Move to Jagran APP

पहले ससुर फिर बहू ने थामी जंगल रक्षा की कमान, 27 साल से जारी है सफर

ससुर ने जंगल की रक्षा का जो अभियान शुरू किया उसे बहू आगे बढ़ा रही है। 27 साल से जंगल की रक्षा कर झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के सिरका गांव के 170 लोग कर रहे हैं।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Sat, 25 Jan 2020 12:54 PM (IST)Updated: Sat, 25 Jan 2020 03:52 PM (IST)
पहले ससुर फिर बहू ने थामी जंगल रक्षा की कमान, 27 साल से जारी है सफर
पहले ससुर फिर बहू ने थामी जंगल रक्षा की कमान, 27 साल से जारी है सफर

जमशेदपुर, मनोज सिंह। झारखंड के  घाटशिला वनक्षेत्र के सिरका जंगल जहां 27 साल पहले केवल झाड़ीनुमा जंगल था, लेकिन आज 200 एकड़ जमीन पर साल के पेड़ों से घना जंगल बन गया है। इसका श्रेय जाता है सिरका गांव निवासी स्व. शैलेंद्र मुर्मू को। शैलेंद्र मुर्मू का 74 वर्ष की उम्र में 2019 में निधन हो गया। अपने निधन से पूर्व 2018 में ही शैलेंद्र मुर्मू ने अपनी बहू संगीता मुर्मू को जंगल रक्षा का कमान सौंप दिया। गांव में ग्राम वन प्रबंधन एवं संरक्षण समिति बनाया गया। जिसकी अध्यक्ष संगीता मुर्मू व कोषाध्यक्ष गणेश हांसदा के साथ 170 सदस्य हैं। 

loksabha election banner

आज अपनी समिति की मदद से संगीता मुर्मू जब जंगल की ओर जाती है तो लकड़ी माफिया कांपने लगते हैं। इसका सबसे बड़ा कारण है समिति के लोगों का एकजुट होकर जंगल की रक्षा करना। संगीता मुर्मू कहती हैं कि मेरे चाचा ससुर 1992 से ही जंगल की रक्षा करते आ रहे थे। आज जब मुझे कमान सौंपी गई है तब हर तरह से जंगल की रक्षा के लिए न दिन देखती हूं और न रात, सूचना मिलते ही अपने सहयोगियों के साथ जंगल की ओर कूच कर जाती हूं। समिति की ओर से अब तक दो लोगों को पकड़ कर जेल भिजवाया गया। यही कारण है कि सिरका जंगल पूरी तरह साल के पेड़ों से अच्छादित है मानो कोई पर्यटन स्थल हो। 

वनरक्षियों की कमी के कारण खुद उठाया बीड़ा

समिति के वरिष्ठ सदस्य गणेश हांसदा कहते हैं कि वह पुराने समय से ही समिति से जुड़े हैं। पहले वन विभाग द्वारा पौधे तो लगाए जाते थे, लेकिन वनकर्मियों की कमी के कारण कोई देखने नहीं आते थे। इसके बाद ही गांव के लोगों ने एक समिति बनाकर जंगल रक्षा की बीड़ा उठाया। जिसका परिणाम है कि आज साल के घने जंगल बन गए। 

जंगल बढऩे से रोजगार का साधन हुआ उपलब्ध 

जंगल बढऩे से गांव के लोगों को घर बैठे रोजगार मिलने लगा। पहले खाना पकाने के लिए दूर-दूर से लकड़ी लाना पड़ता था, लेकिन अब अपने जंगल से ही सूखी लकड़ी, आंधी से टूटे पेड़ों को जलावन के रूप में प्रयोग करते हैं। हरे पत्ते की टहनिया से दतवन जमा करते हैं। उसे भी बाजार में बिक्री करते हैं। यही नहीं जंगल के पत्ते से गांव की महिलाएं पत्तल बनाती हैं और जमशेदपुर के अलावा स्थानीय बाजार में बिक्री कर देती हैं। बरसात के दिनों में साल के जड़ के पास बड़े पैमाने पर मशरूम पैदा होते हैं, जो बाजार में महंगे दामों में बिक्री होती है। इससे इनकम हो जाती है। संगीता कहती हैं कि जंगल की रक्षा करने से ही लाभ ही लाभ है। जलावन से लेकर रोजी-रोटी का साधन तो है ही साथ में पर्यावरण की रक्षा भी हो रही है। संगीता मुर्मू कहती हैं कि अब तक वन विभाग खासकर घाटशिला वनक्षेत्र के रेंजर दिनेश कुमार सिंह हौसला बढ़ाते हैं। वन विभाग की ओर से एक बार समिति को 50 हजार रुपये भी दिए गये थे, जिसका उपयोग सामाजिक कामों में किया गया। 


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.