अनुशासन के पालन से मित्रता होती मजबूत
इसमें वह पल्लवित पुष्पित होता है। जैसे-जैसे वह बड़ा होता है उसे अपने दोस्तों की आवश्यकता पड़ती है।
मित्रता मानवीय प्रेम का सबसे सुंदरतम एवं श्रेष्ठतम रूप है। एक शिशु जब जन्म लेता है तो उसके माता-पिता एवं घर के अन्य सदस्य उसे एक प्रेमपूर्ण एवं सुरक्षित माहौल प्रदान करते हैं। इसमें वह पल्लवित पुष्पित होता है। जैसे-जैसे वह बड़ा होता है उसे अपने दोस्तों की आवश्यकता पड़ती है। मित्रता दो या अधिक व्यक्तियों के बीच का आत्मिक संबंध होता है जिसमें सच्चा प्रेम होता है। वे एक दूसरे के सुख-दुख के साथी होते हैं। मैंने बचपन में हिदी के सर्वश्रेष्ठ कहानीकार प्रेमचंद जी की कहानी 'दो बैलों की कथा' पढ़ी थी, जिसमें हीरा और मोती की अनूठी मित्रता को बड़े ही सुंदर ढंग से बताया गया है। जब दो पशुओं में इतनी सच्ची आर गहरी मित्रता हो सकती है तो फिर विधाता की सर्वश्रेष्ठ रचना मनुष्य में क्यों नहीं?
सृष्टि का अपना एक अनुशासन है, सूरज, चंद्रमा, नदियां, सागर आदि सबका अपना-अपना अनुशासन है। उसी प्रकार मित्रता के कुछ अनुशासन होते हैं जिनका पालन करने पर जीवन स्वर्ग सा बन जाता है और परम आनंद की प्राप्ति होती है। मित्रता का सबसे पहला अनुशासन है, ईमानदारी- सच्चे मित्र एक दूसरे के प्रति बेहद ईमानदार होते हैं। वे किसी से कुछ छिपाते नहीं हैं बल्कि विकट परिस्थितियों में एक दूसरे का संबल बनकर खड़े रहते हैं।
मित्रता का दूसरा अनुशासन है, भरोसा और विश्वास- जैसे एक भक्त अपने भगवान पर भरोसा करता है वैसे ही एक व्यक्ति अपने मित्र पर गहरा विश्वास रखता है, जैसे सुग्रीव को अपने मित्र श्रीराम चंद्रजी पर भरोसा था। मित्रों में पारस्परिक समझ होती है। विश्वासपात्र मित्र से बड़ी भारी रक्षा रहती है। जिसे ऐसा मित्र मिल जाए उसे समझना चाहिए कि खजाना मिल गया।
आत्मीयता-मित्रता में यह जरूरी नहीं कि वे शारीरिक रूप से एक दूसरे के समक्ष उपस्थित हों बल्कि आत्मा से जुड़ा रिश्ता तो दूर रहकर भी विश्वसनीय बना रहता है जैसे श्रीकृष्ण और सुदामा जी की अटूट दोस्ती। समानुभूति-मित्रों की संगति में समानुभूति तथा संवेदना की बड़ी भूमिका होती है। एक दूसरे की पीड़ा को समझना और स्वयं की अनुभूति व्यक्त होती है। एक का दुख दूसरे का कष्ट और एक का सुख दूसरे का सुख बन जाता है।
'न रूप न रंग, न यश न वैभव,
मित्रता तो है जीवन का सौरभ।' मित्रता में यदि कोई गलती भी हो जाए तो उसमें क्षमा एवं करुणा का महत्वपूर्ण स्थान होता है। इसमें दोस्तों के बीच अहंकार नाम की कोई चीज नहीं होती। मित्रता एक पवित्र संबंध होता है, इसमें व्यक्ति के उत्कृष्ट आचरण का स्थान होता है, इसमें नीचता की कहीं कोई जगह नहीं होती। मित्र न तो किसी के कहने से जुड़ते हैं और न टूटते हैं इसलिए कहा गया है कि जीवन में मित्र का चयन बड़ी ही सावधानी पूर्वक करना चाहिए। आज के इस दौर में, जब लोगों के पास वक्त की कमी है मित्रों के लिए वक्त निकालना, उनके प्रति अपने दायित्व को निभाना, उसके सुख -दु:ख में मे शामिल होना बड़ा ही मुश्किल सा काम लगता है, जो मानवीय प्रेम के रिश्तों के लिए एक गंभीर चुनौती है। परंतु मित्रता तो ऐसा अनमोल बंधन है जो किसी वक्त का मोहताज नहीं बल्कि दिलों को जोड़ कर पवित्र और महान बनाता है।
-मनजीत कौर, प्राचार्या, एसएस प्लस टू उच्च विद्यालय, चांडिल