नोटबंदी के दो साल : परेशानियों के दौर के बाद फायदे की बाकी है आस
भरते-खाली होते एटीएम, बैंकों और एटीएम के बाहर तक लगी कतार के अलावा पांच सौ और हजार के नोटों की जब्ती की सनसनीखेज खबरें। नोटबंदी के इन दो सालों में क्या खोया, क्या पाया।
जमशेदपुर(जासं)। केंद्र की वर्तमान सरकार के सबसे बड़े फैसलों में एक नोटबंदी के दो साल पूरे हो गए। इसके साथ ही लोगों के जेहन में ताजा हो रही हैं दो साल पहले नोटबंदी के समय की यादें। भरते-खाली होते एटीएम, बैंकों और एटीएम के बाहर तक लगी कतार के अलावा पांच सौ और हजार के नोटों की जब्ती की सनसनीखेज खबरें। नोटबंदी के इन दो सालों में देश के विभिन्न वर्ग ने क्या खोया, क्या पाया। उस समय के फैसले को आज कि दृष्टि से देखते हैं आदि बातों पर जागरण ने विभिन्न तबके के लोगों की राय जाननी चाही। किसी ने उस दौर की यादें ताजा की तो किसी ने इसे दूरदर्शी फैसला बताया। वहीं कई लोगों की राय थी कि नोटबंदी के फैसले का कोई खास फायदा नहीं हुआ, जो उद्देश्य थे वे पूरे नहीं हुए और कालेधन की समस्या आज भी बरकरार है। प्रस्तुत है लोगों की राय के मुख्य अंश :-
फादर नेल्सन डिसिल्वा, एसोसिएट डीन स्टूडेंट्स अफेयर्स, एक्सएलआरआइ
दो साल पहले जब नोटबंदी के समय का दौर काफी बुरा था। मुझे याद है कि उस समय मैं कोलकाता में मिशनरीज ऑफ चैरिटी में था। वहां सेे जुड़े कुष्ठ रोगियों को काफी समस्या हुई क्योंकि उनके पास न तो आधार कार्ड था और न ही बैंक एकाउंट। वहीं सामाजिक संस्थाओं को भी उनके कार्य दायित्व पूरे करने में काफी मुश्किलें आईं क्योंकि वे भी अपनी जरूरत के हिसाब से राशि नहीं निकाल सकते थे। इतना जरूर है कि जो मदद कर सकने की स्थिति में थे, उन्होंने मानवीयता दिखाई और मदद की। जहां तक नोटबंदी के बाद डिजिटल ट्रांजेक्शन को बढ़ावा दे भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने की बात है तो इसपर ध्यान देना होगा कि भ्रष्टाचार का तरीका भी उस हिसाब से बदल रहा है।
सुरेश सोंथालिया, राष्ट्रीय सचिव, कनफेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया ट्रेडर्स
नोटबंदी का अनुभव अच्छा नहीं रहा। उस वक्त बताया गया था कि इससे कालाधन आएगा, भ्रष्टाचार समाप्त हो जाएगा आदि-आदि, लेकिन ऐसा धरातल पर कुछ भी नहीं दिखा। नोट बदलने में आम कारोबारियों को काफी परेशानी हुई थी, तो उसके बाद करीब एक साल तक बाजार से ग्राहक गायब हो गए।
दीपक भालोटिया, सदस्य, कृषि उत्पादन बाजार समिति
कोई भी नया बदलाव होता है, तो परेशानी होती ही है। एक-डेढ़ साल तक व्यापारियों को काफी परेशानी हुई, लेकिन अब बाजार स्थिर हो चुका है। अब तो लोग उन परेशानियों को भूलने भी लगे हैं। प्रधानमंत्री जो भी कदम उठा रहे हैं, वह देशहित में है।
रुपेश कतरियार, अध्यक्ष, लघु उद्योग भारती
व्यवसायियों को नोटबंदी से कोई परेशानी नहीं हुई। थोड़ी बहुत परेशानी आमलोगों को हुई, लेकिन उन्होंने भी इस फैसले को देशहित में स्वीकार किया। नोटबंदी मोदी सरकार का ऐतिहासिक व साहसिक फैसला था। इसके दो पहलू हैं, पहला अंतरराष्ट्रीय स्तर पर भारत को मजबूत करना तो दूसरा देश की आंतरिक आर्थिक संरचना को सुदृढ़ करना। नोटबंदी की वजह से भ्रष्टाचार, कालाबाजारी, फर्जी नोट आदि पर रोक लगी है।
आलोक चौधरी, अध्यक्ष, जमशेदपुर चैंबर
नोटबंदी से पिछले दो वर्षों में कोई बदलाव तो नहीं दिखा। भले ही मोदी सरकार को इस नोटबंदी को कोई राजनीतिक फायदा मिला हो, लेकिन अचानक लिए गए इस निर्णय से व्यवसायी से लेकर आम जनता तक काफी परेशान हुई। आज तक सरकार यह आंकड़ा नहीं दे पाई कि नोटबंदी से कितना कालाधन मिला।
भरत वसानी, उपाध्यक्ष, सिंहभूम चैंबर
नोटबंदी का नफा-नुकसान अपनी जगह है। कुछ दिनों तक बाजार में कैश की मारामारी रही। लेकिन इसके बाद से ही ज्यादा रकम बैंक में जमा कराने पर कानूनी प्रक्रिया बढ़ गई। फायदा यह हुआ कि इसके बाद पॉश मशीन, ई-मनी, कैश ट्रांजेक्शन बढ़ा। पैसा जब सिस्टम से आएगा तो टैक्स चोरी कम होगी और भ्रष्टाचार पर भी लगाम लगेगी।
संदीप मुरारका, उद्यमी
व्यापारिक दृष्टिकोण से देखें तो नोटबंदी के कारण सबसे ज्यादा नुकसान छोटे व्यापारियों को हुआ। बाजार में कैश फ्लो कम हो गया। उपभोक्ताओं की क्रय शक्ति कम होने का असर सीधा बाजार पर पड़ा। इस दीपावली में भी अधिकतर व्यवसायियों का व्यापार नोटबंदी के कारण ही मंदा रहा। नोटबंदी और कैश की कमी के कारण कहीं न कहीं ई-कॉमर्स कंपनियों को इसका सबसे ज्यादा लाभ मिला।
कमल अग्रवाल, अध्यक्ष, जमशेदपुर केमिस्ट एंड ड्रगिस्ट एसोसिएशन।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने नोटबंदी की घोषणा किया तो पूरा देश में हलचल मच गई थी। लोगों को समझ में नहीं आ रहा था कि क्या करें? उसमें मैं भी शामिल था। लेकिन वह प्रधानमंत्री की साहसिक निर्णय रहा। काफी हद तक भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा है। उम्मीद है कि जिस तरह से प्रधानमंत्री कड़े व देशहित में फैसला ले रहे है उससे भ्रष्टाचार पर और भी अंकुश लगेगा। नोटबंदी अच्छा फैसला था इसलिए लोगों ने उनका सहयोग किया।
अरुण कुमार सिंह, जिलाध्यक्ष, झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ
पहली बार जब नोटबंदी हुई उस समय सब सहमे हुए थे। हम शिक्षक समुदाय भी सहमे हुए थे। लेकिन सब धीरे-धीरे सामान्य हो गया। अभी बाजार भी स्थिर हो गया। लोग नफा-नुकसान का आकलन लगा रहे थे। लेकिन अब तक न नफा हुआ और न नुकसान।