कचरे और राख से पत्थर जैसे मजबूत फुटपाथ, जानिए कैसे हुआ मुमकिन
राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला जमशेदपुर के वैज्ञानिकों ने फ्लाइएश व स्लैग (लौह उत्पादन में प्रयुक्त कोयले आदि का जला हुआ चूर्ण) के निस्तारण के लिए वैकल्पिक उपायों की तलाश की है।
जमशेदपुर [विकास श्रीवास्तव]। औद्योगिक विकास जहां तरक्की के द्वार खोलता है वहीं इसके नकारात्मक पहलू ने नीति-नियंताओं के साथ ही तकनीकी विशेषज्ञों को चिंता में डाल रखा है। हालात का अंदाजा इस एक तथ्य से लगाया जा सकता है कि भारत में प्रतिवर्ष 180 मीट्रिक टन फ्लाइएश (लौह उत्पादन की प्रक्रिया में निकलने वाली एक प्रकार की राख) निकलता है। स्टील उत्पादन वाले कई क्षेत्रों में तो स्थिति यह है कि इस फ्लाइएश का निस्तारण बहुत बड़ा सिरदर्द बन चुका है। ऐसी कोई जगह नहीं मिल रही जहां इसे डंप किया जाए।
एनएमएल ने तैयार की फ्लाइ ऐश, स्टील स्लैग से पेविंग ब्लॉक की तकनीक
राष्ट्रीय धातुकर्म प्रयोगशाला जमशेदपुर के वैज्ञानिकों ने फ्लाइएश व स्लैग (लौह उत्पादन में प्रयुक्त कोयले आदि का जला हुआ चूर्ण) के निस्तारण के लिए वैकल्पिक उपायों की तलाश की। एनएमएल के रिसाइक्लिंग एंड वेस्ट यूटीलाइजेशन ग्रुप से जुड़े वैज्ञानिकों ने एक ऐसी तकनीक विकसित की है जिससे फ्लाइ एश व स्लैग का पुन: उपयोग कर उससे पैवर्स ब्लॉक (फुटपाथ तैयार करने में लगाए जानेवाले विभिन्न साइज के ब्लॉक) का निर्माण किया जा सकता है। इससे एक फैक्टरी से निकलनेवाले कचरे के निस्तारण की समस्या दूर होने के साथ ही उसका बेहतर उपयोग सामने आया है।
कम लागत, अधिक मजबूती के साथ पर्यावरण अनुकूल भी
एनएमएल की तकनीक पर फैक्टरी वेस्ट से तैयार होनेवाले पैवर्स ब्लॉक सीमेंट से तैयार होनेवाले पैवर्स ब्लॉक की अपेक्षा कम लागत में तैयार किए जा सकते हैं। साथ ही ये सीमेंटेड के मुकाबले हल्के लेकिन अधिक मजबूत होते हैं। इसके निर्माण में परंपरागत समकक्ष उत्पाद की तुलना में 30 प्रतिशत कम कार्बन डाइ ऑक्साइड व 35 प्रतिशत कम अवशोषित ऊर्जा उत्पन्न होत है। कम कार्बनडाइऑक्साइड उत्सर्जन के कारण इसे ग्रीन प्रौद्योगिकी की श्रेणी में रखा गया है। इन पैवर्स ब्लॉक का उपयोग फुटपाथ के अलावा लाउंज, बगीचे, पार्क, पेट्रोल पंप और यहां तक कि आंगन में भी किया जा सकता है। जरूरत के हिसाब से विभिन्न शेप व साइज के पैवर्स ब्लॉक बनाए जा सकते हैं।
टाटा पावर को हस्तांतरित की गई तकनीक
एनएमएल ने इस तकनीक के विकास के बाद विस्तृत कार्ययोजना तैयार कर जमशेदपुर में टाटा पावर को तकनीक के साथ हस्तांतरित किया है। टाटा पावर की ओर से पैवर्स ब्लॉक निर्माण की उत्पादन इकाई स्थापित करने की पक्रिया शुरू की गई है। इसमें कंपनी से निकलनेवाले फ्लाइ एश का इस्तेमाल किया जाएगा। प्रायोगिक उत्पादन की सफलता को देखने के बाद इसे बड़े पैमाने पर उत्पादन की इकाई लगाने पर विचार किया जा सकता है। टाटा पावर से मिली जानकारी के अनुसार बिजली उत्पादन प्रक्रिया में प्रतिदिन 2000 मीट्रिक टन फ्लाइ एश निकलता है।
कचरे का निस्तारण चिंता का विषय
फैक्टरी से निकलनेवाले कचरे का निस्तारण बहुत बड़ी चिंता का विषय बना हुआ है। इस तरह की तकनीक की जरूरत थी जिससे कचरा निस्तारण के लिए उसकी रिसाइक्लिंग कर पुन: उपयोग लायक उत्पाद तैयार किए जा सकें। एनएमएल ने यह तकनीक विकसित की है जिसे जमशेदपुर में उत्पादन के लिए टाटा पावर को हस्तांतरित किया गया है।
- संजय कुमार, सीनियर प्रिंसिपल साइंटिस्ट एनएमएल