अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस : जिनका बड़ा परिवार, आज वे बड़े मजे में हैं Jamshedpur News
लॉकडाउन में जहां घरों में कैद लोग तनाव में हैं वहीं संयुक्त परिवार का नजारा ही अलग है।जमशेदपुर शहर में कई ऐसे परिवार हैं जिनमें दर्जनभर से लेकर 75 सदस्य एकसाथ रह रहे हैं।
जमशेदपुर (जेएनएन)। लॉकडाउन की वजह से एक तरफ जहां घरों में कैद लोग तनाव में हैं वहीं दूसरी ओर जहां संयुक्त परिवार है वहां का नजारा ही अलग है। उनके लिए यह एक अवसर है। जमशेदपुर शहर में कई ऐसे परिवार हैं जिनमें दर्जनभर से लेकर 75 सदस्य तक हैं।
लॉकडाउन में सभी एक साथ भोजन कर रहे हैं। आने वालों दिनों घर-परिवार की तरक्की कैसे होगी, इस विषय पर मंथन भी कर रहे हैं। अवसर मिला है, सो बूढ़े दादा-दादी और मां-बाप की सेवा की होड़ लगी है। एक साथ बैठकर भोजन का आनंद ही अलग है। यूं कहा जा सकता है कि जिसका जितना बड़ा परिवार है, वह उतने ही मजे में हैं। लोग घरों में खुशी-खुशी रह रहे हैं। उनका कहना है कि जब कभी परिवार पर मुसीबत पड़ती है तो संयुक्त होने की वजह से आत्मबल बढ़ा रहता है। हर समस्या को सहज तरीके से झेल जाते हैं। अंतरराष्ट्रीय परिवार दिवस पर प्रस्तुत हैं शहर के कुछ संयुक्त परिवार की कहानी-उनकी जुबानी ...
एक छत के नीचे रहते एक ही परिवार के 15 सदस्य
केबुल टाउन शीशम रोड में प्रदीप सिंह का 15 सदस्यों वाला परिवार एक ही छत के नीचे रहता है। संयुक्त परिवार का यह जीता-जागता उदाहरण दूसरे के लिए प्रेरणास्रोत है। प्रदीप के परिवार की मुखिया उनकी 80 वर्षीय मां कुलवंती देवी हैं। अब दिवंगत हो चुके पिता कन्हैया लाल सिंह बिहार के सिवान (रामनगर) से 1965 में जमशेदपुर आए थे। केबुल कंपनी में काम करते हुए उनका निधन करीब बीस वर्ष पूर्व सात मार्च, 2000 को हो गया।
तब से प्रदीप अपनी मां, छोटे भाई पप्पू सिंह, बहनोई त्रिलोकी नाथ सिंह के साथ यहां रह रहे हैं। सभी लोगों का भोजन एक ही चूल्हे पर बनता है। प्रदीप की दो पुत्री, पप्पू को तीन व त्रिलोकी के दो संतान एक ही छत के नीचे अपनी दादी व नानी की देखरेख में रह रहे हैं। आजकल लॉकडाउन में कुलवंती देवी अपने पोते-पोतियों, नाती-नतिनी सभी को अच्छे संस्कार सिखा रही है। कुलवंती देवी का कहना है कि दोनों बेटे व बेटी के परिवार को एक साथ मिल-जुलकर रहने व एक-दूसरे के सुख-दुख में हाथ बंटाना देखकर आंतरिक प्रसन्नता होती है। ईश्वर करे, इस परिवार पर किसी की नजर नहीं लगे।
खंडेलवाल परिवार में सांझा चूल्हा, 1930 में राजस्थान के सीकर से आए थे छोटेलाल खंडेलवाल
साकची में काशीडीह दुर्गापूजा मैदान के पास खंडेलवाल परिवार है। इस परिवार में 20 सदस्य हैं जो एकसाथ रहते हैं। परिवार के अशोक खंडेलवाल पुरानी यादें ताजा करते हुए बताते हैं - दादा छोटेलाल खंडेलवाल अपने साथ मेरे पिता गणपतलाल खंडेलवाल को लेकर 1930 में राजस्थान के सीकर जिला स्थित मदनी मंढा गांव से यहां आए थे। शुरूआत के दिनों में दादा व पिताजी जुगसलाई में रहते थे।
वहीं पहले नौकरी की, फिर चावल का कारोबार शुरू किया। 1953 में परिवार साकची आ गया, जहां राशन की दुकान खोली गई। चार भाइयों के परिवार में कुल सदस्यों की संख्या 20 है। जबकि सभी भाई और उनके बेटों का अलग-अलग कारोबार है इसके बावजूद सभी का भोजन एक ही चूल्हे पर तैयार होता है। सबसे बड़े भाई लालचंद खंडेलवाल की उम्र 65 वर्ष हो चुकी है जबकि सबसे बड़ी बहन 70 वर्ष की है। तीन बहनें अपनी-अपनी ससुराल में हैं।
1965 में बिहार के आरा से आए थे राम सूरत तिवारी, संयुक्त रूप से रह रही तीसरी पीढ़ी
राम सूरत तिवारी (95) उनकी पत्नी एस. देवी (85) व पांच पुत्रों का भरापूरा परिवार है। राम सूरत तिवारी के पिता सत्यराम तिवारी 1965 में बिहार के आरा से जमशेदपुर आए थे। यहां टाटा स्टील में नौकरी की। उनके बाद उनके बेटे ने भी इस कंपनी में योगदान दिया। टाटा स्टील से 1998 में रिटायर होने के बाद से ही राम सूरत तिवारी पांच पुत्रों, बहुएं व बच्चों के साथ रह रहे हैं। पांचों बेटे शहर में ही अलग-अलग क्षेत्रों में काम करते हैं। अजय तिवारी एसएनटीआइ से रिटायर हो चुके हैं, विजय तिवारी की गोलमुरी में अपनी एक दुकान है।
राकेश तिवारी अपने व्यवसाय से जुड़े हैं, संजीव तिवारी टेल्को गोपबंधु स्कूल के प्रधानाध्याक हैं जबकि छोटे बेटे कौशलेश तिवारी टीएसपीडीएल के कर्मचारी हैं। लॉकडाउन में राम सूरत तिवारी परिवार के साथ बारीडीह स्थित आवास में रह रहे हैं। राम सूरत तिवारी व एस. देवी अपने पोते-पोतियों को कहानियां सुनाकर उनका मन बहलाती हैं। भारतीय सभ्यता-संस्कृति के बारे में उन्हें जानकार बना रही हैं। इनलोगों का कहना है कि वे लोग संयुक्त परिवार में विश्वास रखते रहे हैं, जो कभी टूटा नहीं। यही कारण है कि चार पीढ़ी से लोग आज भी एक ही परिवार हैं।