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जमशेदपुर की जीवनरेखा स्वर्णरेखा व खरकई का कौन कर रहा अतिक्रमण, विधायक सरयू राय ने झारखंड के मुख्य सचिव को विस्तार से बताया, आप भी जानिए

खरकई व स्वर्णरेखा नदी में औद्योगिक कचरा के साथ घरेलू सीवरेज को सीधे नदी में डालने और औद्योगिक क्षेत्रों के ठोस अपशिष्टों को नालों के द्वारा नदी में प्रवाहित करने के कारण नदी का पानी प्रदूषित हो रहा है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 21 Aug 2021 09:00 AM (IST)Updated: Sat, 21 Aug 2021 10:24 AM (IST)
जमशेदपुर की जीवनरेखा स्वर्णरेखा व खरकई का कौन कर रहा अतिक्रमण, विधायक सरयू राय ने झारखंड के मुख्य सचिव को विस्तार से बताया, आप भी जानिए
बेहिसाब व बेतरतीब मकानों का हो रहा निर्माण।

जमशेदपुर, जासं। हाल के दिनों में लगातार तीन-चार दिन बारिश होने से ही तटवर्ती इलाकों में रहने वालों की नींद हराम हो जाती है। ऐसी बारिश आजकल जाड़े और गर्मी के मौसम में भी हो रही है, जिससे जमशेदपुर की जीवनरेखा कही जाने वाली स्वर्णरेखा व खरकई नदी का दृश्य भयावह हो जाता है। आखिर ऐसा क्यों हो रहा है, कौन है इसका जिम्मेदार, जानिए।

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जमशेदपुर पूर्वी के विधायक व झारखंड सरकार के पूर्व खाद्य आपूर्ति व संसदीय विकास मंत्री सरयू राय ने झारखंड सरकार के मुख्य सचिव सुखदेव सिंह को पूरी बात विस्तार से बताई है। उन्होंने बताया है कि जमशेदपुर से होकर गुजरने वाली स्वर्णरेखा व खरकई नदियों के समीपवर्ती शहरी इलाकों के बड़े भूभाग में बरसात के समय बाढ़ का पानी रिहायशी इलाकों में घुस जाता है, जिससे ये इलाके जलमग्न हो जाते हैं। मानगो नगर निगम, जमशेदपुर अक्षेस, जुगसलाई नगर परिषद, कपाली अक्षेस, आदित्यपुर नगर निगम समेत कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में बेतरतीब निर्माण और नदी तटों का अतिक्रमण होने से यह समस्या दिन-प्रतिदिन जटिल होती जा रही है।

स्लुइस गेट ही बन गए आफत

स्वर्णरेखा व खरकई नदी पर बने शहरी नालों के स्लुइस गेट शहर को बाढ़ से बचाने के लिए बनाए गए थे। नदी का पानी बढ़ने पर इसे बंद कर दिया जाता था, ताकि नदी का पानी नालों से होकर रिहायशी इलाकों में नहीं घुसे, लेकिन अब यही आफत बन गया है। स्लुइस गेट के मुहाने पर कचरों का अंबार जमा हो रहा है। इसका कचरा निस्तारित या हटाने के लिए समुचित प्रबंधन करने एवं इसके लिए ठोस योजना बनाने की आवश्यकता है। क्योंकि शहरी क्षेत्र के नालों से बहने वाले प्लास्टिक एवं कचरा के कारण स्लुइस गेट बंद नहीं हो पाते हैं और नदी का पानी नालों के माध्यम से उल्टी दिशा पकड़कर शहर के निचले इलाके में पसरने लगता है।

नदी में जा रहा औद्योगिक कचरा व घरेलू सीवरेज

खरकई व स्वर्णरेखा नदी में औद्योगिक कचरा के साथ घरेलू सीवरेज को सीधे नदी में डालने और औद्योगिक क्षेत्रों के ठोस अपशिष्टों को नालों के द्वारा नदी में प्रवाहित करने के कारण नदी का पानी प्रदूषित हो रहा है। इसका पेयजल संरचनाओं की क्षमता पर भी प्रतिकूल प्रभाव पड़ रहा है।

बेहिसाब व बेतरतीब मकानों का हो रहा निर्माण

मानगो व आदित्यपुर इलाकों में कई आवासीय एवं व्यवसायिक परिसर विकसित हो रहे हैं, जिनका नक्शा शहरी निकायों द्वारा नदी पर पड़ सकने वाले इसके प्रभाव का अध्ययन किए बगैर निर्गत कर दिया जाता है। इससे कई विसंगतियां उत्पन्न हो रही हैं। इसलिए जरूरत है कि इस समस्या से संबंधित सरकार के सभी विभाग एवं संस्थान समस्या के नियंत्रण एवं समाधान के लिए साझा निर्णय लें। इसके लिए सरकार के स्तर से समन्वय बनाने की आवश्यकता है।

मानगो पुल से आदित्यपुर टॉल ब्रिज तक बनाए जा रहे स्लुइस गेट

मानगो पुल से आदित्यपुर टाॅल ब्रिज के बीच टुकड़ों-टुकड़ों में जुस्को, नगर निकायों तथा सुवर्णरेखा बहुद्देशीय परियोजना द्वारा तटबंध सुरक्षात्मक कार्य के साथ स्लुइस गेट का निर्माण कराया जा रहा है। संपूर्ण क्षेत्र की एक समग्र योजना तैयार करने की जरूरत है, जिसमें अतिक्रमण मुक्त फ्लड प्रोन एरिया मैपिंग तथा उक्त क्षेत्र में बननेवाले भवनों की स्वीकृति शर्तों के निर्धारण में नदी संरक्षण का दृष्टिकोण भी शामिल किया जाए तथा जो सिस्टम बने, उसके संचालन से संबंधित गाइडलाइन का निर्धारण किया जाए। सबसे जरूरी है कि इन नियमों का अनुपालन भी सुनिश्चित किया जाए।

इंटेकवेल भी कचरे का शिकार

पेयजल एवं स्वच्छता विभाग द्वारा मानगो जलापूर्ति परियोजना के लिए बनाए गए इंटेकवेल भी कचरे का शिकार हो रहे हैं। यहां इंटेकवेल के पास प्रतिवर्ष बालू का जमाव क्षेत्र होने से उसका इनफ्लो प्रभावित होता है। इसलिए इंटेकवेल के डिजाइन में भी जल संसाधन विभाग के पुनरीक्षण या वेट्टिंग की आवश्यकता है, ताकि बालू हटाने का प्रावधान हो सके। मोहरदा जलापूर्ति परियोजना के लिए निर्मित वियर एवं मानगो पुल के नीचे जमशेदपुर एवं मानगो की ओर से स्वर्णरेखा में मिलने वाले नालों की सफाई आवश्यक है। इसी प्रकार नदियों से विभिन्न औद्योगिक प्रतिष्ठानों के लिए जलापूर्ति के लिए किए गए निर्माणों की समीक्षा भी जरूरी है।

पुल ही नदी के प्रवाह में बन गए बाधक

नदी पर बननेवाले ग्रामीण विकास विभाग के पुल भी नदी को संकुचित कर रहे हैं। उनका बड़ा ढांचा नदी में ही रहता है। इसके साथ ही उनके पिलर का डिजाइन उपयुक्त नहीं रहने से भी जलमार्ग अवरूद्ध होता है। इन मामलों में जल संसाधन विभाग से एनओसी लिया जाना अनिवार्य होना चाहिए। यदि समय रहते इन बढ़ रही समस्याओं पर सरकार गंभीर नहीं होती है तो आनेवाले पांच वर्षों में स्थिति भयावह हो सकती है। जमशेदपुर में मेरीन ड्राइव, टाॅल ब्रिज व सोनारी-कांदरबेड़ा पुल का निर्माण होने के क्रम में नदी क्षेत्र का अतिक्रमण हुआ है। मानगो, कपाली, आदित्यपुर तथा जुगसलाई क्षेत्र के रिहायशी इलाकों में भी नदी के अतिक्रमण की प्रवृति बढ़ रही है, जिस कारण नदी की चौड़ाई दिन-प्रतिदिन सिमटती जा रही है। विगत 10-12 वर्षों से खरकई नदी के आदित्यपुर पुल के पास लगे ‘गेज स्टेशन’ के आंकड़ों के अध्ययन से स्पष्ट है कि वर्ष 2008 में जितना पानी किसी खास स्तर पर नदी में बहता था, आज की तिथि में उसका 60 प्रतिशत ही पानी बह पा रहा है। अर्थात आदित्यपुर पुल से मानगो पुल के बीच नदी का क्राॅस सेक्शन अतिक्रमण के कारण घटा है, जिसके कारण स्वर्णरेखा और खरकई नदियों की बहाव क्षमता कम हो गई है और पानी का ठहराव होने से बाढ़ की स्थिति बन रही है। जमशेदपुर और आदित्यपुर के फ्लड प्रोन एरिया में लगातार बढ़ रहे घरों की संख्या भी बाढ़ का एक कारण है।

सरकार बनाए स्थायी समन्वय समिति

सरयू राय ने मुख्य सचिव से आग्रह किया है कि उपर्युक्त विवरण के आलोक में आपके स्तर से एक उच्चस्तरीय बैठक बुलाई जाए, जिसमें जल संसाधन विभाग, पेयजल एवं स्वच्छता विभाग, राजस्व, निबंधन एवं भूमि सुधार विभाग, ग्रामीण विकास विभाग, वन, पर्यावरण एवं जलवायु परिवर्तन विभाग तथा पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसाँवा के उपायुक्त, कोल्हान के आयुक्त, स्वर्णरेखा परियोजना के दोनों प्रमुख अभियंता, मानगो, जमशेदपुर, आदित्यपुर, जुगसलाई, कपाली नगर निकायों के विशेष कार्य पदाधिकारी एवं टाटा स्टील लिमिटेड और जुस्को के प्रतिनिधि भाग लें। नदी जल प्रबंधन एवं संरक्षण के लिए एक स्थायी समन्वय समिति का गठन किया जाय, ताकि समस्या का सुनियोजित तरीके से निदान हो सके।


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