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शहादत पर इमाम हसन को किया गया याद

शहर में मुसलमानों ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम का गम मनाया गया। इस मौके पर जहां मानगो के जाकिर नगर में इमामबारगाह हजरत अबू तालिब अलैहिस्सलाम में मजलिस हुई।

By JagranEdited By: Published: Wed, 30 Oct 2019 05:08 AM (IST)Updated: Wed, 30 Oct 2019 05:08 AM (IST)
शहादत पर इमाम हसन को किया गया याद
शहादत पर इमाम हसन को किया गया याद

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : शहर में मुसलमानों ने इमाम हसन अलैहिस्सलाम का गम मनाया गया। इस मौके पर जहां मानगो के जाकिर नगर में इमामबारगाह हजरत अबू तालिब अलैहिस्सलाम में मजलिस हुई। वहीं मदरसा गौसिया नूरिया में भी इस हवाले से हुई तकरीर को मौलाना मंजर मोहसिन ने खिताब फरमाया।

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मौलाना मंजर मोहसिन ने बताया कि सफर उल मुजफ्फर के आखिरी दिनों में सिब्ते मुस्तफा पांचवें और आखिरी खलीफा हजरत इमाम हसन मुजतबा अलैहिस्सलाम की शहादत हुई। इमाम हुसैन अ. की जहरी शहादत थी जो कर्बला में हुई। इमाम हसन अ. की सिर्री शहादत थी जो जहर के जरिए हुई। दोनों शहादतें खुदा की तरफ से नैमतें हैं, जो इमाम हसन व हुसैन के जरिए अल्लाह तआला ने अपने पैगंबर हजरत मोहम्मद मुस्तफा स. को अता फरमाई। मौलाना मंजर मोहसिन ने पढ़ा कि इमाम हसन अ. की पैदाइश हजरत मोहम्मद मुस्तफा स. की बेटी जनाब फातमा जहरा सलवातुल्लाह अलैहा के घर में पहली खुशी थी। इस खुशी को पैगंबर अकरम हजरत मोहम्मद मुस्तफा स. ने इस अंदाज से मनाया कि लोगों की दावत की। अल्लाह तआला के हुक्म से नाम हसन रखा। इमाम हसन की पहली खुराक पैगंबर अकरम हजरत मोहम्मद मुस्तफा स. की लुआबे दहन बनी। इमाम हसन के बचपन में ही हुजूर ए अकरम ने अपने सहाबा केराम से फरमा दिया था कि ये मेरा बेटा सैयद (सरदार) है।

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पैगंबर-ए-अकरम की शहादत पर मजलिस

जाकिर नगर में इमामबारगाह हजरत अबूतालिब अ. में करीम सिटी कॉलेज के प्रोफेसर जकी अख्तर ने मजलिस पढ़ी। उन्होंने मजलिस में बताया कि पैगंबर-ए-अकरम हजरत मोहम्मद मुस्तफा स. और उनके नवासे इमाम हसन अ. की शहादत 28 सफर को हुई थी। मजलिस में पैगंबर-ए-अकरम हजरत मोहम्मद मुस्तफा और इमाम हसन की हयात-ए-तैयबा पर रोशनी डाली गई। इसके बाद मसाएब पढ़े गए और पैगंबर-ए-अकरम स. के आखिरी वक्त के बारे में बताया गया। इमाम हसन अ. की शहादत के बारे में भी लोगों को जानकारी दी गई। बताया गया कि इमाम हसन अ. की वसीयत के मुताबिक उन्हें नाना की तुरबत के पास दफनाने के लिए उनका जनाजा ले जाया जा रहा था तो जालिमों ने जनाजे पर तीर चलाए। बाद में उन्हें जन्नतुल बकी में दफन किया गया। मजलिस के बाद नौहाखानी और मातम हुआ।


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