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राजभाषा एवं राष्ट्रभाषा के बीच पिस रही ¨हदी : डॉ. प्रभाकर

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : 'भारतीय संविधान में ¨हदी को राजभाषा का दर्जा देने की बात कही

By JagranEdited By: Published: Mon, 24 Sep 2018 02:00 AM (IST)Updated: Mon, 24 Sep 2018 02:00 AM (IST)
राजभाषा एवं राष्ट्रभाषा के बीच पिस रही ¨हदी : डॉ. प्रभाकर
राजभाषा एवं राष्ट्रभाषा के बीच पिस रही ¨हदी : डॉ. प्रभाकर

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : 'भारतीय संविधान में ¨हदी को राजभाषा का दर्जा देने की बात कही गई है, बावजूद इसे राजभाषा का दर्जा नहीं मिल पाया। राजभाषा से ध्यान हटाने के लिए ही राष्ट्रभाषा शब्द का इस्तेमाल किया जा रहा है।' यह बातें राजेंद्र विद्यालय परिसर में रविवार को काशी ¨हदू विश्वविद्यालय के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. प्रभाकर सिंह ने कही। वे दिनकर परिषद (बिहार एसोसिएशन)द्वारा आयोजित राष्ट्रकवि रामधारी सिंह दिनकर की जयंती पर आयोजित कार्यक्रम में बोल रहे थे।

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उन्होंने कहा कि दिनकर की रचनाएं आज भी प्रासंगिक हैं। डॉ. सिंह ने कहा कि ¨हदी पर इन दिनों राजनीति हो रही है। इस कारण इसे राष्ट्रभाषा का रूप देने पर विचार किया जा रहा है, जबकि इसे सबसे पहले राजभाषा का दर्जा प्रदान किया जाना चाहिए। ¨हदी आम जनमानस की भाषा है यह सिद्ध हो चुका है। राष्ट्रभाषा का दर्जा उसे अपने आप मिला हुआ है। ¨हदी को संविधान में उल्लेखित दर्जा न दिया जाना राजनीतिक अपरिपक्वता को दर्शाता है।

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ये थे उपस्थित : कार्यक्रम का संचालन कोल्हान विश्वविद्यालय ¨हदी विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अविनाश कुमार सिंह ने किया। इस मौके पर मुख्य रूप से बिहार एसोसिएशन के अध्यक्ष ब्रजनंदन चौधरी, दिनकर परिषद के सचिव डॉ. त्रिभुवन ओझा, बिहार एसोसिएशन के उपाध्यक्ष डॉ. शिव कुमार सिंह कई गणमान्य लोग व साहित्यकार उपस्थित थे।

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विजेता किए गए सम्मानित

कार्यक्रम में एआइडब्ल्यूसी एकेडमी बारीडीह के छात्र आलोक कुमार व केरला समाजम मॉडल स्कूल गोलमुरी की ऋषिका ठाकुर ने दिनकर की रचनाओं की प्रस्तुति दी। इसके सबसे अंत में दिनकर परिषद आयोजित विभिन्न प्रतियोगिताओं के विजेताओं को सम्मानित किया गया।

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गुणवत्तापूर्ण शोध नहीं हो पा रहा

कार्यक्रम के बाद डॉ. प्रभाकर सिंह ने दैनिक जागरण से बातचीत में कहा कि विश्वविद्यालयों में अब किसी विषय पर गुणवत्तापूर्ण शोध नहीं हो पा रहा है। शोध अब बहस आधारित हो रहा है। जिस विषय पर बहस हो रही है उसी विषय पर शोध हो रहे हैं। इस कारण इसमें एकरसता आ गई है। एक ही विषयों पर 20-20 बार शोध हो रही है। मूली-गाजर की तरह विषयों का इस्तेमाल किया जा रहा है।


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