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दलमा में आदिवासियों ने किया शिकार, एक हिरण व दो सूअर मार गिराए

दलमा जंगल में सोमवार को एक बार फिर आदिवासी समाज के लोगों ने सेंदरा किया। सेंदरा यानी शिकार। शिकार जंगली जानवरों का। सोमवार को तड़के कोल्हान के कोने-कोने से आए शिकारियों ने दलमा पहाड़ पर पारंपरिक हथियारों के लैश होकर चढ़ाई कर दी।

By JagranEdited By: Published: Tue, 07 May 2019 08:11 AM (IST)Updated: Thu, 09 May 2019 06:31 AM (IST)
दलमा में आदिवासियों ने किया शिकार, एक हिरण व दो सूअर मार गिराए
दलमा में आदिवासियों ने किया शिकार, एक हिरण व दो सूअर मार गिराए

जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : दलमा जंगल में सोमवार को एक बार फिर आदिवासी समाज के लोगों ने सेंदरा किया। सेंदरा यानी शिकार। शिकार जंगली जानवरों का। सोमवार को तड़के कोल्हान के कोने-कोने से आए शिकारियों ने दलमा पहाड़ पर पारंपरिक हथियारों के लैश होकर चढ़ाई कर दी। घंटों जंगल में जानवरों को तीर का निशाना बनाने के लिए भटकते रहे। अंतत: एक हिरण और दो जंगली सूअर को मार गिराया। हालांकि वन विभाग ने जंगल में किसी भी जानवर का शिकार किए जाने की सूचना से इन्कार किया है।

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दलमा वन में हर साल पारपंरा पूरी करने का लिए आदिवासी समाज के लोगों द्वारा सेंदरा को पर्व के रूप में मनाया जाता है। दलमा की तलहटी पर शिकार करने से पूर्व पारंपरिक तौर-तरीकों से पूजा-अर्चना की जाती है। ईष्टदेवों को चढ़ावा चढ़ाया जाता है। इसके बाद प्रसाद ग्रहण किया जाता है। इस बार भी दोलमा बुरु सेंदरा समिति की ओर से इन सभी परंपराओं का निर्वहन किया गया और सेंदरा किया गया। इसमें कोल्हान के साथ-साथ बंगाल व ओ्डिशा के आदिवासी युवाओं ने भी हिस्सा लिया।

इधर सेंदरा के बाद जुगसलाई तोरोफ पारगाना दशमत हांसदा ने बताया कि उनकी टीम को शिकार के बाद खाली हाथ लौटना पड़ा। पूर्व निर्धारित कार्यक्रम के अनुसार सेंदरा के बाद जंगल से वापस आने पर आसनबनी स्थित गिपितिज टांड़ी यानि विश्राम स्थल में लो वीर दरबार का आयोजन किया गया। दरबार की अध्यक्षता दलमा राजा राकेश हेम्ब्रम ने की। इस अवसर पर आदिवासियों के पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था, धार्मिक, सांस्कृतिक और संवैधानिक अधिकारों पर चर्चा हुई।

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आदिवासियों को घर में तीर-धनुष रखना अनिवार्य

लो बीर सेंदरा के दौरान हुए मंथन में तय किया गया कि आदिवासी समाज के लोग अपने घरों में पारंपरिक औजार तीर-धनुष, भाला, तलवार, कुदाल, कुल्हाड़ी, भिंटी, छुरी आदि अनिवार्य रूप से रखेंगे। यह औजार ही नहीं आदिवासी संस्कृति और धार्मिक अस्तित्व की पहचान भी हैं। समाज के हर रीति रिवाज में इन औजारों का इस्तमाल होता है।

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युवाओं को रिवाजों की दी जाएगी जानकारी

परिचर्चा के दौरान तय किया गया कि आदिवासी समाज के युवाओं को समाज के धार्मिक, सांस्कृतिक, सामाजिक व पारंपरिक रीति-रिवाज के कार्यो में अनिवार्य रूप से शामिल किया जाएगा, ताकि उन्हें अपनी परंपरा को करीब से जानने का मौका मिल सके। कहा गया कि हजारों वर्ष पूर्व से चली आ रही सेंदरा की परंपरा को बचाए रखने के लिए हर घर से लोगों को सेंदरा में शामिल होना सुनिश्चित करना होगा।

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ग्रामसभा में दर्ज होगा समाज का लेखा जोखा

ग्राम सभा को 'हमारा गांव में हमारा राज' कायम करने के लिए ग्राम सभा को जन्म-मृत्यु, विवाह, बोंगा-बुरू, आखड़ा विचार, ग्राम सभा की बैठक आदि का लेखा-जोखा रखना होगा। दरबार में जुगसलाई तोरोफ पारगाना दशमत हांसदा, माझी बाबा दुर्गा चरण मुर्मू, प्रदीप बेसरा, सुखराम किस्कू, सुशील हांसदा, सोमाय मार्डी, लिटा बानसिंग, बेंडे बोरजो, सेलाई गगराई, सुकुमार सोरेन, नेहरू मुर्मू, इंद्र हेम्ब्रम, बसु हांसदा, बाल्ही मार्डी, भबत मुर्मू, सुदामा हेम्ब्रम, बुद्धेश्वर किस्कू आदि मुख्य रूप से शामिल थे। दलमा जंगल से सेंदरा कर वापस लौटने के दौरान सेंदरा वीर लो वीर दरबार में शामिल हुए।

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सिंगराई से किया गया मनोरंजन

विश्राम स्थल पर सोमवार की शाम सिंगराई नृत्य का आयोजन किया गया। मौके पर पारंपरिक वाद्य यंत्रों के साथ आदिवासी समाज के लोगों ने सिंगराई नृत्य किया। इस दौरान महिलाओं का वेश धारण कर नृत्य किया। सिंगराई कार्यक्रम में मेघराई हांसदा, ओडिशा, पलाई हेम्ब्रम, डुमरिया, राम सोरेन मातलाडीह, शिवचरण मार्डी सालगाजुड़ी और मुर्मू बयार छोलागोड़ा की टीम शामिल हुआ।

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