धागे से बुनी स्वावलंबन की चादर
मुरारी प्रसाद सिंह, मुसाबनी (पूर्वी सिंहभूम) : तदबीर से तकदीर संवारने की यह कहानी पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला अनुमंडल के मुसाबनी है।
मुरारी प्रसाद सिंह, मुसाबनी (पूर्वी सिंहभूम) : तदबीर से तकदीर संवारने की यह कहानी पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला अनुमंडल के मुसाबनी की है। जिला मुख्यालय से 50 किलोमीटर
पूरब में अवस्थित पश्चिमी बादिया पंचायत ने स्वावलंबन की डगर पर कदम बढ़ाकर मिसाल पेश
की है। खैरख्वाह मिले तो ख्वाहिशें मुस्कुराई और यहा की आधी आबादी ने धागे से स्वावलंबन की
चादर बुन ली। कल तक दो-चार रुपये के लिए हाथ पसारने को मजबूर महिलाएं आज की तारीख
में न केवल अपनी जरूरतें पूरी कर रही हैं बल्कि परिवार की गाड़ी खींचने में भी आर्थिक सहयोग
कर रही हैं।
यह सब हुआ है पंचायत समिति सदस्य शबनम परवीन की परिकल्पना और उसे साकार करने के जज्बे
से। परवीन जब अपने आसपास की महिलाओं की पारिवारिक दुश्वारियों को देखती थी तो दिल
कचोटता था। उनके मन में उनके लिए कुछ करने की ललक पैदा हुई और फिर उन्होंने महिला
बुनकर स्वावलंबी सहकारी समिति खड़ी की। प्रखंड स्तर पर संस्था का रजिस्ट्रेशन कराया और
जुट गईं इसे कामयाबी की मंजिल तक पहुंचाने में। शबनम ने महिलाओं को जोड़ा और उन्हें गमछा,
चादर आदि बुनने का प्रशिक्षण दिलाकर हुनरमंद बनाया। वैसे तो सहकारी समिति से 190
महिलाएं पंजीकृत हैं। लेकिन 20 महिलाओं को गमछा बनाने का प्रशिक्षण दिया गया। 20
महिलाएं पूरी तरह से ट्रेंड होकर गमछा बनाने के कार्य में जुटी हैं। इनमें रंजू नायक, अफरोजा
खातून, नसीमा परवीन, सेवती कैवर्त, सातना कैवर्त, पूजा कैवर्त, लक्ष्मी कैवर्त शामिल हैं।
शबनम बताती हैं कि स्वावलंबन के प्रति महिलाओं की ललक को देखते हुए झारक्त्राफ्ट ने 21
नवंबर 2017 को 10 लाख रुपये का 20 हैंडलूम मशीन उपलब्ध कराया। एक मशीन में तीन
महिलाएं काम करती हैं। दो शिफ्ट में 120 महिलाएं इस मशीन से गमछा, चादर, सूती वस्त्र
आदि बनाने का काम कर सकती हैं। महिलाओं द्वारा तैयार गमछा बाजार में 110 रुपये व 75
रुपये की दर से बिकता है। एक गमछा बनाने में महिलाओं को पारिश्रमिक के रूप में 25 रुपये की
बचत होती है। एक महिला महीने में तीन-चार हजार रुपये आमदनी कर लेती है। महिलाओं को
सारा कच्चा माल समिति की सचिव शबनम परवीन उपलब्ध कराती हैं। गमछा, चादर आदि बुनने
के अलावे यहा अगरबत्ती पैकिंग, मधु पैकिंग आदि के कार्य के अवसर भी मुहैया कराए गए हैं।
वित्तीय मदद की दरकार
खास बात यह है कि सरकार द्वारा अब तक इसे किसी भी प्रकार की वित्तीय सहायता
प्राप्त नहीं हुई है। सचिव शबनम परवीन कहती हैं कि यदि सरकार वित्तीय मदद करें तो
सैकड़ों महिलाओं को स्वरोजगार से जोडऩे की संभावनाएं बढ़ जाएगी। काजल मंडल समिति की
अध्यक्ष हैं।
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क्या कहती हैं समिति से जुड़ी महिलाएं
एक दिन में दो तौलिया बनाती हूं। इसे बेचने पर दो सौ बीस रुपये मिलते है। हम आत्मनिर्भर
बनने के लिए इस धंधे से जुड़े हैं। हमारा मकसद पूरा हुआ है, यह खुशी देती है। आर्थिक रूप से भी मजबूत हो रहे हैं।
-नसीमा परवीन ।
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गमछा, चादर बुनने के हुनर सीखे तो हमारी जिंदगी में बड़ा बदलाव आया। अब महीने में
तीन-चार हजार रुपये की आमदनी हो जाती है। इससे परिवार चलाने में मदद मिलती है।
-लक्ष्मी कैवर्त