गोल्ड लाने वाली खिलाड़ी गंगा बना रही कागज के लिफाफे
olympic. एथेंस स्पेशल ओलंपिक वर्ल्ड समर गेम्स में भारतीय दल का प्रतिनिधित्व कर गोल्ड और सिल्वर मेडल जीत कर लाने वाली दिव्यांग खिलाड़ी आज कागज के ठोंगे बना रही है।
जमशेदपुर [ जितेंद्र सिंह]। यह कहानी आपको हलकान कर देगी। आप एकबारगी भरोसा नहीं कर पाएं, लेकिन है सोलहो आने सच। वर्ष 2011 में एथेंस में हुए स्पेशल ओलंपिक वर्ल्ड समर गेम्स में भारतीय दल का प्रतिनिधित्व कर देश के लिए गोल्ड और सिल्वर मेडल जीत कर लाने वाली दिव्यांग खिलाड़ी आज कागज के ठोंगे बना रही है। जी हां, मूक-बधिर गंगाबाई ठोंगा (कागज का पैकेट) और थैला बनाकर जीवन यापन कर रही।
देश का मान बढ़ाने वाली इस अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी की उपेक्षा खेलों को लेकर हमारी सोच और नीति पर सवाल खड़े करती है। शीर्ष उपलब्धियों के बावजूद गंगा को केंद्र या राज्य सरकार से कोई मदद नहीं मिल सकी।बैडमिंटन की दीवानी गंगाबाई जन्म से ही मूक-बधिर हैं। झारखंड के जमशेदपुर में विशेष बच्चों के लिए बनाए गए स्कूल ऑफ होप में रह कर उन्होंने खुद को इस कदर तराशा कि खेल जगत में शीर्ष उपलब्धि अर्जित की। वर्ल्ड समर गेम्स में झटके थे एक गोल्ड और दो सिल्वर
झारखंड के पूर्वी सिंहभूम के जमशेदपुर के सोनारी मोहल्ले में रहनेवाली इस बहादुर बिटिया ने वर्ष 2011 में एथेंस में आयोजित वर्ल्ड समर गेम्स में भारतीय दल की अगुवाई की थी। एक गोल्ड और दो सिल्वर झटक कर सबको चौंका दिया था। स्पेशल बच्चों के लिए आयोजित राष्ट्रीय चैंपियनशिप में बेहतरीन प्रदर्शन कर कई पुरस्कार जीते। आज भी बैडमिंटन से गहरा नाता है। जीविका के लिए भी वे आत्मनिर्भर हैं, भले ही ठोंगा बना रही हों, पर लाचार नहीं हैं।
अवतार सिंह ने गंगाबाई को तराशा
गंगाबाई जन्म से ही बोलने और सुनने में अक्षम थीं। घर-परिवार के लोग उदास थे। लेकिन कुदरत को कुछ और ही मंजूर था। एक दिन स्वयंसेवी संस्था जीविका की उस पर नजर पड़ी। विशेषज्ञ अवतार सिंह ने गंगाबाई के भीतर छिपी प्रतिभा को पहचान लिया। फिर इस कदर तराशा कि गंगाबाई हीरे की तरह चमक उठीं। गंगाबाई और उनके माता-पिता आज भी अवतार सिंह को भगवान की तरह सम्मान देते हैं।
टाटा स्टील के कैलेंडर में छपी थी गंगा की पेंटिंग
जीविका के अवतार सिंह ने ही उसे कागज का थैला व ठोंगा बनाने का प्रशिक्षण दिया था। अवतार सिंह बताते हैं कि गंगाबाई बहुत मेहनत करती है। उसे जितना काम दिया जाता है पूरा कर दोबारा काम मांगने चली आती है।खेल के साथ-साथ अपनी भावनाओं को कैनवास पर उकेरने वाली गंगाबाई शानदार पेंटिंग भी बनाती हैं। उनकी एक पेंटिंग को टाटा स्टील ने अपने वार्षिक कैलेंडर में भी स्थान दिया था। तमाम मजबूरियों के बाद भी शहर के आयोजनों में उनकी सक्रियता देखते बनती है। वह नृत्यकला में भी रुचि रखती हैं। शहर की कला बिरादरी में उन्हें हर कोई सम्मान की नजर से देखता है।
उठा रहीं परिवार का बोझ
खेल और कला के क्षेत्र में निपुण होने के बावजूद गंगा कागज का पैकेट और थैला बनाने का काम करती हैं। यही जीवन-यापन का जरिया है। गंगा के कंधे पर ही 75 साल के पिता सोहनलाल, मां दुगधी देवी और एक छोटे भाई का बोझ है।
ये भी जानें
- एथेंस स्पेशल ओलंपिक्स में किया था भारतीय दल का प्रतिनिधित्व, जीता था बैडमिंटन का स्वर्ण
- बोलने-सुनने में अक्षम गंगा ने स्कूल ऑफ होप में रहकर खुद को तराशा
- राष्ट्रीय चैंपियनशिप में भी बेहतरीन प्रदर्शन कर जीते कई पदक
- अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी होने के बावजूद राज्य सरकार से नहीं मिली कोई मदद
- अब जीवनयापन के लिए बना रही कागज का ठोंगा