नमो देव्यै, महा देव्यैः लक्ष्य को पाने के लिए कठिनतम तप करने से नहीं हिचकती कोमलिका
देवी के नौ रूप में कोमलिका मां ब्रह्मचारिणी की परिचायक है जो अपने लक्ष्य को पाने के लिए कठिनतम तप करने से नहीं हिचकती और और तमाम बाधाओं के बाद भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करके ही रहती है। 2019 में उसने मैड्रिड में अपना पहला व्यक्तिगत खिताब जीता।
जितेंद्र सिंह, जमशेदपुर। अंतरराष्ट्रीय तीरंदाजी फलक पर अमिट पहचान बना चुकी जमशेदपुर की कोमलिका बारी कभी फुटबॉल खिलाड़ी बनना चाहती थी। एक दिन यूं ही टाटा स्टील के तीरंदाजी ग्राउंड में निशाना साधी तो उसे इस खेल से प्यार हो गया। सड़क किनारे होटल चलाने वाले पिता के पास इतने पैसे नहीं थे कि तीर-कमान खरीद सके। लेकिन कोमलिका की जिद थी दुनिया जीतने की। तभी तो साइकिल से रोजाना 18 किलोमीटर की दूरी तय कर जेआरडी टाटा स्पोर्ट्स कांप्लेक्स अभ्यास करने पहुंचती थी।
इस जंग में उन्हें टाटा तीरंदाजी अकादमी का साथ मिला। वह विश्व यूथ तीरंदाजी चैंपियनशिप में तीन बार चैंपियन रह चुकी है। इसके साथ ही इसी साल विश्व कप तीरंदाजी में दो स्वर्ण जीत चुकी है। देवी के नौ रूप में कोमलिका मां ब्रह्मचारिणी की परिचायक है जो अपने लक्ष्य को पाने के लिए कठिनतम तप करने से नहीं हिचकती और और तमाम बाधाओं के बाद भी अपने लक्ष्य को प्राप्त करके ही रहती है।
2009 में जीता पहला विश्व तीरंदाजी खिताब
19 वर्षीय इस तीरंदाज ने 2019 में उसने मैड्रिड में यूथ वर्ल्ड्स तीरंदाजी चैंपियनशिप में अपना पहला व्यक्तिगत खिताब जीता। उनके नाम टीम इवेंट का दो स्वर्ण पदक भी हैं। लेकिन हाल ही में वह टोक्यो ओलंपिक के लिए क्वालीफाई नहीं कर पाई। लेकिन जीवट की प्रतिमूर्ति कोमलिका बारी असफलता से घबराती नहीं, बल्कि इसे सफलता का सोपान बना लेती है। वह कहती है, हारने पर दर्द होता है, लेकिन सकारात्मक पक्ष यह है कि इसके बाद ध्यान केंद्रित करने में मदद मिलती है। दबाव में शांत रहना जरूरी होता है। अगर हमें सफल होना है तो दबाव को पहले से बेहतर तरीके से संभालने की जरूरत होती है। यही हमारे सामने बड़ा काम है। 2009 में दीपिका कुमारी के विश्व चैम्पियन बनने के बाद टाटा तीरंदाजी अकादमी की अंडर-18 वर्ग में 17 साल की खिलाड़ी कोमालिका विश्व चैम्पियन बनने वाली भारत की दूसरी तीरंदाज बनी थीं।
मां-पिता के संघर्ष से ली प्रेरणा
कोमलिका बारी ने मां-पिता के संघर्ष से प्रेरणा ली। कोमलिका की मां लक्ष्मी बारी आंगनबाड़ी सेविका है, जबकि पिता घनश्याम बारी होटल चलाते हैं। कोमालिका की मां चाहती थीं कि उनकी बेटी तीरंदाजी को अपने करियर बनाएं और इस क्षेत्र में उनका नाम रोशन करें। अपने चचेरे भाई और मां से प्रेरित होकर कोमलिका ने 12 साल की उम्र में पहली बार धनुष-बाण उठाया था। उसने अपने चचेरे भाई के नक्शेकदम पर चलते हुए तीरंदाजी को अपनाया और उनकी इस यात्रा में उसकी मां ने साथ दिया। उसकी मां एक आंगनबाड़ी सेविका है। शुरुआत में वह बिरसानगर के एक स्थानीय तीरंदाजी कोच को जानती थी और उसे तुरंत अपने पास ले गई ताकि वह तीरंदाजी सीख सके।
''बांस धनुष'' से शुरू की ट्रेनिंग
यह 2012 में था कि बारी ने तीरंदाजी की रस्सियों को खींचना शुरू किया, लेकिन उन्हें शुरुआती चुनौतियों का सामना करना पड़ा। उनका परिवार एक अदद धनुष-बाण का खर्च उठाने तक सक्षम नहीं था।
पिता ने हमेशा दिया साथ
कभी चाय की दुकान तो कभी एलआइसी एजेंट का काम करने वाले कोमालिका के पिता ने अपनी बेटी के सपने को पूरा करने के लिए अपना घर तक बेच दिया था। उनके पिता ने दो-तीन लाख रुपयों में आने वाला एक धनुष खरीदने के लिए अपना घर बेच दिया था। उनका सपना था कि उनकी बेटी ओलंपिक में भारत का प्रतिनिधित्व करें। वहीं स्वर्ण पदक जीतने वाली कोमालिका के घर में कभी टेलीविजन तक नहीं हुआ करता था। पूरी दुनिया ने कोमालिका को गोल्डन गर्ल बनते टीवी पर देखा पर खुद उनके माता-पिता इस सुनहरे पल को नहीं देख पाए थे।
अपने सपनों का पीछा करने के लिए 18 किलोमीटर साइकिल चलाई
अपना प्रशिक्षण शुरू करने के चार साल बाद, बारी ने जमशेदपुर में टाटा तीरंदाजी अकादमी में प्रवेश किया। अकादमी में दीपिका कुमारी और अतनु दास जैसे तीरंदाज का साथ मिला। द्रोणाचार्य पुरस्कार प्राप्त कोच धर्मेंद्र तिवारी और पूर्णिमा महतो ने उन्हें तराशना शुरू किया। लेकिन भारत में प्रमुख तीरंदाजी अकादमी की यात्रा उनके लिए आसान नहीं था क्योंकि उन्हें अपने बिरसानगर स्थित घर से जेआरडी टाटा स्पोर्ट्स कांप्लेक्स तक पहुंचने के लिए रोजाना 18 किमी साइकिल चलानी पड़ती थी। कोमलिका बारी ने बताया, टीएए में आने के बाद जी जान से तीरंदाजी पर ही ध्यान केंद्रित करना शुरू किया। मुझे पता चला कि शांति, धैर्य और विभिन्न परिस्थितियों को कैसे संभालना है।
रिकर्व कैडेट विश्व चैंपियन बनने वाले दूसरे भारतीय
टीएए में प्रशिक्षण के तीन साल के भीतर कोमलिका बारी विश्व तीरंदाजी युवा और कैडेट चैम्पियनशिप 2019 में महिला कैडेट रिकर्व श्रेणी में स्वर्ण पदक हासिल कर विश्व चैंपियन बन गई। यह उपलब्धि हासिल करने वाली भारत की दूसरी तीरंदाज थी। इसके पहले यह कारनामा दीपिका कुमारी कर चुकी थी। तीरंदाजी की शुरुआत उन्होंने 2012 में आइएसडब्ल्यूपी तीरंदाजी सेंटर से अपने करियर की शुरुआत की थी। तार कंपनी में चार सालों तक मिनी और सब जूनियर वर्ग में शानदार प्रदर्शन के बाद कोमालिका को 2016 में टाटा आर्चरी एकेडमी में प्रवेश मिला था। टाटा आर्चरी एकेडमी में उन्हें द्रोणाचार्य पूर्णिमा महतो और धर्मेंद्र तिवारी जैसे दिग्गज प्रशिक्षकों ने तीरंदाजी के गुर सिखाए। इन तीन सालों में कोमालिका ने डेढ़ दर्जन राष्ट्रीय और अंतरराष्ट्रीय पदक जीते हैं।