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Dhanteras 2021: धनत्रयोदशी (धनतेरस) का आध्यात्मिक महत्व आप जानते हैं कि नहीं, बता रही सनातन संस्था

Dhanteras 2021 पूर्व काल में राजा वर्ष के अंत मे अपना खजाना सत्पात्र को दान कर खाली करते थे और वे धन्य महसूस करते थे। परिणामस्वरूप लोगों और राजा के बीच संबंध पारिवारिक थे। राजा का खजाना प्रजा का होता था और राजा केवल उसकी देखभाल करने वाला होता था।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Mon, 01 Nov 2021 04:56 PM (IST)Updated: Mon, 01 Nov 2021 04:56 PM (IST)
Dhanteras 2021: धनत्रयोदशी (धनतेरस) का आध्यात्मिक महत्व आप जानते हैं कि नहीं, बता रही सनातन संस्था
धनत्रयोदशी या धनतेरस दो नवंबर को ही है।

जमशेदपुर, जासं। धनत्रयोदशी या धनतेरस दो नवंबर को ही है। आमतौर पर लोग यही जानते हैं कि इसी दिन धातु का कोई सामान या सोना खरीदना शुभ होता है। दिवाली से जुड़े इस त्योहार के अवसर पर नए आभूषण खरीदने की प्रथा है। व्यापारी भी इस दिन अपनी तिजोरी की पूजा करते हैं। धनत्रयोदशी अर्थात देवताओं के वैद्य धन्वंतरि देवता का जन्म दिवस है। आइए इस लेख के माध्यम से हम इस दिन का महत्व तथा इस दिन किए जाने वाले कृतियों का शास्त्र समझते हैं।

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सनातन संस्था के पूर्वी भारत प्रभारी शंभू गवारे बताते हैं कि यह पर्व कार्तिक कृष्ण पक्ष त्रयोदशी को मनाया जाता है। इस वर्ष 2 नवंबर को धनत्रयोदशी है। इस दिन धन की पूजा की जाती है, जिससे हमारा जीवन सुचारू रूप से चल सके। यहां 'धन' का अर्थ है शुद्ध लक्ष्मी। श्रीसूक्त में वसु, जल, वायु, अग्नि और सूर्य को धन कहा गया है। सन्मार्ग से अर्जित किया गया धन ही वास्तविक लक्ष्मी है। अन्यथा अलक्ष्मी विपत्ति का कारण बनती है।

इस पर्व की व्यावहारिक तथा आध्यात्मिक विशेषताएं इस प्रकार हैं

व्यावहारिक : व्यापारियों के लिए यह दिन विशेष रूप से महत्वपूर्ण माना जाता है, क्योंकि श्री लक्ष्मी देवी की पूजा धन प्राप्ति के लिए की जाती है।

आध्यात्मिक : इस दिन ब्रह्मांड में श्रीलक्ष्मी देवी का तत्व अधिक मात्रा में प्रक्षेपित होता है। इसलिए, जीव को श्री लक्ष्मी देवी और नारायण की कृपा प्राप्त होती है। परंतु यह कृपा जीव के भाव पर निर्भर होती है। वर्तमान काल में साधकों को शक्ति की आवश्यकता है तथा जीव को व्यावहारिक सुख की अपेक्षा जीवन बचाना और उसे सुरक्षित रखना अधिक महत्वपूर्ण है| इसलिए यह दिन साधना करने वाले जीव के लिए ‘महापर्व’ के रूप में माना जाता है।

महत्व : इस दिन को बोलचाल की भाषा में 'धनतेरस' कहा जाता है। इस दिन व्यापारी तिजोरी की पूजा करते हैं। व्यापारिक वर्ष दिवाली से दिवाली तक होता है। इस दिन नए वर्ष का बही-खाता ख़रीदा जाता है और उसकी पूजा की जाती है, उसके उपरांत यह उपयोग में लायी जाती है।

मेहनत से कमाया हो धन, तभी मिलेगा फल

देवद-पनवेल स्थित सनातन आश्रम के परम पूज्य परसराम माधव पांडे महाराज कहते हैं कि इस दिन स्वर्ण अथवा चांदी के नए पात्र क्रय करने की कृति द्वारा श्री लक्ष्मी के धन रूपी स्वरूप का आवाहन किया जाता है और कार्यरत लक्ष्मी तत्व को गति प्रदान की जाती है। इससे घर में पूरे वर्ष धन लक्ष्मी का वास रहता है। वास्तविक लक्ष्मी पूजन के समय, पूरे वर्ष के लेन-देन का हिसाब देना होता है। उस समय, यदि धनत्रयोदशी तक बचा हुआ धन सत्कार्य के लिए व्यय हुआ हो तो धनलक्ष्मी अंत तक रहती है। धन अर्थात पैसा, यह पैसा पसीना बहा कर, मेहनत से, योग्य मार्ग से वर्ष भर अर्जित किया हुआ होना चाहिए। शास्त्र कहता है कि इस धन का कम से कम 1/6 भाग धर्म कार्य में खर्च करना चाहिए।'

पूर्व काल में राजा वर्ष के अंत मे अपना खजाना सत्पात्र को दान कर खाली करते थे और वे धन्य महसूस करते थे। परिणामस्वरूप, लोगों और राजा के बीच संबंध पारिवारिक थे। राजा का खजाना प्रजा का होता था और राजा केवल उसकी देखभाल करने वाला होता था। इसलिए, लोग बिना किसी बाधा के करों का भुगतान करते थे। तो स्वाभाविक रूप से खजाना फिर भर जाता था। अच्छे कामों के लिए धन का उपयोग होने से आत्मबल भी बढ़ता था।

धन्वंतरि जयंती : आधुनिक वैद्य श्रीराम लाडे कहते हैं कि देवताओं और दानवों द्वारा समुद्र मंथन से धन्वंतरि देवता उत्पन्न हुए थे। चार भुजाओं वाले भगवान धन्वंतरि के एक हस्त में 'अमृत कलश', दूसरे हस्त में 'जोंक', तीसरे हस्त में 'शंख' तथा चौथे हस्त में 'चक्र' विराजमान है। भगवान धन्वंतरि इन वस्तुओं का उपयोग करके सर्व रोगों का उपचार करने का कार्य करते हैं।

पूजा विधि : वैद्य इस दिन धन्वंतरि देवता (देवताओं के वैद्य) की पूजा करते हैं। लोगों को प्रसाद के रूप में बारीक कटी हुई नीम की पत्तियां और चीनी दी जाती है। नीम की उत्पत्ति अमृत से हुई है। धन्वंतरि अमृत के दाता हैं। यदि प्रतिदिन पांच से छह नीम के पत्ते खाए जाएं तो व्यक्ति के बीमार होने की संभावना नहीं रहती है। नीम में इन गुणों के कारण ही इस दिन इसे धन्वंतरि प्रसाद के रूप में वितरित किया जाता है।

यमदीपदान : यम, मृत्यु एवं धर्म के देवता हैं। हमें यह सतत भान रहना आवश्यक है कि प्रत्येक मनुष्य की मृत्यु निश्चित है। मृत्यु को टाला नहीं जा सकता है, लेकिन किसी की अकाल मृत्यु न हो इसलिए धनत्रयोदशी के दिन यम धर्म के लिए आटे के 13 दीपक बनाकर शाम के समय घर के बाहर दक्षिण की ओर मुख करके रखें। अन्य समय दीपक का मुख कभी भी दक्षिण की ओर नहीं होना चाहिए, केवल इस दिन ये 13 दीपक दक्षिण की ओर मुंह करके प्रज्ज्वलित करना चाहिए। फिर आगे दिए गए मंत्र का उच्चारण कर प्रार्थना करें।

मृत्युना पाशदंडाभ्यां कालेन श्यामयासह ।

त्रयोदश्यादिपदानात् सूर्यजः प्रियतां मम ।।

इसका अर्थ है, त्रयोदशी पर ये दीप मैं सूर्य पुत्र अर्थात् यम देवता को अर्पित करता हूं। वे मुझे मृत्यु के पाश से मुक्त करें और मेरा कल्याण करें।

धनत्रयोदशी पर, श्री लक्ष्मी तत्व अधिक मात्रा मे पृथ्वी पर कार्यरत रहता हैं। वर्तमान में लोग इस दिन धन व आभूषण के रूप में श्री लक्ष्मी की पूजा करते हैं। इस कारण उन्हें सही मायने में श्री लक्ष्मी की कृपा प्राप्त नहीं होती है। केवल स्थूल धन की पूजा करने वाली आत्मा, माया के जाल में फंस जाती है और मानव जन्म के मूल उद्देश्य को भूल जाती है। जब कि मानव जीवन का मूल उद्देश्य साधना द्वारा मोक्ष प्राप्त करना है। इस दिन श्री लक्ष्मी देवी का ध्यान कर शास्त्र सम्मत तरीके पूजन करना चाहिए।


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