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आजादी के 73 वर्ष बाद भी बासाडेरा के ऊपरटोला में नहीं पहुंची विकास की किरण

पूर्वी सिंहभूम जिला के सूदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र कालचित्ती पंचायत में प्राकृतिक खूबसूरती को समेटे हुए एक गांव है बासाडेरा। यहां आजादी के 73 वर्ष बाद भी विकास की किरण नहीं पहुंची है। उम्मीदों के सपने संजोए विकास का दंश झेलना अब शायद इनकी नियति बन चुकी है।

By Jitendra SinghEdited By: Published: Sun, 29 Nov 2020 04:30 PM (IST)Updated: Sun, 29 Nov 2020 04:30 PM (IST)
आजादी के 73 वर्ष बाद भी बासाडेरा के ऊपरटोला में नहीं पहुंची विकास की किरण
बासाडेरा गांव में आजादी के 70 साल बाद सड़क तक नहीं है।

घाटशिला (संवाद सहयोगी)। पहाड़ी वादियों के बीचों-बीच बसे बासाडेरा गांव के दो टोले में लगभग 500 किसान परिवार समेत 1500 की आबादी आजादी के वर्षों बाद भी विकास के लिए संघर्ष कर रही है। गांव से गुजरती बदहाल सड़क सबसे पहले आपको हकीकत से सामना करा देगी। ग्रामीणों को प्रतिदिन तकलीफों का सामना करते हुए दलदली और कीचड़युक्त उबड़-खाबड़ सड़कों से होते हुए आना-जाना पड़ता है। यही नहीं गांव के पास बसा पर्यटक स्थल धरागिरी झरना, जहां साल भर पर्यटकों का आना-जाना लगा रहता है, बरसात में उन्हें भी निराश करती है।

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सबसे आश्चर्य करने वाली बात है कि बासाडेरा का ऊपरटोला बरसात के मौसम में टापू जैसा हो जाता है। ऐसी परिस्थिति सबर जनजातियों की परेशानियों को और भी बढ़ा देती है। धरागिरी पहाड़ से गिरती निर्झर धारा टोला के समीपूर्वी सिंहभूम जिला के सूदूरवर्ती ग्रामीण क्षेत्र कालचित्ती पंचायत में प्राकृतिक खूबसूरती को समेटे हुए एक गांव है बासाडेरा। यहां आजादी के 73 वर्ष बाद भी विकास की किरण नहीं पहुंची है।

उम्मीदों के सपने संजोए विकास का दंश झेलना अब शायद इनकी नियति बन चुकी है।प नाले से होकर गुजरती है। इससे टोले में बाढ़ की स्थिति उत्पन्न हो जाती है। टोला के चारों तरफ लबालब पानी भर जाता है। जिंदगी के दर्द को बयां करते हुए ग्राम प्रधान गौर सिंह, अर्जुन सबर, फाल्गुनी सबर आदि ग्रामीणों ने बताया कि बदहाली शायद अब तकदीर की लकीर बन गई है।

ऐसी विषम परिस्थिति में शहर तो दूर की बात अपने गांव से ही संपर्क टूट जाता है। समस्या से जूझते स्थानीय विधायक समेत प्रशासनिक अधिकारियों तक कई बार गुहार लगा चुके, लेकिन किसी ने हमारी समस्या पर ध्यान नहीं दिया। अब आंखों में विकास की आशा जलाए ग्रामीणों ने ही समस्या का समाधान निकालने का बीड़ा उठाया है। श्रमदान से पहाड़ी चट्टानों को तोड़कर अस्थायी रास्ता बना डाला है।

ग्रामीण अब इसी रास्ते से आवाजाही करने को मजबूर हैं। विकास के दौर में भी ग्रामीण क्षेत्रों में रह रहे लोग विकास से कोसों दूर हैं। ऐसी परिस्थिति में सरकार की महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक ‘मेक इन इंडिया’ से इनकी तकदीर बदल सकती है।

उधर ग्रामीणों की समस्या पर पंचायत समिति सदस्य मुचरराम भूमिज ने बताया कि ग्रामीणों की मांग जायज है। इस संबंध में एक साल पूर्व सड़क व आरसीसी पुलिया निर्माण के लिए प्रखंड विकास पदाधिकारी समेत प्रशासनिक अधिकारियों को लिखित रूप से आवेदन पत्र सौंपा गया था, लेकिन आज तक समस्या का समाधान नहीं हुआ।


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