Happy Deepawali: दान में मिली आंखों ने इनकी दीपावली को कर दिया रोशन, देख पा रहे दीपों की जुगलबंदी
दान में मिली आंखों ने इनकी दीपावली को रोशन कर दिया।आपको ऐसे ही दो शख्स से मिलाते हैं जो फिर से दीपावली पर जगमग दीपों की जुगलबंदी देख पा रहे हैं।
जमशेदपुर, जासं। इस ब्रह्मांड में कितने रंग है। इन रंगों को देखने के लिए कुदरत ने मनुष्य को दो महज आंखें दी हैं। लेकिन ये दो आंखें अगर न रहें, तब क्या होगा? आंखों के बिना सारा जीवन अंधकार में डूब जाएगा। लौहनगरी रोशनी नामक संस्था है जीवन के ऐसे ही अंधियारे को उज्ज्वल कर रही है। इस संस्था के जरिए अब तक 190 लोगों के जीवन में उजाला कर चुका है। आज आपको ऐसे ही दो शख्स से मिलाते हैं जो फिर से दीपावली पर जगमग दीपों की जुगलबंदी देख पा रहे हैं।
भोपाल गैस हादसे में चली गई थी आंखों की रोशनी
चांडिल के रघुनाथपुर निवासी मधुसुदन कुमार की आंखों की रोशनी वर्ष 1984 में हुए भोपाल गैस कांड हादसे में चली गई थी। काफी समय तक इन्होंने अंधेरे के दर्द को झेला है। वर्ष 2014 में मधुसूदन, रोशनी संस्था के संपर्क में आए और इनके जीवन में फिर से उजाला हो पाया। मधुसूदन बताते हैं कि रोशनी संस्था के कारण उनका निश्शुल्क कार्निया ट्रांसप्लांट हुआ। अब वे आम जनों की तरह फिर से दुनिया के हर एक रंग को देख पा रहे हैं। मधुसूदन अब 51 वर्ष के हैं और भोपाल की एक कंपनी में कार्यरत हैं।
अंबुज की धीरे-धीरे कम हो गई थी आंखों की रोशनी
नीमडीह निवासी अम्बुज कुमार पेशे से किसान हैं। वे बताते हैं कि वे बचपन से खेती-बाड़ी करते आ रहे हैं। लेकिन एक समय के बाद उनकी आंखों की रोशनी धीरे-धीरे कम होती गई। एक समय आया जब उन्हें पूरी तरह से दिखना बंद हो गया। इसके बाद वे रोशनी के संपर्क में आए और कुछ इंतजार के बाद उनका जमशेदपुर व कोलकाता में कार्निया ट्रांसप्लांट किया गया। अम्बुज बताते हैं कि अब खुशनसीब हैं कि फिर से इस दुनिया को देख पा रहे हैं।
डॉक्टर की कमी के कारण कम हो गए होम कलेक्शन
परविंदर रोशनी संस्था के सचिव परविंदर कपूर बताते हैं कि वर्ष 1994 में टाटा मेन हॉस्पिटल के सहयोग से रोशनी संस्था अस्तित्व में आया। तब टीएमएच के डॉक्टर से मृत डोनरों के घर पर जाकर कार्निया निकालते थे। लेकिन बाद में टीएमएच के डॉक्टरों ने होम कलेक्शन बंद कर दिया। इसके कारण कार्निया मिलने में परेशानी हो रही है। इसलिए हमने सरकार से मांग की है कि रोशनी को एक डॉक्टर उपलब्ध कराया जाए ताकि कई लोगों के आंखों को रोशनी मिल सके।
6000 लोग कर चुके हैं अपनी आंखें दान
परविंदर ने बताया कि वोलेंट्री डोनर्स के रूप में अब तक 6000 शहरवासियों ने मरने के बाद अपनी आंखें दान करने के लिए फार्म भरे हैं। इसके अलावे हम लगातार स्कूल-कॉलेजों में आंखें दान करने के लिए जागरूकता अभियान भी चलाते हैं। परविंदर का कहना है कि आंखें अनमोल हैं इसलिए यदि आप चाहते हैं कि आपके दुनिया से जाने के बाद कोई दूसरा भी प्रकृति की खूबसूरती को देख सके तो अपनी आंखें दान करें क्योंकि इसका कोई विकल्प नहीं है।