचान है।
झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के जमशेदपुर प्रखंड़ के पूर्वी कालीमाटी पंचायत के सोपोडेरा शांतिनगर निवासी 68 वर्षीय लखन विश्वकर्मा सुबह होते ही हाथ में लोहे की पतली छड़ी एवं डोर से बंधे चुबंक लेकर निकल पड़ते हैं अपने अभियान पर। लक्ष्य होता है सड़क पर बिखरे कील, लोहे के नुकीले वस्तुओं को चुंबक के सहारे चुनना और सड़क पर से उसे हटाना ताकि किसी वाहन या साइकिल चालक को आवागमन में विघ्न न पड़े। उनके वाहन या साइकिल का चक्का पंक्चर न हो। इतना ही नहीं खेल के मैदान, ग्रामीण हाट - बाजार, चौक - चौराहा समेत गलियों एवं सड़कों पर के कूड़ा -कर्कट, प्लास्टिक, पॉलीथीन आदि को चुनकर एकत्र करते हैं और उसे माचिस से आग लगाकर जलाते भी हैं ताकि पर्यावरण स्वच्छ रहे। सफाई का यह सिलसिला निरंतर जारी रखे हुए हैं लखन बाबू।
रेलवे से हैं सेवानिवृत्त
लखन बाबू रेलवे से सेवानिवृत्त हैं। भरा - पूरा परिवार है उनका। चार बेटियां ज्योति, डॉली, गुड़िया एवं मिसू है तथा एक बेटा दीपक है जो वर्तमान में अहमदाबाद की एक एमएनसी कंपनी में बतौर प्रबंधक कार्यरत है। लखन बाबू जातीय संगठन विश्वकर्मा समाज से भी जुड़े हैं। वर्तमान में वे विश्वकर्मा समाज के प्रदेश सचिव का दायित्व निभा रहे हैं। इससे पूर्व वो जमशेदपुर में विश्वकर्मा समाज के महासचिव भी रह चुके हैं
कौन, क्या कहता है इससे कोई फर्क नहीं
बकौल लखन बाबू: मेरे इस काम को लेकर कौन क्या कहता है, हंसता है या मजाक उड़ाता है इससे मेरे काम को कोई फर्क नहीं पड़ता। हर इंसान का समाज के प्रति कुछ दायित्व होता है। हम अपने उसी दायित्व का ईमानदारी से पालन कर रहे हैं। मुझे इसी में सुकून मिलता है। सच भी है इंसान को वही काम करना चाहिए जिसमें उसे सुकून मिले। सच मानिए मुझे सफाई के इस कार्य से ही सुकून मिलता है।
शर्मिंदगी कैसी
जब लखन बाबू से पूछा गया कि आपको इस काम से कोई शर्मिंदगी नहीं होती है? तो उन्होंने कहा कि शर्मिदगी या संकोच कैसी ? जरा सोचिए एक वो हैं जो कचरा फेंक गए, एक हम हैं जो कचरे को साफ कर रहे हैं। अब आप ही बताइए किसका काम शर्मिंदगी वाला है ?
प्रस्तुति: दीपक कुमार