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तालीम की खातिर तोड़ी उम्र की बेड़ियां

पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला का हेदलजुड़ी गांव महिला शिक्षा के मामले में मिसाल पेश कर रहा है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 11 Sep 2018 10:57 AM (IST)Updated: Tue, 11 Sep 2018 03:47 PM (IST)
तालीम की खातिर तोड़ी उम्र की बेड़ियां
तालीम की खातिर तोड़ी उम्र की बेड़ियां

सुजीत सरकार, गालूडीह : कोल्हान प्रमंडल के पूर्वी सिंहभूम के जिला मुख्यालय जमशेदपुर से चालीस किलोमीटर पूरब अवस्थित हेंदलजुड़ी और कांकड़ीशोल गांव। इस गांव में बदलाव की बही बयार सकूनदायक तो है ही आधी आबादी की जिद्दोजहद का खास नमूना भी। यहां की महिलाओं ने तालीम की खातिर उम्र की बेड़ियां तोड़ डाली है और नतीजा है कि कल तक अंगूठा लगानेवाली महिलाएं आज की तारीख में ¨हदी और अंग्रेजी में न केवल हस्ताक्षर बना रही हैं बल्कि काम चलाने लायक पढ़ -लिख भी ले रही हैं। इन महिलाओं में तीस वर्ष से 65 आयुवर्ग की कोई चालीस महिलाएं हैं। इन्हें अक्षर ज्ञान देनेवाली भी कोई और नहीं, गांव की दो बहुएं ही हैं।

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घाटशिला अनुमंडल के दोनों ही गांव में अशिक्षित महिलाओं को शिक्षित करने के लिए व्यक्ति विकास केंद्र नामक संस्था पिछले एक वर्ष से पौढ़ शिक्षा केंद्र संचालित कर रही है। इस केंद्र की शुरुआत 10 महिलाओं से हुई। वर्तमान में 40 महिलाएं शिक्षित होने के लिए पढ़ाई कर रही हैं। इनमें 65 वर्ष की वृद्धा भी शामिल है। गांव की दो बहू मैना मांझी व अंजली मुखर्जी सप्ताह में तीन दिन इन्हें पढ़ाती हैं।

कैसे शुरू हुआ पौढ़ शिक्षा केंद्र व्यक्ति विकास केंद्र की ओर से संचालित विद्यालय की प्रधानाध्यापिका रंजना सत्पथी बताती हैं कि जब महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए सिलाई व कढ़ाई का प्रशिक्षण केंद्र खोला गया तब आसपास के गांव की महिलाएं अपना नाम तो दूर ठीक से अंगूठा भी नहीं लगा पा रही थी। तभी सोच लिया कि इन महिलाओं को शिक्षित करने की जरूरत है। केंद्र के निदेशक के साथ इस बारे में बात की और 26 जनवरी 2017 को पौढ़ शिक्षा केंद्र खोला गया। दिन यादगार रहे इसलिए गणतंत्र दिवस का दिन चुना गया। केंद्र तोशुरू हो गया लेकिन इससे महिलाओं को जोड़ने का काम आसान नहीं था। शुरुआती छह महीने में बमुश्किल 10 महिलाएं जुड़ीं। लेकिन सफर आगे बढ़ा और आज की तारीख में इनकी संख्या 40 पहुंच गई है। इनमें 30- 65 आयुवर्ग की महिलाएं हैं जो नियमित उपस्थित होती हैं।

इनकी भी सुनें

शिक्षा से बड़ा धन और कुछ नहीं होता। यह अहसास मुझे तब हुआ जब पेंशन लेने बैंक जाती थी। वहां राशि निकासी के लिए बैंक रसीद भरवाने के लिए दूसरे को आग्रह करना पड़ता था। कई लोगों ने अनपढ़ होने का अहसास भी दिलाया। तब मैंने ठान लिया कि अब खुद लिखूंगी। मैंने केंद्र में पढ़ाई के लिए आना शुरू कर दिया। अब किसी का मोहताज नहीं हूं।

-सरस्वती मांझी, 65 वर्ष

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परिवार में आर्थिक संकट था। घर चलाने के लिए काम करना पड़ता था इसलिए पढ़ाई नहीं कर पायी। अशिक्षित होने के कारण मेरी शादी का रिश्ता कई बार टूट चुका है। जो भी आते वो पढ़ाई के बारे में पूछते थे। मुझे अहसास हुआ कि शिक्षित होना जरूरी है। उसके बाद केंद्र में दाखिला लिया और अब पढ़ना-लिखना सीख गई हूं।

-देविका पातर, 30 वर्ष

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मेरे मायके में स्कूल गांव से काफी दूर था। पढ़ाई नहीं कर पाई। पर शादी के बाद बच्चे जब पढ़ाई के लिए किताब लेकर आते तो मुझे शर्मिंदगी महसूस होने लगी। तब मैंने मन ही मन सोच लिया कि मुझे शिक्षित होना है। अब पढ़ने-लिखने लगी हूं।

-भानूप्रिया पातर,35 वर्ष।


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