बेकाबू हुआ कोरोना संकटः हर तरफ बेबसी और घबराहट, इधर आह- उधर कराह
Jamshedpur Coronavirus हर तरफ उदासी का गुबार। एक था कोरोना 2020 वाला और एक है 2021 वाला। दोनों में बुनियादी फर्क है। अबकी बार वाला बच्चों और नौजवानों को अपनी जद में ले रहा है। बुखार ज्यादा दिन रह रहा है। जमशेदपुर में मौत के आंकड़े डराने वाले हैं।
जमशेदपुर, जितेंद्र सिंह। हर तरफ मौत और मायूसी का समानांतर जश्न चल रहा है। इधर आह, उधर कराह। एमजीएम अस्पताल में एक और शख्स के रोने की तेज आवाज सन्नाटे को चीर रही है। अस्पतालों में पड़े मरीज जिदंगी और मौत से तो जूझ रहे हैं तो अकेलेपन की भी लड़ाई लड़ रहे हैं। ऐसी बीमारी कि जिंदगी का दुख बांटने वाला भी कोई नहीं। अपने भी अजनबी नजर आने लगते हैं।
हर तरफ उदासी का गुबार। एक था कोरोना 2020 वाला और एक है 2021 वाला। दोनों में बुनियादी फर्क है। अबकी बार वाला बच्चों और नौजवानों को अपनी जद में ले रहा है। बुखार ज्यादा दिन रह रहा है। जमशेदपुर में मौत के आंकड़े डराने वाले हैं। पूर्वी सिंहभूम का मृत्यु दर तो राष्ट्रीय मृत्यु दर से भी अधिक है। भारत का कोरोना से मृत्यु दर 1.20 फीसद है तो जमशेदपुर का मृत्युदर 1.82 फीसद। ऐसे में हम अगर अब भी नहीं चेते तो स्थिति की भयावहता का अंदाजा लगाना मुश्किल हो जाएगा।
केस एक
महात्मा गांधी मेमोरियल मेडिकल कॉलेज अस्पताल में पिछले गुरुवार की रात मानगो निवासी पूर्व सिविल सर्जन डॉ. धर्मनाथ सिंह की मौत हो गई। परिजनों का आरोप है कि इलाज के अभाव में उनकी जान चली गई।सांस लेने में परेशानी होने पर उन्हें एमजीएम अस्पताल लेकर आया गया लेकिन यहां न तो समय पर बेड मिल सका और न ही ऑक्सीजन। लगभग दो घंटे के बाद उन्हें किसी तरह बेड उपलब्ध कराया गया, लेकिन तबतक देर हो चुकी थी। उन्होंने एंबुलेंस में ही दम तोड़ दिया। जीवित रहते उन्हें अभिवादन करने वाले चिकित्सकों ने भी मौत के बाद मुंह फेर लिया।
केस दो
गोलमुरी के एक मरीज की तबीयत बिगड़ी तो टीएमएच ले जाया गया, लेकिन वहां बेड खाली नहीं था। मरीज के बेटी मिन्नतें करने लगी, लेकिन अस्पताल प्रबंधन भी मजबूर था। तभी एक कर्मचारी ने सलाह दी कि घाटशिला अस्पताल में बेड मिल जाएगा। मरीज को घाटशिला ले जाया गया। वहां भी पहुंचते ही टका सा जवाब मिला, यहां बेड खाली नहीं है, इन्हें वापस ले जाइए। निराश परिजनों ने मरीज को तामुलिया स्थित ब्रह्मानंद अस्पताल ले गए, वहां भी बेड नहीं मिला। एनएच पर उमा अस्पताल के बाहर ''''''''नो बेड'''''''' का बोर्ड लगा था। थक हार कर वे लोग दोबारा टीएमएच लेकर पहुंचे, तो डॉक्टर ने बताया कि आपके पिता अब नहीं रहे। करीब छह घंटे तक बेड के चक्कर में एंबुलेंस में तड़प-तड़प कर मेरे पिता मर गए।
हर तरफ बेतहाशा, बेबसी और घबराहट
एंबलुेंस की घूमती बत्ती स्याह रात के अंधेर को रह-रह कर चीर देती है। सायरन की आवाज मात्र से दिल ऐसा धड़कता है कि मानो रुक जाएगा। हवा में बेतहाशा, बेचैनी और घबराहट तारी है। हर शख्स बेचैन है। हर आदमी परेशान है। वातावरण में तो भरपूर ऑक्सीजन है, लेकिन फेफड़े लाचार हैं। अस्पताल आने वाला हर मरीज जिंदगी की उम्मीद में आया है। घर वाले दिलासा दिला देते हैं, घबराओ मत पापा, अस्पताल आ गए हैं। तुम्हें कुछ नहीं होगा। सांस लेने में दिक्कत हो रही है। फिर वही झूठी दिलासा-थोड़ी हिम्मत रखो। लेकिन अस्पताल पहुंचते ही उम्मीदों की डोर टूट जाती है। हर तरफ लाचारी है, बेबसी और मौत का मंजर है। जमशेदपुर के सभी अस्पतालों का कमोबेश यही हाल है।शहर के सभी अस्पतालों में तिल रखने की जगह नहीं है। बेड से लेकर फर्श तक मरीजों से भरा पड़ा है। संसाधनों की कमी के कारण इलाज के अभाव में मरीजों की मौत हो रही है। बारीडीह के नंदलाल सिंह को सांस लेने में परेशानी के बाद मरीजों ने मर्सी अस्पताल ले गए। लेकिन वहां बेड नहीं था। भागते-भागते टीएमएच गये, वहां भी वहीं हाल। इसके बाद एमजीएम में निराशा हाथ लगी। लाइफलाइन ने भी निराश किया। थक हारकर नंदलाल को फिर एमजीएम लाया गया, लेकिन उन्होंने एंबुलेंस में ही दम तोड़ दिया।
तेजी से बढ़ रही कोरोना संक्रमितों की संख्या
हालात यह है कि कोरोना संक्रमितों की संख्या तेजी से बढ़ रही है। 14 अप्रैल को जमशेदपुर में मरीजों की संख्या जहां 368 थी, वहीं 20 अप्रैल आते-आते यह आंकड़ा 700 तक पहुंच गया। कदमा में सबसे अधिक 644 मरीज पॉजिटिव पाए गए, वहीं मानगो में 632 व सोनारी में 543 मरीज मिले। जमशेदपुर में पॉजिटिव केसों की संख्या सर्वाधिक 21069 है। दूसरे स्थआन पर घाटशिला (802) व तीसरे स्थान पर घाटशिला (712) है। बहरागोड़ा में 387, चाकुलिया में 486, धालभूमगढ़ में 373, डुमरिया में 344, पटमदा में 442 व पोटका में 423 संक्रमित मिले हैं।
मौत का आंकड़ा भी डराने वाला
कोरोना मरीजों की मौत का आंकड़ा नित नई ऊचाइयों को छू रहा है। अभी तक इस अदृश्य वायरस ने जमशेदपुर में 467 लोगों (20 जनवरी तक) की जान ले चुका है। फिलहाल पूर्वी सिंहभूम जिले में कोरोना मरीजों की संख्या 4700 से अधिक है। सबसे अधिक मौत शहरी क्षेत्र (435) में ही हुई है। बहरागोड़ा, चाकुलिया, पटमदा में अभी तक दो-दो मौत हुई है, वहीं पोटका में पांच, मुसाबनी में तीन व धालभूमगढ़ में कोरोना ने चार लोगों को अपने अगोश में लिया है।
पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की कम मौतें
पूर्वी सिंहभूम जिले की बात करें तो पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की मौतें कम हो रही है। दूसरी बड़ी बात, जितना ज्यादा उम्र, उतनी अधिक मौते। अभी तक 60 साल से अधिक उम्र के 224 पुरुष व 78 महिलाएं काल के गाल में समा चुके हैं। 45 से 59 आयुवर्ग में 80 पुरुष व 43 महिलाएं, 30-44 आयुवर्ग में 28 पुरुष व सात महिलाएं, 15-29 आयुवर्ग में छह पुरुष व 14 साल के नीचे उम्र वर्ग में एक बच्चे की मौत हो चुकी है। 18 अप्रैल को सबसे ज्यादा 17 मौतें हुईं थी।
प. सिंहभूम में 53 की मौत
पश्चिम सिंहभू में भी संक्रमितों की संख्या दिन प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। अभी तक इस जिले में 53 लोगों की कोरोना से मौत हो चुकी है, जबकि 5907 पॉजिटिव केस मिले हैं। 16 मार्च से 20 अप्रैल तक 659 नए केस मिले हैं। यहां अस्पताल में संसधान तो है, लेकिन प्रशिक्षित तकनीशियन की कमी है। कई चिकित्सक संक्रमित हो चुके हैं, इसका सीधा असर इलाज पर पड़ रहा है।
संक्रमण की तूफानी रफ्तार चिंता का सबब
हमें सचमुच पता नहीं है कि कोरोना संक्रमण की इस तूफानी रफ़्तार की वजह क्या है। लेकिन सबसे बड़ी चिंता की बात यह है कि अब पूरे के पूरे परिवार संक्रमण की चपेट में आ रहे हैं। यह बिल्कुल नया ट्रेंड है। शहर में कोरोना लहर का दूसरा संक्रमण उन लोगों की वजह से फैला, जो बिल्कुल लापरवाह हो गए। ये लोग शादियों, पारिवारिक और सामाजिक समारोहों में खुल कर जाने लगे। काश हम धैर्य से काम लेते। हम जिंदगी को जहां के तहां रोक नहीं सकते। लेकिन अगर हम भीड़ में एक दूसरे से पर्याप्त शारीरिक दूरी न रख पाएं, तो कम से कम यह तो पक्का कर लें कि हर कोई सही मास्क पहने। साथ ही मास्क को सही ढंग से पहनना भी जरूरी है। लोगों से की जाने वाली यह कोई बड़ी अपेक्षा तो नहीं ही है।