दो लाख 23 हजार की आबादी पर सिर्फ दो डॉक्टर, वे भी ड्यटी से गायब
डॉक्टर ही नहीं तो इलाज कौन करेगा। गुरुवार को कुछ ऐसा ही दृश्य मानगो स्थित शहरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर देखने को मिला। दोपहर के दो बज रहे थे। दैनिक जागरण की टीम पहुंची तो चिकित्सक कक्ष बंद पड़ा हुआ था। बाहर में मरीज डॉक्टर के आने का इंतजार कर रहे थे। वहीं दर्जनों मरीज इलाज के अभाव में लौट चुके थे।
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : डॉक्टर ही नहीं तो इलाज कौन करेगा। गुरुवार को कुछ ऐसा ही दृश्य मानगो स्थित शहरी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर देखने को मिला। दोपहर के दो बज रहे थे। दैनिक जागरण की टीम पहुंची तो चिकित्सक कक्ष बंद पड़ा हुआ था। बाहर में मरीज डॉक्टर के आने का इंतजार कर रहे थे। वहीं दर्जनों मरीज इलाज के अभाव में लौट चुके थे। थोड़ा और अंदर जाने पर पब्लिक हेल्थ मैनेजर सरिता कुमारी मिली। उनसे पूछा गया कि डॉक्टर कहां हैं, किसकी ड्यूटी है? तो उन्होंने बताया कि डॉ. स्मिता कुमारी की ड्यूटी थी, वह थोड़ी देर के लिए आई भी थी, लेकिन तबीयत ठीक नहीं होने के कारण लौट गईं। शाम में दूसरी डॉ. पूनम कुमारी आएंगी तो वह मरीजों को देखेगी। इधर, मरीजों का आक्रोश बढ़ते जा रहा था। उनका कहना था कि अगर डॉक्टर ही नहीं तो इलाज कौन करेगा। इससे अच्छा तो ये है कि केंद्र को बंद कर देना चाहिए। मरीज दूसरे जगह इलाज कराने जाते। यहां उम्मीद लेकर आते ही नहीं।
इस केंद्र पर मानगो क्षेत्र के वार्ड नंबर 8, 9 व 10 लोग निर्भर हैं। इसकी जनसंख्या दो लाख 23 हजार 805 है। वहीं गरीबों की संख्या 10 हजार 170 है।
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डॉक्टर, नर्सो की भारी कमी, वह भी समय पर नहीं आते
शहरी स्वास्थ्य केंद्र में ओपीडी सुबह नौ से तीन व शाम में पांच से आठ बजे तक खोलना है। वहीं 24 घंटे प्रसव की सुविधा उपलब्ध करानी है। इसके हिसाब से पांच से छह डॉक्टर की जरूरत है। जबकि सिर्फ दो ही तैनात है। वहीं 15 के बजाए छह नर्स कार्यरत है। ओपीडी में यहां हर माह 1800 से 2000 मरीज इलाज कराने को आते हैं। वर्तमान में सबसे अधिक लू, वायरल फीवर, चर्म, उल्टी-दस्त के मरीज आ रहे हैं। इसमें से 60 फीसद मरीजों को ही दवा मिलती है, बाकि को बाहर से दवा खरीदनी पड़ती है।
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गर्भवती को जाना पड़ता सीढ़ी चढ़ कर प्रथम तल्ले पर
यहां प्रसव कक्ष प्रथम तल्ले पर स्थापित है। वहां जाने के लिए सीढ़ी चढ़कर जाना पड़ता है। सामान्य ढंग से 24 घंटे प्रसव की सुविधा है। सर्जरी होने की स्थिति में गर्भवती को महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल या फिर टाटा मुख्य अस्पताल (टीएमएच) रेफर कर दिया जाता है। ऐसी स्थिति में गर्भवती सीढ़ी से उतर नहीं पाती। उन्हें गोदी में उठाकर नीचे लाना पड़ता है। ऐसी स्थिति में कभी भी बड़ा हादसा हो सकता है। केंद्र के कर्मचारियों का कहना है कि अगर, गर्भवती के साथ पुरुष परिजन नहीं होते तो उन्हें सीढ़ी से उतारने में काफी परेशानी होती है। कभी-कभार तो बाहर से दुकानदारों को भी बुलाना पड़ता है।
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गर्मी में नहीं खुला ओआरटी कॉर्नर
बढ़ते गर्मी को देखते हुए जिले के सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर ओरल डिहाइड्रेशन ट्रिटमेंट (ओआरटी) कॉर्नर खोलने का निर्णय लिया गया था लेकिन यहां पर अबतक नहीं खुल सका है। इसका उद्देश्य केंद्रों पर पहुंचने वाले मरीज व उनके अटेंडरों को पानी के साथ ओआरएस घोल उपलब्ध कराना है। जिससे लोगों को लू से बचाया जा सके।
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डॉक्टरों की सूची भी अपडेट नहीं
केंद्र पर पूर्व के डॉक्टर व कर्मचारियों की सूची लगी हुई है। इसमें डॉ. जेपी लाल, डॉ. झरना बनर्जी का नाम अंकित है। वहीं कई कर्मचारी व दवाओं की सूची भी अपडेट नहीं है। नॉन कम्युनिकेबल डिजीज (एनसीडी) क्लिनिक भी बंद पड़ा हुआ था।
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यहां यह सुविधा उपलब्ध
- ओपीडी सुबह 9 से 3 तक। शाम में 5 से 8 बजे तक।
- सामान्य ढंग से 24 घंटे प्रसव।
- सभी तरह के टीकाकरण।
- पैथोलॉजी जांच : इसमें टीबी, मलेरिया, एचआइवी, शुगर, हीमोग्लोबिन सहित अन्य।
- फार्मेसी की सुविधा।
- धूमपान करने पर 200 रुपये जुर्माना।
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पत्नी को इलाज कराने लाया हूं। लेकिन यहां पर डॉक्टर मौजूद नहीं है। जिसके कारण काफी देर से बैठा हूं। डॉक्टर कब आएंगे, इसकी कोई जानकारी नहीं है।
- जुबैर खान, जवाहरनगर।
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डॉक्टर को समय पर नहीं आने से मरीजों को इंतजार करना पड़ता है। सरकार अगर उन्हें तैनात किया है तो उन्हें खुद ही अपनी जिम्मेदारी समझनी चाहिए।
- सरिता देवी, बालीगुमा।
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