लौहनगरी को दिव्यांग बनी रही यह बीमारी, दम तोड़ रहे मरीज
यह बीमारी बहुत ही घातक है ये लौहनगरी को दिव्यांग बना रही है। जी हां! जांच व इलाज के अभाव में हीमोफीलिया मरीजों की जान तेजी से जा रही है।
अमित तिवारी, जमशेदपुर : यह बीमारी बहुत ही घातक है, ये लौहनगरी को दिव्यांग बना रही है। जी हां! जांच व इलाज के अभाव में हीमोफीलिया मरीजों की जान तेजी से जा रही है। कदमा निवासी एक युवक हीमोफीलिया फैक्टर-9 से ग्रस्त था, लेकिन उसे उचित इलाज नहीं मिल सका। अंतत: उसकी मौत हो गई। जिले में फैक्टर-9 के अब भी पांच मरीज हैं। इनका जांच व इलाज की सुविधा शहर में मौजूद नहीं है। सिर्फ फैक्टर-8 की दवा ही महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) व सदर अस्पताल में मिलती है। हालांकि, इसके लिए भी हीमोफीलिया मरीजों को लंबा संघर्ष करना पड़ा।
जमशेदपुर हीमोफीलिया सोसाइटी के अनुसार, पूर्वी सिंहभूम जिले में हीमोफीलिया के कुल 59 मरीज रजिस्टर्ड हैं। इसमें फैक्टर-9 के पांच व फैक्टर-8 के 54 मरीज हैं। विडंबना यह है कि हर साल दो से तीन मरीजों की मौत इलाज के अभाव में हो जाती है। चिकित्सकों के अनुमान में के मुताबिक पांच हजार की आबादी पर हीमोफीलिया के एक मरीज होता है। इस तरह, देखा जाए तो जिले में 450 मरीज होने की संभावना है, लेकिन स्वास्थ्य विभाग की उदासीनता के कारण इन मरीजों की न तो पहचान हो पा रही है और न ही उन्हें इलाज मिल रहा है। जिला स्वास्थ्य विभाग के पास इन मरीजों का कोई आंकड़ा नहीं है। निराशाजनक बात यह भी है कि अबतक जितने मरीजों को चिन्हित किया गया है, उनमें से 90 फीसद आर्थिक रूप से कमजोर हैं। वे दूसरे प्रदेशों में जाकर इलाज कराने में असमर्थ हैं।
हीमोफीलिया मरीजों को की जा रही अनदेखी
जमशेदपुर हीमोफीलिया सोसाइटी के सचिव सौमित्र हाजरा ने बताया कि मरीजों को लेकर विभाग का उदासीन रवैया जारी है। अब एमजीएम में ही देखिए, पहले तो दवा के लिए लड़ना पड़ा और अब बेड के लिए लड़ना पड़ रहा है। उन्होंने कहा कि इलाज के अभाव में अधिकांश हीमोफीलिया मरीज दिव्यांग हो चुके हैं। मरीजों को जब इलाज की जरूरत पड़ती है तो वह एमजीएम पहुंचते हैं, लेकिन उन्हें तीन मंजिला भवन पर जाने को कहा जाता है। ऐसे में चिकित्सकों को समझना चाहिए की दिव्यांग मरीज भला तीन मंजिला भवन पर कैसे चढ़ सकेंगे। इसकी शिकायत सोसाइटी के सदस्यों ने अधीक्षक डॉ. अरुण कुमार से की है।
क्या है हीमोफीलिया
हीमोफीलिया जेनेटिक (अनुवांशिक) बीमारी है। इस बीमारी के कारण रक्त में थक्का बनने की प्रक्रिया बंद हो जाती है। हल्की से चोट लगने पर भी मरीज के घाव से खून बहना शुरू हो जाता है। कभी-कभी मरीज को आंतरिक रक्तस्त्राव भी होता है, जो थक्का न बनने के कारण बंद नहीं होता और उसके शरीर में खून की कमी हो जाती है। खून में थक्का न बनना फैक्टर आठ व नौ की कमी के कारण होता है। ऐसे मरीजों को समय-समय पर इंजेक्शन से देना पड़ता है। इस बीमारी से ग्रस्त मरीजों के हड्डी के जोड़ों में रक्तस्त्राव के कारण सूजन आ जाती है। इसके साथ ही वह दिव्यांग भी होने लगता है। इन मरीजों को ब्रेन हैमरेज, लीवर, पेशाब, मुंह से खून आने की आशंका अधिक रहती है।
क्या है लक्षण
- अधिकतम खून बहना।
- गहरे घाव।
- बड़े जोड़ों में अचानक दर्द।
- बड़े जोड़ों में सूजन और गर्मी।
- लंबे समय तक सिरदर्द।
- अत्यधिक थकान।
- गर्दन दर्द।
मरीजों की हौसला बढ़ा रहे दिव्यांग हाजरा
हीमोफीलिया से ग्रस्त सौमित्र हाजरा दिव्यांग हो चुके हैं, लेकिन दूसरे मरीजों की लड़ाई वह लड़ रहें हैं। सौमित्र कहते हैं कि पहले हीमोफीलिया मरीजों को प्लाजमा, रक्त के लिए पैसे देने पड़ते थे। अब उनके संघर्ष के बाद जमशेदपुर ब्लड बैंक से सबकुछ फ्री मिलता है। वहीं टिनप्लेट अस्पताल में ऐसे मरीजों को सिर्फ 150 रुपये में बेड उपलब्ध होने लगा है।
17 साल से चला रहे सोसाइटी
सौमित्र ने वर्ष 2000 में जमशेदपुर हीमोफीलिया सोसाइटी का गठन किया था। जिले में 59 रोगी जुड़ चुके हैं। इनमें से अधिकांश दिव्यांग हो चुके हैं। हाजरा कहते हैं कि सही ढंग से इलाज नहीं मिल पाने के लोग मरीज दिव्यांग हो रहे हैं। उनकी परेशानी कोई देखने वाला नहीं है। मरीजों की पीड़ा या दर्द शुरू होने के बाद एक मरीज पर 20 हजार से लेकर एक लाख रुपये प्रति माह खर्च आता है जिसे हर कोई वहन नहीं कर सकता।