हालात को अनुकूल बनाना इनसे सीखें, किसान बनकर इंजीनियर ने ऐसे निकाली समृद्धि की राह
way to prosperity. पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला अनुमंडल के मुसाबनी प्रखंड के देवली गांव के निवासी कमल साव ने कभी नहीं सोचा था कि शहर की चमक-दमक छोड़कर उन्हें खेतों में पसीना बहाना पड़ेगा। कमल साव कोलकाता में आईबीएम (कम्प्यूटर) कंपनी में कार्यरत थे।
घाटशिला (पूर्वी सिंहभूम),राजेश चौबे। अक्सर किसी हादसे के बाद लोग टूट जाते हैं लेकिन कुछ लोग ऐसे भी होते हैं जो मुसाबीत में भी कामयाबी का नया रास्ता खोज लेते हैं। यह एक ऐसे ही एक युवा किसान की कहानी है। परिवार में हुए बड़े हादसे के बाद टूटने के बजाय इस युवा ने सूझबुझ से कामयाबी की नई राह आसान की।
पूर्वी सिंहभूम जिले के घाटशिला अनुमंडल के मुसाबनी प्रखंड के देवली गांव के निवासी कमल साव ने कभी नहीं सोचा था कि शहर की चमक-दमक छोड़कर उन्हें खेतों में पसीना बहाना पड़ेगा। कमल साव कोलकाता में आईबीएम (कम्प्यूटर) कंपनी में कार्यरत थे। कुछ साल पूर्व उनके घर में एक बड़ा हादसा हुआ। उस समय वे अपनी पत्नी के साथ कोलकाता में थे। कमल के छोटे भाई गांव में पिता के काम में हाथ बंटाते थे।
छोटे भाई की मौत से बदले हालात
सावन माह में गांव के देवली शिवमंदिर में जलाभिषेक के दौरान शंख नदी में जल लेने के दौरान छोटा भाई तेज धार में बह गया। उसकी मौत हो गई। छोटे भाई की मौत के बाद घर में पिता अकेले हो गए। पिता को अकेले देखकर कमल साव ने अपनी नौकरी छोड़ दी। पिता की हालत देखकर उन्हें दोबारा कोलकाता जाने की इच्छा नहीं हुई। उन्होंने पिता के साथ खेत में हाथ बंटाना शुरू किया ।
दो दिन पर दो हजार की आमदनी
इंटरनेट मीडिया के सहारे नई तकनीक से सबसे पहले सब्जी की खेती शुरू की। लेकिन कुछ अलग करने की चाहत में जरबेरा की खेती शुरू की। बस क्या था, रोजगार के साथ आमदनी भी दोगुनी हो गयी । अच्छा मुनाफा होने लगा। वर्तमान में हर दूसरे दिन दो सौ फूलों की बिक्री से दो हजार रुपए की आमदनी हो रही है। कमल ने बताया कि कुछ दिनों बाद प्रतिदिन एक हजार फूलों का उत्पादन होने लगेगा। उत्पादन के साथ बेचने की भी चुनौती है। वे नए बाजार की तलाश में जुटे हैं। कमल को कृषि विभाग की ओर से पॉली हाउस मुहैया कराया गया है। वर्तमान में उन्होंने फूल के साथ बैगन, बंधागोभी तथा फूलगोभी की खेती की है। इससे दो लाख रुपए कमाई होने की उम्मीद है।
क्या है जरबेरा की खासियत
जरबेरा का उत्पत्ति स्थल अफ्रीका को माना जाता है। जरबेरा के फूल की खेती कृत्रिम बागवानी में सजावट एवं गुलदस्ता बनाने के लिए किया जाता है। छोटे किस्म की प्रजातियों को गमलों में सुंदरता के लिए भी उगाया जाता है। फूल लगभग एक सप्ताह तक तरोताजा रहता है। इसकी लगभग 70 प्रजातियां हैं। जिसमें सात का उत्पत्ति स्थल भारत या आसपास माना गया है। जरबेरा की खेती विश्व में नीदरलैंड, इटली, पोलैंड, इजरायल और कोलंबिया में की जा रही है। भारत में इसकी खेती व्यावसायिक स्तर पर घरेलू बाजार में बेचने के लिए की जा रही है। घरेलू फूल बाजारों में जरबेरा कट फ्लावर की मांग दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है। इसकी प्रजातियों को सिंगल, सेमी डबल और डबल वर्ग में विभाजित किया गया है।