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‘OK TATA’ ट्रकों के पीछे लिखा जाने वाला स्लोगन कैसे बन गया भारतीय कारपोरेट जगत के लिए आदर्श वाक्य

158 साल पुरानी टाटा समूह विपरीत परिस्थितियों से उत्पन्न चुनौतियों को पार पाते हुए आज जिस मुकाम पर पहुंची है वैसा उदाहरण दुनिया में कहीं नहीं मिलती। टाटा समूह को राजनीतिक अदावत की भी कीमत चुकानी पड़ी जब एयर इंडिया का राष्ट्रीयकरण कर दिया गया।

By Jitendra SinghEdited By: Published: Tue, 20 Jul 2021 06:00 AM (IST)Updated: Tue, 20 Jul 2021 08:59 AM (IST)
‘OK TATA’ ट्रकों के पीछे लिखा जाने वाला स्लोगन कैसे बन गया भारतीय कारपोरेट जगत के लिए आदर्श वाक्य
‘OK TATA’ ट्रकों के पीछे लिखा जाने वाला स्लोगन कैसे बन गया भारतीय कारपोरेट जगत के लिए आदर्श वाक्य

जमशेदपुर, जासं। आप देश के किसी भी सड़क चले जाएं, आपको रास्ते में कई ऐसे ट्रक मिल जाएंगे, जिसके पीछे ‘ओके टाटा’ का स्लोगन लिखा हुआ दिख जाएगा। खासकर टाटा की ट्रकों में तो यह रहता ही है, दूसरी कंपनियों के वाहन पर भी बोलचाल के मुहावरे जैसा व्यवहार किया जाता है। ट्रक के मालिक या चालक को भले ही इसकी गहराई में नहीं जानते होंगे, लेकिन आपको जानना चाहिए कि आम भारतीयों के लिए और भारतीय कारपोरेट जगत के लिए यह किस तरह आदर्श वाक्य बन गया।

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टीसीएस के माध्यम से टाटा को जानते हैं अमेरिकी

इसके बारे में हार्वर्ड यूनिवर्सिटी प्रेस से हालिया प्रकाशित पुस्तक टाटा के लेखक मिर्सिया रायानु ने विस्तार से लिखा है। मिर्सिया लिखते हैं कि 1868 में स्थापित टाटा समूह इस सदी में भी शीर्ष कारपोरेट समूह रहा है, इसमें किसी काे शक नहीं हाेना चाहिए। मैरीलैंड विश्वविद्यालय के इतिहासकार रायानु ने अपनी पुस्तक "टाटा : द ग्लोबल कॉरपोरेशन दैट बिल्ट इंडियन कैपिटलिज्म" का शीर्षक देते हुए कहा कि अमेरिका में रहने वाले भारतीय समूह सबसे अधिक टाटा कंसल्टेंसी सर्विसेज के माध्यम से टाटा को जानते हैं। यह कंपनी अमेरिका समेत दुनिया के कई देशों में अच्छी पैठ बना चुकी है। फिलहाल यह लगभग 160 बिलियन डॉलर के बाजार पूंजीकरण के साथ एक वैश्विक दिग्गज कंपनी बनी हुई है। वर्तमान सदी के मोड़ पर, टीसीएस ने पश्चिमी कंपनियों को कम लागत वाली डेटा-प्रसंस्करण सेवाओं की पेशकश कर रही है।

टाटा जैसा प्रभावशाली कंपनी दुनिया में नहीं

कोई दूसरी कंपनी अपने राष्ट्रीय वाणिज्य और उद्योग के इतिहास पर इतना प्रभावशाली नहीं रही, जितना कि भारत में टाटा का है। जहां यह उन कुछ प्रमुख व्यवसायों में से एक है, जिसे अब भी भ्रष्टाचार के माहौल में भी बेदाग माना जाता है। यद्यपि अपने अधिकांश अस्तित्व के लिए परिवार संचालित-व्यापारियों के लिए जिद्दी भारतीय मानदंड-टाटा कंपनी भारत के कारपोरेट समूहों के बीच पेशेवर अधिकारियों और "प्रतिभाशाली गैर-रिश्तेदारों" को नियुक्त करने में "असामान्य" थी। कंपनी ने औपनिवेशिक और उत्तर-औपनिवेशिक दोनों समय में "राज्य से अपनी दूरी बनाए रखी"।

कभी कांग्रेस से दूरी की कीमत भी चुकानी पड़ी थी

इस समूह ने कभी भी किसी राजनीतिक दल को खुद पर हावी नहीं होने दिया। कांग्रेस के साथ इसके शुरुआती दौर में अच्छे रिश्ते थे, लेकिन एक दूरी भी बनी हुई थी। हालांकि टाटा को इस दूरी की वजह से एक बड़ी कीमत चुकानी पड़ी थी, जब 1953 में तत्कालीन प्रधानमंत्री पं. जवाहरलाल नेहरू ने एयर इंडिया-टाटा की संपन्न विमानन शाखा का राष्ट्रीयकरण कर दिया।

प्रथम विश्व युद्ध से ही ब्रिटिश दे रहे थे चुनौती

विडंबना यह है कि टाटा अपने ब्रिटिश-युग के संचालन में कुछ हद तक उपनिवेशवाद विरोधी थे, लेकिन ब्रिटिश वर्चस्व का मुकाबला करने और खुद को मजबूत बनाए रखने के लिए साधन के रूप में अमेरिकी विशेषज्ञता और प्रौद्योगिकी को साथ रखा। प्रथम विश्व युद्ध से लेकर भीषण मंदी तक अमेरिकी संबंध ने टाटा को प्रतिबंधात्मक औपनिवेशिक राज्य की नीतियों को दरकिनार करने की ताकत दी, जिसे भारतीय व्यवसायों पर ब्रिटिश-स्वामित्व के पक्ष में बनाया गया था। बदले में टाटा ने भारत में अमेरिका के सबसे अच्छे दोस्त और अमेरिकी प्रभाव के लिए एक माध्यम के रूप में कार्य किया। शीत युद्ध के वर्षों में समाजवादी नेहरू और उनके उत्तराधिकारियों ने सोवियत संघ को गले लगा लिया था, निश्चित रूप से यह गर्मजोशी कम होनी थी।

भारत से लेकर चीन-जापान तक पैर जमाया

भारत टाटा के लिए घर ही है। यहीं 1830 में जमशेदजी टाटा एक पारसी परिवार में पैदा हुए। उनके नेतृत्व में कंपनी ने पूर्व की ओर देखा। जापान और चीन में पैर जमाए और भारत में कपड़ा और स्टील कंपनी की स्थापना की। उनके बाद इस समूह को जेआरडी टाटा ने मुकाम दिलाया, जिनकी 1993 में 89 वर्ष की आयु में मृत्यु हो गई। उनके बाद एक करीबी रिश्तेदार रतन टाटा हैं, जो 2012 तक समूह के चेयरमैन रहे। अब वे मानद चेयरमैन हैं। कंपनी के पारसी चरित्र ने कई मायनों में इसे भारत में व्यापार की परेशानी से उबरने में मदद की है। पारसी एक छोटा सा समुदाय है। इसके बावजूद इसने ना केवल संपूर्ण देशभक्त भारतीय बनाया, बल्कि भारतीयों की तुलना में पश्चिमी तरीकों को अधिक आसानी से अपनाया। दरअसल टाटा समूह ने सभी से समान रिश्ते रखे, जिससे हर किसी ने अपनाया।


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