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World Anaesthesia Day 2019 : ऐसे होते हैं ये बेहोशी वाले डॉक्‍टर, सर्जरी दिल की हो या दिमाग की; इनके बिना संभव नहीं

World Anaesthesia Day 2019. सर्जरी दिल की हो या फिर दिमाग की। छोटी हो या बड़ी। इन डॉक्टरों के बिना ऑपरेशन संभव नहीं है। आइए जानिए कुछ रोचक जानकारी।

By Edited By: Published: Wed, 16 Oct 2019 10:00 AM (IST)Updated: Wed, 16 Oct 2019 12:01 PM (IST)
World Anaesthesia Day 2019 :  ऐसे होते हैं ये बेहोशी वाले डॉक्‍टर, सर्जरी दिल की हो या दिमाग की; इनके बिना संभव नहीं
World Anaesthesia Day 2019 : ऐसे होते हैं ये बेहोशी वाले डॉक्‍टर, सर्जरी दिल की हो या दिमाग की; इनके बिना संभव नहीं

जमशेदपुर, अम‍ित त‍िवारी।  World Anaesthesia Day 2019 सर्जरी दिल की हो या फिर दिमाग की। छोटी हो या बड़ी। इन डॉक्टरों के बिना संभव नहीं है। जी हां, हम बात कर रहे एनेस्थेसिया डॉक्टरों की। जिन्हें बेहोशी वाला डॉक्टर भी कहा जाता है। इनकी जरूरत हर तरह की सर्जरी में पड़ती है।

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इनके हाथ में ही मरीज की जान अटकी होती है। बेहोशी की दवा थोड़ा भी कम या ज्यादा होने पर मरीज की मौत तक हो सकती है। ये डॉक्टर पर्दे के पीछे बड़ी भूमिका निभाते हैं, जिस तरह किसी फिल्म में लेखक व डायरेक्टर की होती है। शहर में कई बेहतर एनेस्थेसिया के डॉक्टर मौजूद है, जो गंभीर मरीजों की सफल सर्जरी कर उनको दूसरी जिंदगी देने का काम किया है। उन्होंने कई ऐसे मरीजों की जान बचायी है, जिसकी आस परिजनों ने छोड़ दी थी। उन मरीजों की दूसरे अस्पतालों ने सर्जरी से इंकार कर दिया था।

बेहोश करने वाली नली में था ट्यूमर, दूसरी नली बनाकर बचा ली जान

आदित्यपुर के सालडीह बस्ती निवासी कविता गोराई (39) की सांस के नली में बड़ा सा ट्यूमर था। जिसका ऑपरेशन करने को कोई डॉक्टर तैयार नहीं था। कविता के परिजनों ने जब उसका कारण पूछा तो उन्हें बताया गया कि उनके ऑपरेशन के लिए एक बेहतर एनेस्थेसिया डॉक्टरों की टीम चाहिए। जो उन्हें असानी से बेहोश कर सकें। कारण, कि जिस सांस की नली से मरीज को बेहोश किया जाता है, उसी में एक बड़ा सा ट्यूमर था। तब एनेस्थेसिया के डॉक्टरों ने अलग से एक नली बनायी और मरीज को बेहोश किया। तब जाकर मरीज का ट्यूमर निकाला गया और उसकी जान बच सकी।

नहीं पता था एनेस्थेसिया का मतलब, अब हमारे लिए भगवान

हल्दीपोखर निवासी गुरुपदो मोदक (54) कहते है कि उनकी जान बचाने में एनेस्थेसिया डॉक्टरों की अहम भूमिका है। ऑपरेशन से पूर्व उन्हें एनेस्थेसिया डॉक्टरों का मतलब नहीं पाता था, लेकिन जब से उनकी जान बची तब से उनकी भूमिका से अवगत हुए। गुरुपदों के दोनों लंग्स के बीच में ट्यूमर था। सर्जरी के लिए उन्हें बेहोश काफी मुश्किल थी, लेकिन डॉक्टरों ने रिक्स लिया। कोलकाता से ट्यूब मंगाया गया और उसके एक तरफ के लंग्स को पचकाया गया, तब जाकर मरीज की सफल सर्जरी संभव हो सकी। मरीज इलाज के लिए कोलकाता, भुवनेश्वर व मेदनीपुर का भी चक्कर लगा चुका था।

एनेस्थेसिया डॉक्टर हो जाते तैयार तो नहीं बेचनी पड़ती जमीन

पश्चिम बंगाल के तितेलागोड़ा निवासी विनोद माझी के खाने वाली नली में ट्यूमर था। उनकी स्थिति इतनी गंभीर हो चुकी थी कि परिजनों ने जीने की आस ही छोड़ दी थी। पश्चिम बंगाल के एक सरकारी अस्पताल में उन्हें इलाज को ले जाया गया तो डॉक्टरों ने कहा कि सर्जरी करनी पडेंगी। यहां पर एक ही बेहोशी के डॉक्टर है। इसके लिए उसे दूसरे दिन बुलाया गया। उस दिन जब मरीज पहुंचा तो बेहोशी वाले डॉक्टर देखा, लेकिन वह एनेस्थेसिया देने को तैयार नहीं हुए। कहा बड़ा ऑपरेशन है इसलिए दूसरे अस्पताल जाना पड़ेगा। इसके बाद मरीज जमशेदपुर के एक अस्पताल में आया। यहां पर इलाज में करीब डेढ़ लाख रुपये से अधिक खर्च बताया गया जिसके लिए उसे जमीन बेचनी पड़ी।

क्यों मनाता जाता एनेस्थेसिया दिवस?

16 अक्टूबर 1846 को अमेरिका के डॉ. डब्लू टीजी मॉर्गन ने एनेस्थेसिया में पहली बार ईथर एनेस्थेसिया का सफल प्रयोग कर दुनिया को दिखाया। एनेस्थेसिया के जगत में ये एक ऐसा प्रयोग था, जिससे पूरा चिकित्सा जगत अचंभित हो गया। इस दिन ईथर के प्रयोग से पहली बार दर्द रहित सर्जरी का रास्ता दुनिया भर के वैज्ञानिकों के सामने खुला।

एनेस्थेटिस्ट के बिना चिकित्सा जगत अधूरा

एनेस्थेटिस्ट के बिना चिकित्सा जगत अधूरा है। ऑपरेशन के दौरान बेहोशी और देखभाल से लेकर दर्द प्रबंधन, पेनलेस लेबर इन सबसे इसी के लिए मरीज को आराम मिल सकता है। इमरजेंसी और ट्रामा तक में इनकी महत्वपूर्ण भूमिका है। नई तकनीकी के आने से चिकित्सा जगत मरीजों की जान बचाने में ज्यादा सक्षम हुआ है।

-डॉ. उमेश प्रसाद, एनेस्थेसिया रोग विशेषज्ञ ब्रहमानंद अस्पताल।


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