Tokyo Olympics : टोक्यो ओलंपिक में धमाल मचाने को तैयार भारत की यह पहली युगल जोड़ी, झारखंड की बेटी है दीपिका
दीपिका कुमारी व अतनु दास। अंतरराष्ट्रीय तीरंदाजी एक में जाना-पहचाना नाम। पिछले साल ही दोनों शादी के बंधन में बंधे हैं और यह भारत की पहली युगल जोड़ी होगी जो किसी ओलंपिक में भाग लेगी। टोक्यो ओलंपिक के लिए दीपिका व अतनु अभी से ही तैयारी शुरू कर दी है।
जितेंद्र सिंह, जमशेदपुर : स्वर्णपरी दीपिका कुमारी व अतनु दास। अंतरराष्ट्रीय तीरंदाजी फलक पर एक जाना-पहचाना नाम। पिछले साल ही दोनों शादी के बंधन में बंधे हैं और यह भारत की पहली युगल जोड़ी होगी, जो किसी ओलंपिक में भाग लेगी। टोक्यो ओलंपिक के लिए दीपिका व अतनु अभी से ही तैयारी शुरू कर दी है। 25 अप्रैल को ग्वाटेमाला सिटी में आयोजित तीरंदाजी विश्वकप स्टेज-1 में इस युगल जोड़ी ने रिकर्व तीरंदाजी की व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण पर निशाना साधा।
डिंपल भरी मुस्कान के पीछे छिपा दृढ़संकल्प
पिछले आठ सालों में दीपिका के प्रदर्शन पर नजर दौड़ाई जाए तो उसका प्रदर्शन किसी तपस्वी से कम नहीं है। वह अपनी उत्कृष्टता और महत्वाकांक्षा में ही प्रेरणा हासिल करती है। दीपिका की डिंपल भरी मुस्कान के पीछे दृढ़संकल्प छिपा है। उनकी यह मुस्कुराहट हमेशा कायम रहती है। चाहे वह दुनिया की शीर्ष तीरंदाज हो या ना हो। झारखंड की इस स्वर्ण परी की यही खासियत रही है और इसी खासियत ने उसे 13 साल की उम्र में घर छोड़ने, जूनियर राष्ट्रीय तीरंदाजी टीम में ब्रेक करने, यूथ वर्ल्ड चैंपियनशिप जीतने और तीन साल में कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत का प्रतिनिधित्व करने में मदद की।
'ठान लिया तो करेंगे ही'
दीपिका के पति अतनु दास ने मार्च 2020 में पहले लॉकडाउन के दौरान दीपिका की जीवटता की प्रशंसा करते हुए कहा था, मैं हमेशा दीपिका से यही सीखना चाहूंगा, 'ठान लिया तो करेंगे ही' वाला स्वभाव। इसी साल फरवरी में बहुचर्चित टीवी कार्यक्रम टेडएक्स में दीपिका ने कहा था, 'गरीबी आपको निराश कर सकती है। मैं बहुत गरीब परिवार से हूं। लेकिन मैं सपना देख सकती हूं। सपना देखने का हक सिर्फ अमीरों को नहीं है। कोई भी सपना देख सकता है। मैं अभी भी सपना देखती हूं और उसे पूरा करती हूं।'
विश्व तीरंदाजी फलक पर दी भारत को नई पहचान
10 अक्टूबर, 2010 को नई दिल्ली में आयोजित कॉमनवेल्थ गेम्स में भारत को अंतर्राष्ट्रीय तीरंदाजी का पहला अनुभव मिला। उस शाम तक दीपिका के पास एक व्यक्तिगत और एक टीम का स्वर्ण पदक था। आधुनिक भारतीय तीरंदाजी का प्रदर्शन कभी इतनी ऊंचाई तक नहीं पहुंचा था। दीपिका ने वह कारनामा कर दिखाया था, जिसका किसी को आस नहीं था। भारतीय पौराणिक कथाओं के साथ भले ही तीरंदाजी का गहरा नाता रहा हो, लेकिन भारत में यह खेल वह स्थान नहीं बना पाया जिसका वह हकदार है। रामायण के राम और महाभारत के अर्जुन दोनों महान धनुर्धर थे। दोनों काल में युद्ध का आधार तीरंदाजी ही था।
...तो ओलंपिक स्वर्ण जीतने का पूरा होगा सपना
दीपिका व अतनु का ग्वाटेमाला तीरंदाजी विश्वकप का प्रदर्शन देखे तो ओलंपिक पदक दूर नहीं लगता। 1992 में बार्सिलोना ओलंपिक में महान तीरंदाज लिंबा राम चौथे स्थान पर रहे थे। वह भारत के पहले तीरंदाज हैं, जो ओलंपिक पदक के इतने करीब पहुंचे। उसके बाद दीपिका कुमारी ने 2011 में तूरिन विश्व चैंपियनशिप व 2015 कोपेनहेनग विश्व चैंपियनशिप में रजत जीता।
दीपिका की तरह जीवटता की प्रतिमूर्ति हैं पति अतनु
जहां तक पुरुषों की टीम की बात है तो पहली सफलता 2005 में मैड्रिड विश्वकप में मिला था, जब भारत ने रजत पदक जीता था। एक दशक बाद अतनु दास ने नीदरलैंड में स्वर्ण जीता। अतनु दास कोलकाता तीरंदाजी क्लब से तीरंदाजी का ककहरा सीखा। इसके बाद 2006 में टाटा तीरंदाजी अकादमी का चयन ट्रायल में भाग लिया। लेकिन दुर्भाग्यवश उनका चयन नहीं हो पाया। लेकिन दीपिका की तरह उनके पति अतनु भी हार मानने वाले इंसान नहीं थे। वह वापस कोलकाता तीरंदाजी क्लब लौटे और सीनियर तीरंदाज व कोच के साथ मिलकर अपनी तकनीक में सुधार किया। साल के अंत तक वह टाटा तीरंदाजी अकादमी के तीरंदाज को मात देकर जूनियर तीरंदाजी चैंपियन बन गए। अतनु का इस प्रदर्शन ने उन्हें टाटा तीरंदाजी अकादमी में दाखिला दिला दिया।
अतुन का उस समय गहरा सदमा लगा, जब 2012 में लंदन ओलंंपिक टीम के लिए चयन में एक अंक से हार गए। नतीजा, उन्हें भारतीय टीम से बाहर होना पड़ा। लेकिन अतनु ने हिम्मत नहीं हारी। दो साल बाद फिर मैदान पर वापसी की। 2014 में विश्व के पूर्व नंबर वन तीरंदाज, कॉमनवेल्थ गेम्स के स्वर्ण पदक विजेता राहुल बनर्जी व 2010 ग्वांग्झू एशियन गेम्स में व्यक्तिगत तीरंदाजी में स्वर्ण जीतने वाले तरुणदीप राय का प्रदर्शन असरहीन होने लगा। 2016 रियो ओलंपिक के लिए आयोजित चयन ट्रायल में अतनु ने शानदार प्रदर्शन कर भारतीय टीम में जगह बना ली। तब से लेकर आजतक उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा।
अतनु ने हवा में मुक्का मारा और झोले में रख लिया सोना
25 अप्रैल को ग्वाटेमाला सिटी में आयोजित तीरंदाजी विश्वकप स्टेज-1 में दीपिका कुमारी व उनके पति अतनु दास ने रिकर्व तीरंदाजी की व्यक्तिगत स्पर्धा में स्वर्ण जीता। फाइनल राउंड में अतनु ने परफेक्ट 30 निशाना साधते ही हवा में मुक्का मारा और पहला विश्वकप व्यक्तिगत स्वर्ण अपनी झोली में डाल लिया। पत्नी दीपिका कुमारी विश्वकप स्वर्ण था। वह 2012 में अंताल्या में तथा 2018 में साल्ट लेक सिटी में यह कारनामा कर चुकी थी।
पिछले साल ही अतनु से परिणय सूत्र में बंधी है दीपिका
26 साल की दीपिका कुमारी 29 साल के अतनु दास से गत वर्ष जून में शादी के बंधन में बंध चुके हैं। पहले लॉकडाउन के दौरान जब उनकी शादी हुई थी, तब पहली मर्तबा लगा था कि इस युगल जोड़ी का क्रेज किसी क्रिकेटर से कम नहीं है।
घर में खाने तक के लाले थे, तब अकादमी में ली शरण
दीपिका कुमारी रांची के पास रातू चट्टी गांव की हैं जहां ज्यादातर लड़कियों की शादी किशोरावस्था में होती है। उनका बड़ा ब्रेक झारखंड के पूर्व मुख्यमंत्री अर्जुन मुंडा की पत्नी मीरा मुंडा ने दिया। 13 वर्ष की प्रतिभावान बालिका को 2007 में आवासीय सरायकेला-खरसावां तीरंदाजी अकादमी में जगह दी। उस समय दीपिका की चचेरी बहन विद्या पहले से ही अकादमी में थीं। दीपिका कहती है, अकादमी में रहने का मतलब था, भोजन के बारे में चिंता नहीं करना।
दीपिका के तीरंदाजी सीखने से परिवार के सदस्य खुश नहीं थे। ऑटोरिक्शा चालक पिता ने धमकी दी थी अगर तीरंदाजी सीखेगी तो जल्द शादी कर दूंगा। जीवटता की प्रतिमूर्ति दीपिका पर इसका असर नहीं हुआ और काफी दिनों तक घर वापस नहीं आई। 2008 में साईं रांची में राष्ट्रीय शिविर में चयन हो गया। रांची में घर होते हुए वह हॉस्टल में ही रहती थी। जब 2010 कॉमनवेल्थ गेम्स में दीपिका ने पदक जीत सनसनी फैला दी तब उनके पिता ने टीवी चैनलों से बातचीत में कहा था, 'मैंने उसके दृढ़ संकल्प को कम आंका।'