जमशेदपुर के लोग लॉकडाउन में उठाएंगे ऑनलाइन फिल्म फेस्टिवल का मजा Jamsdhepur News
सिनेप्रेमियों के लिए फेडरेशन ऑफ फिल्म सोसाइटीज ऑफ इंडिया (एफएफएसआइ) ऑनलाइन फिल्म फेस्टिवल करा रही है जिसका मजा कोई भी उठा सकता है।
जमशेदपुर (वीरेंद्र ओझा)। लॉकडाउन में करीब चार माह से मल्टीप्लेक्स-थियेटर बंद हैं। कलाकारों के साथ-साथ सिनेप्रेमी भी निराश-उदास हैं। ऐसे ही सिनेप्रेमियों के लिए फेडरेशन ऑफ फिल्म सोसाइटीज ऑफ इंडिया (एफएफएसआइ) ऑनलाइन फिल्म फेस्टिवल करा रही है, जिसका मजा कोई भी उठा सकता है। जमशेदपुर स्थित सेल्यूलायड चैप्टर के सौजन्य से 20-26 जुलाई तक होने वाले इस फेस्टिवल की फिल्मों का लुत्फ उठाने के लिए ना कोई रजिस्ट्रेशन कराने की आवश्यकता है, ना कोई शुल्क देना है। इसके लिए कोई पासवर्ड भी नहीं लेना होगा। बस वीआइएमइओ डॉट कॉम पर जाइए या वीमियो (1द्बद्वद्गश) एप मोबाइल पर डाउनलोड कर लीजिए। बस आपके पास फिल्मों की पूरी सूची आ जाएगी। क्लिक करिए और देखते रहिए एक से बढ़कर एक चुनिंदा फिल्म।
यह फिल्म फेस्टिवल जमशेदपुर स्थित सेल्यूलायड चैप्टर के सहयोग से हो रहा है। एफएफएसआइ के उपाध्यक्ष प्रेमेंद्र मजूमदार बताते हैं कि फेस्टिवल के सातवें संस्करण में हिंदी, उर्दू, अंग्रेजी, बंगाली, असमिया, मलयाली, मराठी के अलावा श्रीलंका, बांग्लादेश व नेपाल की 10 से 140 मिनट तक की अवधि वाली 27 फिल्में उपलब्ध हैं। इस बार राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त फिल्म असम की बहूब्रीता को रखा गया है। इसे 20-28 नवंबर 2019 को गोवा में हुए अंतरराष्ट्रीय फिल्म फेस्टिवल में इंडियन पैनोरामा के तहत सर्वश्रेष्ठ फिल्म का खिताब मिला था। वैसे फेस्टिवल की सभी फिल्में फिल्मों की समझ रखने वालों को पसंद आएंगी, ऐसी उम्मीद है। उन्होंने बताया कि फेस्टिवल को ऑनलाइन उपलब्ध कराने में जमशेदपुर की संस्था सेल्यूलायड चैप्टर ने आर्थिक मदद की है।
अगस्त तक चलेगा फेस्टिवल
एफएफएसआइ का यह फिल्म फेस्टिवल 27 जून को शुरू हुआ था और पूरे अगस्त तक चलेगा। हर सप्ताह सोमवार से रविवार तक फिल्में बदल जाएंगी। इस संबंध में एफएफएसआइ व सेल्यूलायड चैप्टर के महासचिव अमिताभ घोष ने बताया कि लॉकडाउन में फिल्मों के प्रदर्शन पर रोक लगने से सिनेप्रेमी डिप्रेसन में चले गए थे। यही वजह रही कि हमने ऑनलाइन फिल्म फेस्टिवल का आयोजन किया। सभी जानते हैं कि फेस्टिवल में हम वैसी चुङ्क्षनदा फिल्में दिखाते हैं, जिनमें से अधिकतर बड़े पर्दे का मुंह भी नहीं देख पातीं। अच्छी फिल्म से भी आम दर्शक वंचित रह जाते हैं।