साढ़े तीन वर्ष बाद भी शहीद किशन के भाई को नहीं मिली नौकरी
श्रीनगर के बारामूला सेक्टर की लीपा घाटी में 9 जुलाई, 2015 को पाकिस्तानी फौज और रेंजर की गोलीबारी में जमशेदपुर के परसुडीह कीताडीह त्रिमूर्ति चौक निवासी सीमा सुरक्षा बल (बीएसफ) के जवान किशन दुबे शहीद हो गए थे।
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : श्रीनगर के बारामूला सेक्टर की लीपा घाटी में 9 जुलाई, 2015 को पाकिस्तानी फौज और रेंजर की गोलीबारी में जमशेदपुर के परसुडीह कीताडीह त्रिमूर्ति चौक निवासी सीमा सुरक्षा बल (बीएसफ) के जवान किशन दुबे शहीद हो गए थे। पिता धर्मराज दुबे की भी 24 अगस्त, 2017 को मौत हो चुकी है।
झारखंड सरकार की ओर से शहीद के भाई को नौकरी देने का आश्वासन दिया गया था। साढ़े तीन वर्ष से अधिक बीत गए लेकिन किशन दुबे के छोटे भाई जयशंकर दुबे को नौकरी नहीं मिली। नौकरी के लिए जमशेदपुर से लेकर रांची गृह विभाग का चक्कर काट रहे हैं जबकि हाई कोर्ट का आदेश हैं कि अनुकंपा पर नौकरी के आवेदनों को छह माह में निष्पादित किया जाए।
शहीद किशन का परिवार आज भी कीताडीह में एक झोपड़ीनुमा घर में रहता है। भाई कन्हैया दुबे, रविशंकर दुबे, जयशंकर दुबे और विजय शंकर, बहन लक्ष्मी और मां जगमाया देवी इस घर में रहते हैं। मां भी बीमार रहती हैं।
व्यथा को सुनाते हुए किशन दुबे के बड़े भाई कन्हैया दुबे बताते हैं कि शहीद भाई को प्रदेश और केंद्र सरकार की ओर से कोई सम्मान नहीं मिला। 12 डिसमिल जमीन मिलने की बात थी लेकिन 5 डिसमिल जमीन एमजीएम थाना क्षेत्र के भिलाई पहाड़ी में दी गई। जमीन सुंदरनगर में मिलने की आशा थी। भाई बागबेड़ा के जिस स्कूल में पढ़ता था, उस स्कूल का नाम शहीद के नाम पर किए जाने को लेकर बीएसएफ से कई बार विभागीय पत्र भेजा जा चुका है लेकिन स्कूल का नामकरण नहीं हो पाया। भाई जब शहीद हुए थे तो राजनीतिक दल के नेताओं के साथ-साथ पुलिस-प्रशासन की ओर से आश्वासन मिला था कीताडीह या फिर अन्य किसी इलाके में उनका स्मारक बनेगा। स्मारक भी नहीं बना। राजनीतिक दल के नेता केवल फोटो खिंचवाने आते हैं। दीपावली पर उपायुक्त और एसएसपी आते हैं, मिलते हैं। आश्वासन देते हैं कि कोई परेशानी नहीं होगी, वे परिवार के साथ हैं। नौकरी अबतक नहीं मिलने से पता चलता हैं कितने साथ हैं।