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पांच कदम तो उठाइए, बदल जाएगी एमजीएम अस्पताल की सूरत

अगर पांच सुधार कर दिए जाएं तो एमजीएम अस्पताल पूर्वी सिंहभूम की ‘कराह’ रही चिकित्सा व्यवस्था के लिए रामबाण साबित हो सकता है।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Mon, 08 Apr 2019 02:43 PM (IST)Updated: Mon, 08 Apr 2019 02:43 PM (IST)
पांच कदम तो उठाइए, बदल जाएगी एमजीएम अस्पताल की सूरत
पांच कदम तो उठाइए, बदल जाएगी एमजीएम अस्पताल की सूरत

जमशेदपुर,अमित तिवारी। महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) अस्पताल वैसे तो खुद ‘बीमार’ है, लेकिन इस अस्पताल में अगर पांच सुधार कर दिए जाएं तो यह न सिर्फ पूरे जिले के गरीब गुरबों के लिए संजीवनी साबित होगा, बल्कि पूर्वी सिंहभूम की ‘कराह’ रही चिकित्सा व्यवस्था के लिए रामबाण इलाज भी साबित होगा।

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मौजूदा व्यवस्था में जिले व इसके करीब 80 किमी के दायरे में रहने वाले गरीबों के लिए यही एकमात्र अस्पताल जीवन का इकलौता अंतिम सहारा है। गरीबों की जान यहां बची तो ठीक, न बची तो मौत ही आखिरी रास्ता बचता है। बावजूद इसके वर्षो से यह अस्पताल अव्यवस्था का दंश ङोल रहा है। डॉक्टर बहुत कम हैं। जो हैं, वे भी प्राइवेट प्रैक्टिस में ज्यादा व्यस्त रहते। करोड़ों के मेडिकल उपकरण हजार रुपये में ठीक होने वाली तकनीकी समस्याओं के कारण बंद पड़े हैं।

गरीब जाएं तो कहां

गरीब जाएं तो जाएं कहां। चाहकर भी प्राइवेट अस्पतालों में नहीं जा सकते। शहर के प्राइवेट अस्पतालों में एक दिन का बेड चार्ज ही डेढ़ हजार से तीन हजार रुपये तक लगता है। इनमें गरीब क्या इलाज कराएंगे, कैसे इलाज कराएंगे। एमजीएम में रोज करीब 20-30 मरीज ऐसे आते हैं, जो प्राइवेट अस्पताल में इलाज कराने के बाद पैसे खत्म होने पर छुट्टी करा यहां आते हैं। ऐसे में एमजीएम अस्पताल में ये पांच सुधार यहां क्रांतिकारी बदलाव ला सकते हैं जो गरीबों के लिए वरदान साबित होगा।

एक रेडियोलॉजिस्ट के भरोसे 560 बेड का अस्पताल 

एमजीएम अस्पताल के रेडियोलॉजी विभाग में सिर्फ एक रेडियोलॉजिस्ट है। उनके भरोसे 560 बेड का अस्पताल चल रहा है। वर्तमान में पांच रेडियोलॉजिस्ट की जरूरत है। अस्पताल में छह एक्सरे मशीन, एक सिटी स्कैन व एक अल्ट्रासाउंड मशीन है। मशीनों की संख्या लगातार बढ़ी पर चिकित्सकों की बहाली बीते कई वर्षो से नहीं हुई है। मशीन बढ़ने से मरीजों को लंबी कतार तो नहीं लगानी पड़ेगी लेकिन रिपोर्ट के लिए इंतजार करना पड़ता। आखिर, एक डॉक्टर एक दिन में कितने मरीजों का रिपोर्ट तैयार करेंगे। इधर, मेडिकल काउंसिल ऑफ इंडिया के अनुसार, अस्पताल में दो नये अल्ट्रासाउंड मशीन लगाने की तैयारी है।

व्यवस्था में सुधार के लिए करनी होगी ये पांच पहल

-एमजीएम में डॉक्टर समेत कर्मचारियों की संख्या आवश्यकता से 75 फीसद कम है। उन रिक्त पदों को भर दिया जाए।

-मरीजों के हिसाब से अस्पताल में बेड की संख्या बढ़ानी होगी। फिलहाल 560 बेड हैं। इसे 100 बेड किया जाए।

-सभी सीनियर, जूनियर डॉक्टर व कर्मचारी अपनी-अपनी जिम्मेदारी समङों। उन्हें व्यवहार में भी लानी होगी नरमी।

-संक्रमण रोकने के लिए अस्पताल में रखनी होगी बेहतर साफ-सफाई।

-मरीजों को सभी तरह की दवा व जांच आसानी से उपलब्ध हो। इसके लिए आवश्यक कदम उठाए जाएं।

ये है इस अस्पताल की बड़ी समस्या

एमजीएम अस्पताल के डॉक्टरों के भरोसे ही शहर के अधिकांश निजी नर्सिग होम चल रहे हैं। एमजीएम के कुछ डॉक्टर अपने ड्यूटी पर भले ही न मिले पर वह दूसरे निजी अस्पतालों में जरूर मरीज देखते मिल जाएंगे। वहां समय पर पहुंचते हैं। इसकी शिकायत अधीक्षक को मिलने के बाद उन्होंने सभी डॉक्टरों को समय पर ड्यूटी आने व जाने का निर्देश जारी किया था।

कम संसाधन में डॉक्टर कर चुके कमाल

28 मार्च 2015 को एमजीएम के दो डॉक्टरों ने ऐसा कमाल किया कि उसकी चर्चा देशभर में हुई थी। अस्पताल में मैकेनिकल वेंटिलेटर मशीन (कीमत 3.50 से चार लाख रुपए) नहीं थी। इसी बीच एक गंभीर नवजात को अस्पताल लाया गया। तभी डॉ. मनीष कुमार व डॉ. रविकांत ने देसी जुगाड़ से महज 100 रुपए के खर्च में डिवाइस (उपकरण) तैयार किया और सूझबूझ से शिशु की जान बचा ली। नवजात बालीगुमा बगान एरिया निवासी सिदाम राय का बेटा था। इसी तरह, नौ नवंबर 2018 को चाईबासा के एक मरीज की डॉक्टरों ने जान बचाकर उपलब्धि हासिल की। 11 साल के बच्चे का पटाखा फटने से पेट झुलस गया था और आंत बाहर निकल आयी थी। उसकी स्थिति काफी गंभीर थी, लेकिन सर्जरी विभाग में बच्चे को भर्ती किया गया और सफल सर्जरी हो सकी। तीन घंटे तक बच्चे की सर्जरी कर उसके आंत को अंदर किया गया था।

बन जाए मशीन तो इलाज के लिए नहीं जाना होगा बाहर

एमजीएम में 5 करोड़ 17 लाख 50 हजार रुपये की अलग-अलग मशीनें धूल फांक रही हैं। इसमें कई ऐसी मशीन भी शामिल है जिसे बना देने के बाद मरीजों को इलाज के लिए बाहर जाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। इमरजेंसी विभाग में डेढ़ करोड़ रुपये की लागत से तैयार हुई मॉड्यूलर ऑपरेशन थियेटर (ओटी) पर भी ताला लटक रहा है। कभी-कभी ही खुलता है।

निजी में लेप्रोस्कोपी सर्जरी पर 40 हजार खर्च, जंग खा रही मशीन

निजी अस्पतालों में लेप्रोस्कोपी सर्जरी कराने पर मरीजों को 30 से 40 हजार रुपये खर्च करना पड़ता है जबकि एमजीएम में यह मशीन जंग खा रही है। लेप्रोस्कोपी मशीन की कीमत करीब 50 लाख रुपये है।

एमजीएम में 281 तरह की आएगी दवाएं

स्वास्थ्य विभाग ने एमजीएम अस्पताल में 281 तरह की दवाइयां उपलब्ध कराने का निर्णय लिया है। चार चरणों में ये दवाइयां उपलब्ध कराई जाएंगी। इसकी प्रक्रिया शुरू कर दी गई है।

ये कहते अधीक्षक

मरीजों को बेहतर चिकित्सा देने की कोशिश की जा रही है। जो खामियां सामने आती है उसे चिह्न्ति कर दूर किया जाता है। सभी को जिम्मेदारी समझनी होगी।

- डॉ. अरुण कुमार, अधीक्षक, एमजीएम।


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