पुत्री की इच्छा रखने वाली महिलाओं के लिए यह व्रत उत्तम
पुत्री की इच्छा रखने वाली महिलाओं के लिए यह व्रत उत्तम माना गया है। मान्यता के अनुसार इस तिथि को व्रत करने से जहां तन मन शीतल रहता है, वहीं चेचक से भी मुक्त रहते हैं।
जमशेदपुर [दिलीप कुमार]। हर क्षेत्र की अलग-अलग मान्यता और परंपराएं हैं। उन्हीं में से एक परंपरा है बसंत षष्ठी के दिन मनाया जाने वाला सीजानो पर्व। सीजानो के मौके पर माता शीतला की पूजा की जाती है। इसलिए इसे शीतला षष्ठी भी कहा जाता है। इस दिन श्रद्धालु बासी भोजन करते हैं। बंगाली समाज के अलावा पश्चिम बंगाल और ओडिशा से सटे कोल्हान क्षेत्र में बसंत षष्ठी की पूजा धूमधाम से की जाती है। इसमें नौ प्रकार के गोटा दाल व सब्जी के मिश्रण (सीजानो) एवं ठंडा भात माता शीतल षष्ठी को अर्पण के बाद बासी भोजन ग्रहण किया जाएगा। इस पर्व का प्रचलन खास कर बंगाली समाज में होता है, जो वर्ष में एक बार माघ माह के षष्ठी के दिन मनाया जाता है। क्षेत्र में सीजानो खाने और खिलाने की परंपरा रही है।
नहीं जलेंगे चूल्हे, होगी पूजा
शीतला षष्ठी के दिन लोग चूल्हा नहीं जलाते हैं, बल्कि चूल्हे की पूजा करते हैं। इस दिन सुबह विधि-विधान के साथ घरों में सील लोढ़ा (सिलबट्टे) और चूल्हे की भी पूजा की जाती है। षष्ठी का व्रत माघ माह में शुक्ल पक्ष की षष्ठी तिथि को शीतला माता के नाम से किया जाता है। यह व्रत परिवार की सुख समृद्धि, पुत्र प्रदान करने वाला एवं सौभाग्य देने वाला है। पुत्री की इच्छा रखने वाली महिलाओं के लिए यह व्रत उत्तम माना गया है। मान्यता के अनुसार इस तिथि को व्रत करने से जहां तन मन शीतल रहता है, वहीं चेचक से भी मुक्त रहते हैं।
नौ प्रकार के दाल व सब्जी का मिश्रण सीजानो
सीजानो यानी गोटा सिद्धो में नौ प्रकार के दाल व सब्जी का मिश्रण होता है। बसंत पंचमी की रात सीजानो बनाने के साथ ही घर का चूल्हा बंद कर दिया जाता है। इसके बाद सप्तमी के दिन घर का चूल्हा जलाया जाता है। परिवार में से कोई व्रती सीजानो बनाता या बनाती है। सीजानो बनाने के लिए राजमा, कुल्थी, बिरी, चना, बेर, सेम, मुनगा फूल और कच्चू मिलाया जाता है। सिल लोढ़ा (सिलबट्टा) रखकर की जाने वाली षष्ठी पूजा में भी विशेष प्रकार का प्रसाद चढ़ाया जाता है। आठ कलाई (आठ प्रकार के भुंजा), मीठा और पीठा देकर पूजा किया जाता है। क्षेत्र विशेष पर सीजानो मनाने का तरीका अलग-अलग है। कुछ लोग सीजानो में मछली बनाते हैं, जबकि कुछ लोग इस पूजा में शाकाहारी खाना बनाते हैं।
नहीं बनेगा डुबू पीठा
स्थानीय कुड़मी समाज में सीजानो के दिन से डुबू (उंधी) पीठा बनना बंद हो जाता है। कुड़मी समाज में मकर संक्रांति के एक दिन पहले बांउड़ी के दिन से डुबू (उंधी) पीठा बनना शुरू होता है जो बसंत पंचमी के एक दिन बाद षष्ठी के दिन बंद हो जाता है। इसके बाद समाज के लोग वर्षभर डुबू (उंधी) पीठा नहीं बनाते हैं।