Jharkhand Unlock: जमशेदपुर से रांची, धनबाद एवं बोकारो के लिए भी नहीं मिलते 20 से ज्यादा यात्री, बस मालिक-संचालक परेशान
अनलाॅक की प्रक्रिया के तहत बस संचालक की छूट मिलने पर एक-दूसरे को लड्डू खिलाकर बस मालिकों संचालकों चालक-खलासी बुकिंग एजेंट ने खुशी मनाई थी। हालांकि उनकी यह खुशी अब चिंता में बदल गई है क्योंकि इन्हें यात्री ही नहीं मिल रहे हैं।
जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। झारखंड में कोरोना को लेकर स्वास्थ्य सुरक्षा सप्ताह के तहत आंशिक लॉकडाउन लगा था। धीरे-धीरे सबकुछ खुलते गए। अंतर जिला बस परिवहन को भी एक जुलाई से खोल दिया गया था। उस दिन बस स्टैंड में जश्न मना था। एक-दूसरे को लड्डू खिलाकर बस मालिकों, संचालकों, चालक-खलासी, बुकिंग एजेंट ने खुशी मनाई थी। हालांकि उनकी यह खुशी अब चिंता में बदल गई है, क्योंकि इन्हें यात्री ही नहीं मिल रहे हैं।
बस मालिकों-संचालकों का कहना है कि बस अब बसों का पहिया ही घूम रहा है, यात्री नहीं मिल रहे हैं। रांची, धनबाद, बोकारो के लिए किसी भी बस को 20 से ज्यादा यात्री नहीं मिल रहे हैं। अक्सर पांच-सात या ज्यादा से ज्यादा 10-12 यात्री लेकर बस रवाना हो रही है। बुकिंग एजेंट विपिन कुमार बताते हैं कि यही हाल वापसी में भी रहता है। वहां से भी पांच-दस यात्री ही मिल रहे हैं। इससे डीजल का खर्च भी नहीं निकल रहा है। स्टाफ पेमेंट, बस का मेंटेनेंस और टैक्स या बैंक किस्त की तो बात ही दूर है। हम क्या करें, समझ में नहीं आ रहा है। एक अन्य बुकिंग एजेंट अमित कुमार ने बताया कि जब तक सरकार अंतरराज्यीय बसों का परिचालन शुरू नहीं कराएगी, यही स्थिति रहेगी। बसों में ज्यादातर यात्री दूसरे राज्यों के यात्री रहते थे। बिहार, ओडिशा व बंगाल के अलावा छत्तीसगढ़ के भी काफी यात्री हमारी बसों में यात्रा करते थे। अंतर जिला बस के यात्री कम ही रहते थे।
संडे को रहती पूरी छुट्टी
बस संचालक रमेश सिंह ने बताया कि अभी झारखंड में हर शनिवार को वीकेंड लॉकडाउन लगा दिया जा रहा है। इसके बाद तो हमारी और शामत आ जाती है। संडे के दिन नाममात्र की बसें चलती हैं। पहले टाटा-रांची की करीब 85 बस चलती थी, अब 20 गाड़ी चल रही है। रविवार के दिन मुश्किल से पांच-सात बस ही चलती है। इसी तरह पहले बोकारो के लिए 20 बस चलती थी, अब पांच और रविवार को एक या दो, धनबाद के लिए पहले 40 बस चलती थी, लेकिन अब पांच चल रही है। रविवार को एक या दो बस चलती है। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि बस संचालकों पर क्या गुजर रही है। खर्चों में कोई कटौती नहीं हुई है, उल्टे डीजल का दाम बढ़ता ही जा रहा है। सरकार टैक्स पूरा ले रही है। अब स्टाफ और मालिक ही अपने खर्चों को सीमित करके चल रहे हैं।