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Yoga Tips: जानु शीर्षासन से दर्जनों रोग हो जाते छूमंतर, जानिए योग एक्सपर्ट रूमा शर्मा से

Janu Shirshasan आज जानिए खास शीर्षासन के बारे में जिससे दर्जनों रोग दूर भाग जाते है। यह योग विज्ञान की सबसे नयी खोज है। जमशेदपुर की योग एक्सपर्ट रूमा शर्मा बतारही हैं जानु शीर्षासन करने के तरीके और उससे होनेवाले फायदे।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Wed, 19 Jan 2022 12:53 PM (IST)Updated: Wed, 19 Jan 2022 06:09 PM (IST)
Yoga Tips: जानु शीर्षासन से दर्जनों रोग हो जाते छूमंतर, जानिए योग एक्सपर्ट रूमा शर्मा से
जमशेदपुर की योग एक्सपर्ट रूमा शर्मा। जागरण

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : योग विज्ञान की खोज भारत के ऋषियों ने हजारों साल पहले की थी और पूरी दुनिया में योग का प्रकाश फैलाया। यह उन्हीं का योगदान है कि मानव जाति को स्वस्थ, समर्थ और सबल बनाने वाले योग के महत्व से आज कोई इनकार नहीं कर सकता।

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अब इसे पूरी दुनिया ने मान्यता दी है और स्वीकार किया है। जमशेदपुर की योग एक्सपर्ट रूमा शर्मा आज बताने जा रही हैं जानु शीर्षासन करने के तरीके और उससे होने वाले फायदे। रूमा शर्मा बताती हैं कि जानु शीर्षासन योग साइंस की सबसे नई खोज या सबसे नया योगासन भी कहा जा सकता है।

जानु शीर्षासन के फायदे

जानु शीर्षासन को सरल आसन माना जाता है। इसे अष्टांग योग शैली में किया जाता है। इसे एक टांग से 30 से 60 सेकेंड तक करने की सलाह दी जाती है। इसका दोहराव सिर्फ एक बार ही किया जाता है। जानु शीर्षासन के अभ्यास से एंड़ी, जांघ, कंधे, पिंडली, हाथ, पीठ अधिक मजबूत होते हैं। जबकि जानु शीर्षासन के अभ्यास से टखना, नाभि, ग्रोइन, जांघें, कंधे, फेफड़े, पिंडली, गले की मांसपेशियां, गर्दन पर खिंचाव आता है। हाथों से पैर के तलवों पर दबाव डालने से तलवे और हाथों पर मौजूद कई प्वाइंट पर दबाव पड़ता है। इन बिंदुओं को एक्यूप्रेशर चिकित्सा में बेहद अहम माना जाता है। यह बिंदु शरीर के विभिन्न अंगों को स्टिम्युलेट कर सकते हैं। इस तरह के दबाव से लिवर, पैंक्रियाज, किडनी, पेट और स्पिलीन या तिल्ली में स्टिम्युलेशन बढ़ जाता है। इसके करने से पाचन सुधरता है। जानु शीर्षासन करने से पेट पर जबरदस्त दबाव पड़ता है। इस दबाव से पेट के भीतरी अंग उत्तेजित होने लगते हैं। यह पाचन प्रक्रिया में भी भरपूर मदद करता है।

जानु शीर्षासन करने के तरीके

योग मैट पर पीठ को सीधा करके सुखासन में बैठ जाएं, बाएं पैर को कूल्हे को जोड़ से बाहर की ओर फैलाएं, दाहिने घुटने को भीतर की ओर मोड़ें, दाएं पैर के तलवे को बाईं जांघ के अंदरूनी हिस्से के उपर रखें। दाहिने पैर और घुटने को फर्श पर आराम से दबाएं। इस समय छाती और नाभि बाएं पैर के साथ होनी चाहिए। इससे उपरी धड़ एकदम सटीक स्थिति में आ जाएगा। दोनों हाथों को कूल्हे के पास रख कर सपोर्ट दें। सांस भीतर लें, पेट और धड़ को सिर की तरफ बढ़ाएं, सांस छोड़ते हुए दोनों हाथों से पैर की एंड़ी को पकड़ लें, अगर हाथ नहीं पहुंचते तो घुटने से नीचे कहीं भी पकड़ लें, बिल्कुल जोर लगाने की कोशिश न करें, रीढ़ में चोट लग सकती है। इसी स्थिति में बने रहें। गहरी और धीमी सांसें लेते और छोड़ते रहें। सांस खींचते हुए हाथों से पैरों को छोड़ दें। धड़ को उपर उठाएं और दाहिने पैर को सीधा करें। कुछ सेकेंड तक आराम करें, अब यही आसन दाएं पैर के साथ करें।


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