Move to Jagran APP

पति के विधायक रहते सब्जी बेचा करती थीं जोबा Jamshedpur News

जोबा के पति देवेंद्र माझी 1980 से लेकर 1990 तक विधायक रहे थे। साम्यवादी विचारधारा के समर्थक देवेन्द्र माझी ने अपनी जिंदगी में जनप्रतिनिधियों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया।

By Vikas SrivastavaEdited By: Published: Tue, 28 Jan 2020 07:33 PM (IST)Updated: Wed, 29 Jan 2020 09:29 AM (IST)
पति के विधायक रहते सब्जी बेचा करती थीं जोबा Jamshedpur News
पति के विधायक रहते सब्जी बेचा करती थीं जोबा Jamshedpur News

चक्रधरपुर (दिनेश शर्मा)। झारखंड सरकार में मंत्री बनाई गईं मनोहरपुर विधानसभा क्षेत्र की विधायक जोबा माझी को लोग आज भी उनके पंप रोड स्थित आवास में बर्तन मांजते, कपड़े धोते एवं गोबर की लिपाई करते देखते हैं जबकि वे बिहार सरकार में राज्य मंत्री व झारखण्ड सरकार में कैबिनेट मंत्री के महत्वपूर्ण पद को सुशोभित कर चुकी हैं।

loksabha election banner

जोबा के पति देवेंद्र माझी 1980 से लेकर 1990 तक विधायक रहे थे। काफी हद तक साम्यवादी विचारधारा के समर्थक देवेन्द्र माझी ने अपनी जिंदगी में जनप्रतिनिधियों के लिए एक आदर्श प्रस्तुत किया। यह आदर्श भी इतना कठिन कि आज के राजनेताओं के पसीने छूट जाएं। उन्होंने अपनी पत्नी को भी इन्हीं आदर्शो की घुट्टी पिलाई। 1982 में विवाह के उपरांत देवेंद्र माझी की इसी सोच का नतीजा था कि अपने खेतों में उपजी सब्जियां लेकर जोबा माझी स्वयं इतवारी बाजार के खुदरा विक्रेताओं को बेचती थीं।

1980 से लेकर 1990 तक देवेन्द्र माझी विधायक रहे थे। उनके आचार-विचार की तुलना वर्तमान समय के जनप्रतिनिधियों से की जाए, तो फर्क स्पष्ट नजर आता है। आज के अधिकांश जनप्रतिनिधि शाही ठाठ के आदी हो गए हैं। इतवारी बाजार के सब्जी विक्रेता बताते हैं कि जोबा भाभी देवेन्द्र बाबू के विधायक रहते भी स्वयं सब्जियां लेकर बेचने आती थीं। आधे एक घंटे में सब्जियों की बिक्री कर तमाम लोगों से कुशलक्षेम पूछकर वापस लौटती थीं। इस बाबत पूछे जाने पर जोबा माझी ने कहा कि माझी साहब के विचार बेहद सुलझे हुए थे। वे कहा करते थे कि मैं विधायक हूं, इस बात से अपनी आजीविका तथा रोजमर्रा के कार्यो में बदलाव नहीं होना चाहिए। कर्म पर उनका अटूट विश्र्वास था। 

राबड़ी सरकार में पहली बार बनी थी मंत्री

14 अक्टूबर 1994 में पति देवेन्द्र माझी की हत्या के बाद जोबा माझी राजनीति में उतरी थीं। वर्तमान में उनकी सफलता का काफी हद तक श्रेय नजम अंसारी को दिया जाता है। वर्ष 1995 में पहली बार चुनाव मैदान में उतरी जोबा माझी ने पहली जीत सहानुभूति लहर पर सवार होकर दर्ज की थी। इसके बाद राबड़ी देवी की सरकार में पहली बार दिसम्बर 1998 में आवास राज्य मंत्री बनीं।

झारखंड अलग होने के बाद बनी पहली भाजपा नीत बाबूलाल मरांडी की सरकार में वे कैबिनेट मंत्री बनीं। उन्हें समाज कल्याण महिला व बाल विकास तथा पर्यटन मंत्रालय की जिम्मेदारी सौंपी गई। वर्ष 2005 में वे पुन: कल्याण, समाज कल्याण, महिला व बाल विकास एवं आवास मंत्री बनी। चौथी बार चुनाव मैदान में उतरी जोबा वर्ष 2009 का चुनाव हार गई। इसके बाद वे झामुमो में शामिल होकर वर्ष 2014 के चुनाव में उतरी व जीत हासिल की।

चुनाव पूर्व उन्होंने अपने पति देवेन्द्र माझी द्वारा गठित पार्टी झरखंड मुक्ति मोर्चा डेमोक्रेटिक का विलय झामुमो में कर दिया था। यह चौथी बार है जब जोबा  मंत्री पद की शपथ ले रही हैं। उनके पति स्व. देवेन्द्र माझी सिंहभूम के कद्दावर आदिवासी नेताओं में शुमार किए जाते हैं। वे 1980 में चक्रधरपुर व 1985 में मनोहरपुर से विधायक रहे थे।

दो बार विधायक रहे थे देवेन्द्र, बनाई थी अपनी पार्टी

देवेन्द्र माझी एक नेता ही नहीं, राजनीतिक-सामाजिक विषयों के अच्छे ज्ञाता भी थे। एक किसान पुत्र होने के नाते वे तमाम उम्र अपनी मिट्टी से जुड़े रहे। चक्रधरपुर में बीड़ी मजदूरों को संगठित कर शोषण एवं शोषकों के खिलाफ आंदोलन करते थे। सन् 1978 के आसपास झारखंड मुक्ति मोर्चा का सिंहभूम जिले में आविर्भाव एवं विस्तार हुआ। जिसके प्रमुख व तत्कालीन अध्यक्ष देवेन्द्र माझी ही थे।

वर्ष 1980 से पूर्व विधानसभा चुनाव में देवेन्द्र माझी शेर चुनाव चिह्न के साथ मैदान में उतरे थे। पराजित होने के पश्चात लोकसभा चुनाव में भी उन्होंने किस्मत आजमाई। इस बार भी उन्हें हार का मुंह देखना पड़ा। उस समय वे अपने निकटतम प्रतिद्वंद्वी बागुन सुम्बरूई से हार गये थे। 1980 में ही देवेन्द्र माझी चक्रधरपुर विधानसभा क्षेत्र से जोड़ा पत्ता चुनाव चिन्ह के साथ झारखंड मुक्ति मोर्चा की ओर से लड़े थे।

उस समय इन्हें कांग्रेस का समर्थन मिला था, लिहाजा सफलता उनके हाथ लगी। उस समय उन्होंने निकटतम प्रतिद्वंद्वी जगन्नाथ बांकिरा (जनता पार्टी) को भारी मतों के अंतर से हराया था। 80 में ही चुनाव जीतने के बाद पार्टी में कुछ मतभेद के कारण उन्होंने पृथक रूप से झारखंड मुक्ति मोर्चा डेमोक्रेटिक का गठन किया। इसी बीच वर्ष 1982 में वे जोबा माझी के साथ परिणय सूत्र में बंध गये।

वर्ष 84 के लोकसभा का उन्होंने चुनाव लड़ा, परन्तु हार गये। इस चुनाव में भी उनकी लड़ाई बागुन सुम्बरूई से ही थी। इसके बाद सन् 85 में चक्रधरपुर विधानसभा क्षेत्र को छोड़ कर उन्होंने मनोहरपुर विधानसभा की ओर रुख किया एवं 85 के विस चुनाव में उन्होंने अपने निकटतम प्रतिद्वंदी रत्नाकर नायक को हरा कर मनोहरपुर विस क्षेत्र में भी फतह हासिल की।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.