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International Dance Day 2021: कथक में भी जमशेदपुर ने खूब कमाया नाम, नर्तक-कलाकारों की है लंबी फेहरिश्त

International Dance Day 2021 जमशेदपुर शहर के नर्तक-कलाकार हैं जो आज देश-दुनिया में कथक के माध्यम से इस शहर का नाम रोशन कर रहे हैं। झारखंड की सांस्कृतिक राजधानी कही जाने वाली लौहनगरी में नृत्य की लंबी परंपरा रही है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Thu, 29 Apr 2021 09:00 AM (IST)Updated: Thu, 29 Apr 2021 09:00 AM (IST)
International Dance Day 2021: कथक में भी जमशेदपुर ने खूब कमाया नाम, नर्तक-कलाकारों की है लंबी फेहरिश्त
कथक के मामले में जमशेदपुर शहर ज्यादा समृद्ध है।

जमशेदपुर, वीरेंद्र ओझा। International Dance Day झारखंड की सांस्कृतिक राजधानी कही जाने वाली लौहनगरी में नृत्य की लंबी परंपरा रही है। यहां ना केवल देश की मशहूर हस्तियों ने अपने नृत्य का प्रदर्शन किया, बल्कि यहां की प्रतिभाओं को प्रशिक्षित भी किया।

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ओडिशा से सटा होने की वजह से यहां ओडिशी और छऊ जैसी अंतरराष्ट्रीय स्तर की नृत्य विधा का भी गहरा प्रभाव है, लेकिन कथक के मामले में यह शहर ज्यादा समृद्ध है। यहां 1990 के आसपास सितारा देवी अपना नृत्य प्रस्तुत कर चुकी हैं, तो शोभना नारायण भी कई बार आईं। कथक सम्राट बिरजू महाराज व उनके पुत्र जयकिशन महाराज तो एक-एक सप्ताह तक कथक की कार्यशाला भी कर चुके हैं। इनके अलावा मधुमिता राय, अदिति मंगलदास, शाश्वती सेन, पारोमिता मित्रा जैसी कथक गुरु का यहां पदार्पण हो चुका है। इनके अलावा शहर के नर्तक-कलाकार हैं, जो आज देश-दुनिया में कथक के माध्यम से इस शहर का नाम रोशन कर रहे हैं।

अस्ताद देबू

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अलग तरह की नृत्य विधा विकसित करने वाले अस्ताद देबू का बचपन भी इसी शहर में बीता। करीब सात वर्ष की उम्र से जमशेदपुर में आए अस्ताद ने यहीं गुरु इंद्रकुमार महतो व प्रह्लाद दास से कथक की तालीम ली थी। इसके बाद इन्होंने ईके पाणिकर से कथकली सीखा। फिर कथक, कथकली व मार्शल आर्ट का फ्यूजन बनाया और अपनी इसी विधा को लेकर आजीवन ख्याति अर्जित करते रहे। अब अस्ताद इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन जब भी जमशेदपुर में कथक की बात होगी, उनका नाम लिया जाता रहेगा। 1964 में लोयोला से दसवीं पास करने के बाद ही उन्होंने मुंबई को स्थायी निवास बना लिया था, लेकिन यहां लगभग हर साल आते रहते थे। जमशेदपुर का शायद ही कोई मंच हो, जहां उन्होंने नृत्य प्रस्तुत नहीं किया हो।

गौरी दिवाकर

जमशेदपुर में जन्मी व पली-बढ़ी गौरी दिवाकर ने कथक की तालीम यहीं सुमिता चौधरी से हासिल की। इसके बाद ये पं. बिरजू महाराज, जयकिशन महाराज व अदिति मंगलदास से प्रशिक्षित होकर देश-दुनिया में काफी ख्याति अर्जित कर चुकी हैं। पं. बिरजू महाराज व पं. जयकिशन महाराज के सानिध्य में इन्होंने कथक की ऊंचाई हासिल की। प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद से नृत्य प्रवीण कर चुकीं गौरी दिवाकर को 2002 में श्रृंगार मणि पुरस्कार, 2008 में उस्ताद बिस्मिल्लाह खान युवा पुरस्कार व 2015 में जयदेव प्रतिभा पुरस्कार भी मिल चुका है। -संदीप बोस जमशेदपुर में जन्मे व पले-बढ़े कथक गुरु संदीप बोस नर्तक के रूप में देश-दुनिया में ख्याति अर्जित कर चुके हैं। इनके कई शिष्य आज नई ऊंचाई पर हैं। साकची स्थित रवींद्र भवन व बंगाल क्लब, टेल्को के सबुज कल्याण संघ समेत संदीप भुवनेश्वर, पुरी, नोएडा, कोलकाता समेत देश के कई नृत्य उत्सव में अपनी प्रतिभा प्रदर्शित कर चुके हैं।

सौमी बोस

कथक गुरु संदीप बोस की शिष्या सौमी बोस आज उनकी धर्मपत्नी भी हैं। प्रयाग संगीत समिति, इलाहाबाद से नृत्य प्रवीण कर चुकीं सौमी बोस पं. बिरजू महाराज, प्रताप पवार, शाश्वती सेन, मधुमिता राय, गौरी दिवाकर, जयकिशन महाराज व पारोमिता मित्रा से भी कथक की तालीम हासिल कर चुकी हैं। इन्होंने भुवनेश्वर, नोएडा, नई दिल्ली, कोलकाता, पुरी समेत कई नृत्य उत्सव में नृत्य प्रस्तुत किया है। ये अभी प्रयाग संगीत समिति इलाहाबाद की परीक्षक भी हैं।

पूजा पॉल

संदीप बोस व सौमी बाेस के नृत्यांगन इंस्टीट्यूट ऑफ परफार्मिंग आर्ट्स की शिष्या पूजा पॉल जमशेदपुर में कथक की उभरती हुई कलाकार हैं। इन्हें हाल ही में दुबई व सिंगापुर में नृत्य प्रदर्शन का मौका मिल चुका है। मुंबई के फिरोज खान द्वारा आयोजित नृत्य नाटिका मुगले-आजम में पूजा ने उल्लेखनीय भूमिका से सबका दिल जीत लिया।

शिंजिनी बोस

बारीडीह निवासी शिंजिनी बोस ने कथक की तालीम संदीप बोस से हासिल की। इन्हें भी जमशेदपुर के तमाम मंचों के अलावा देश के नामचीन नृत्य उत्सवों में अपनी प्रतिभा प्रदर्शित करने का अवसर मिल चुका है। इनके अलावा सोनाली चटर्जी समेत कई ऐसे नाम हैं, जो कथक की परंपरा को जमशेदपुर में पल्लवित-पुष्पित कर रही हैं।


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