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JRD Tata ने जब बचेंद्री को दे दी हैरान कर देने वाली सलाह, सुनकर सन्न रह गई थी भारत की पहली महिला पर्वतारोही

भारत की पहली महिला पर्वतारोही बचेंद्री पाल के जन्मदिन पर विशेष देश में पर्वतारोहण का पर्याय बन चुकी बचेंद्री पाल को भला कौन नहीं जानता। आज भी वह युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। 37 साल पहले 23 मई 1984 को एवरेस्ट फतह की थी।

By Jitendra SinghEdited By: Published: Sun, 23 May 2021 06:39 PM (IST)Updated: Mon, 24 May 2021 09:20 AM (IST)
JRD Tata ने जब बचेंद्री को दे दी हैरान कर देने वाली सलाह, सुनकर सन्न रह गई थी भारत की पहली महिला पर्वतारोही
जेआरडी टाटा ने जब बचेंद्री को दे दी हैरान कर देने वाली सलाह

जितेंद्र सिंह, जमशेदपुर : देश में पर्वतारोहण का पर्याय बन चुकी बचेंद्री पाल को भला कौन नहीं जानता। आज भी वह युवाओं के लिए प्रेरणास्त्रोत हैं। 24 मई 1954 को उत्तराखंड के छोटे से गांव में जन्मी बचेंद्री पाल ने 37 साल पहले 23 मई 1984 को एवरेस्ट फतह की थी। तब से लेकर आज तक उन्होंने दर्जनों पर्वतारोहियों की एवरेस्ट की राह दिखाई। फिर चाहे वह सबसे ज्यादा उम्र में एवरेस्ट फतह करने वाली महिला प्रेमलता अग्रवाल हो या फिर हादसे में एक पैर खो चुकी अरुणिमा मिश्रा, सभी ने बचेंद्री की सानिध्य पाकर ही सफलता हासिल की।

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बचेंद्री पाल के साथ अरुणिमा सिन्हा। 

नौकरी नहीं मिली तो माउंटेनियरिंग कोर्स करने लगी

टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन की पूर्व मुखिया बचेंद्री पाल शुरुआती जीवन को याद करते हुए कहती हैं, मेधावी और प्रतिभाशाली होने के बावजूद उन्हें कोई अच्छा रोजगार नहीं मिला। जो नौकरी मिली, वह अस्थायी, जूनियर स्तर का था और फिर वेतन भी बहुत कम हुआ करता था। ऐसे में निराशा हावी होने लगी। तभी उन्होंने निर्णय लिया कि नौकरी करने के बजाय नेहरू इंस्टीट्यूट ऑफ माउंटेनियरिंग कोर्स करुंगी। यही फैसला उनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट साबित हुआ। यहां से बचेंद्री जीवन के नई राह पर चल निकली। शुरुआत में 1982 में एडवास कैंप के तौर पर उन्होंने (6,672 मीटर) और रूदुगैरा (5,819) की चढ़ाई को पूरा किया। इस कैंप में बचेंद्री के प्रदर्शन को देखते हुए ब्रिगेडियर ज्ञान सिंह ने बतौर इंस्ट्रक्टर पहली नौकरी दे दी।

1986 में तत्कालीन राष्ट्रपति ज्ञानी जैल सिंह से अर्जुन पुरस्कार लेती बचेंद्री पाल।

माउंड एवेरस्ट फतह कर रच दिया इतिहास

37 साल पहले जब भारत की एक युवा लड़की 23 मई, 1984 को अपने धैर्य और दृढ़ संकल्प के साथ दुनिया के सबसे ऊंचे पर्वत माउंट एवरेस्ट की चोटी पर पहुंची थी, तब किसी ने सोचा था कि वह दूसरी महिला पर्वतारोहियों को भी राह दिखाएंगी। वह भारत की पहली महिला थी, जिन्होंने यह कारनामा कर दिखाया था। इस स्वर्णिम उपलब्धि ने उन्हें एवरेस्ट फतह करने वाले नेपाल के तेनजिंग नॉर्गे व न्यूजीलैंड के एडमंट हिलेरी की श्रेणी में ला खड़ा किया। बचेंद्री पाल कहती हैं, लोगों का प्यार पाना अभिभूत कर देता है, लेकिन एवरेस्ट के शिखर पर अकेले खड़े रहने का शानदार उत्साह का मुकाबला कोई नहीं कर सकता।

 

23 मई 1984 को साथियों संग एवरेस्ट फतह करती बचेंद्री पाल।

जन्मदिन से एक दिन पहले मिला एवरेस्ट फतह का उपहार

बचेंद्री पाल केवल 29 वर्ष की थीं जब उन्होंने अकल्पनीय कारनामा कर दिखाया था। हिमालय की तलहटी में उत्तरकाशी की रहने वाली बछेंद्री पाल के लिए अपने जन्मदिन के पहले एवरेस्ट फतह का उपहार मिला था। यह उनके जीवन का सबसे बड़ा गिफ्ट है। उनका जन्म 24 मई 1954 को नकुरी गांव के एक किसान परिवार में हुआ था। पहाड़ों से उनकी पहली मुलाकात 12 साल की उम्र में हुई थी। एक स्कूल पिकनिक के दौरान, उसने अपने दोस्तों के साथ 13,123 फीट ऊंची चोटी पर चढ़ाई की। लेकिन बछेंद्री की नजर माउंट एवरेस्ट पर थी।

 

बछेंद्री को बुद्ध पूर्णिमा के दिन मिला था जीवनदान

उस घटना को याद कर बचेंद्री के रोंगटे आज भी खड़े हो जाते हैं। वह याद करती हैं, मैं कैंप-3 में अपने साथियों के साथ 24,000 फीट (7,315.2 मीटर) की ऊंचाई पर टेंट में सो रही थी। वह बुद्ध पूर्णिमा की रात थी। 15-16 मई, 1984 की रात को करीब 12.30 बजे मुझे अचानक लगा कि किसी ने झटका देकर उठा दिया हो। किसी चीज ने मुझे जोर से मारी थी। उसके बाद पहाड़ों पर से भयंकर आवाज सुनाई देने लगी। अचानक मुझे महसूस हुआ कि मैं कोई अत्यंत ठंडे सिलेंडर के बीच हूं। वह बर्फ के नीचे दबी हुई थी। लेकिन साथियों ने हार नहीं मानी और उन्हें बर्फ के बीच से निकाला गया। 23 हजार फीट की इस घटना के बाद बछेंद्री को बेस कैंप लाया गया। तबीयत सामान्य होने के बाद टीम लीडर ने पूछा, क्या तुम फिर से जाना चाहती हो। बचेंद्री का जवाब था, हां। दो दिन बाद बछेंद्री फिर अभियान दल का हिस्सा थी और 23 मई 1984 को दिन के एक बजकर सात मिनट पर एवरेस्ट फतह कर ली। एवरेस्ट की चोटी पर पहुंचने पर बचेंद्री और उनके साथियों ने देवी दुर्गा की एक धातु की मूर्ति लगाई।

जेआरडी टाटा के प्रस्ताव सुन चौंक गई थी बचेंद्री

एवरेस्ट फतह करने के बाद जब बचेंद्री पाल मुंबई के टाटा हाउस में जेआरडी टाटा से मिलने पहुंची तो वह काफी खुश थे। जेआरडी ने पूछा, आगे क्या करना है। बचेंद्री ने कहा, अब मैं यूरोप के अल्पाइन पर्वत श्रृंखला फतह करना चाह रही हूं। जेआरडी ने जवाब दिया, वहां की चोटियां काफी दुर्गम है। वहां जाने के बजाय फ्लाइंग की सदस्य बन हवाई जहाज उड़ाना सीख लो। बचेंद्री कहती है कि वह जेआरडी के उस प्रस्ताव से हैरान रह गई। लेकिन उन्होंने अपना पसंदीदा पर्वतारोहण का ही रास्ता चुना।

पहले मिली टाटा स्टील की नौकरी, फिर एवरेस्ट पर गई

शायद यह बहुत कम लोगों को पता होगा कि 1983 में टाटा स्टील में नौकरी मिलने के बाद बचेंद्री ने एवरेस्ट फतह कि। बचेंद्री बताती हैं, ब्रिगेडियर ज्ञान सिंह ने जेआरडी से कहा था कि अगर आप एवरेस्ट पर टाटा स्टील का झंडा देखना चाहते हैं तो बचेंद्री को नौकरी दें। जेआरडी ने अपने दोस्त ज्ञान की बाद मान ली। फिर बचेंद्री ने भी जेआरडी को निराश नहीं किया।

एक दिन में 5-6 किलो चिट्ठियां आती थी

एवरेस्ट फतह कर जब वापस लौटी तो गांव वालों ने उन्हें सिर आंखों पर बिठा लिया। लोग एक-दूसरे को मिठाई बांट खुशी से नाच रहे थे। अचानक ही देश भर में उनका नाम हो गया। बचेंद्री उन दिनों को याद कर कहती हैं, एक-एक दिन में 5-6 किलो सिर्फ चिट्ठियां आती थी।

लिम्का बुक व गिनीज बुक आफ वल्र्ड रिकॉर्ड में नाम दर्ज

भारत सरकार ने बचेंद्री को 1984 में पद्मश्री, 1986 में अर्जुन पुरस्कार, 1994 में राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार और 2019 में पद्म भूषण से सम्मानित किया। उन्होंने 1986 में फ्रांस में आयोजित विश्व प्रख्यात महिला पर्वतारोहण मीट में भारत का प्रतिनिधित्व किया। गिनीज बुक ऑफ रिकॉर्ड्स, और 1997 में लिम्का बुक ऑफ रिकॉर्ड्स में भी उनका नाम दर्ज है। 1984 के अभियान के बाद बछेंद्री पाल ने कई अन्य अभियानों का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया। इसमें भारत-नेपाली महिला माउंट एवरेस्ट अभियान (1993), ग्रेट वीमेंस राफ्टिंग टूर (1994), पहली भारतीय महिला ट्रांस-हिमालयी अभियान (1997), भूटान में स्नोमेन ट्रेक (2011), डेजर्ट सफारी अभियान (2008,2015) शामिल हैं। ) वह विश्व के सात शिखर पर फतह करने वाली प्रेमलता अग्रवाल, आर एस पाल (53 साल की उम्र में एवरेस्ट पर चढ़ाई), अरुणिमा सिन्हा (पहली महिला अपंग पर्वतारोही) बिनीता सोरेन, हेमंत गुप्ता जैसे सैकड़ों पर्वतारोहियों को एवरेस्ट की राह दिखाई।

जिन्हें बचेंद्री ने बनाया एवरेस्टर

नाम                         वर्ष

प्रेमलता अग्रवाल 20 मई 2011

बिनीता सोरेन 26 मई 2012

मेघलाल महतो 26 मई 2012

राजेंद्र सिंह पाल 26 मई 2012

सुशेन महतो 19 मई 2013

अरुणिमा सिन्हा 21 मई 2013

हेमंत गुप्ता 27 मई 2017

संदीप तोलिया 22 मई 2018

पूनम राणा 22 मई 2018

स्वर्णलता दलाई 22 मई 2018 


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