सीआर माझी ने कहा- राम मंदिर निर्माण में आदिवासियों को नहीं बनाया जा सकता जबरन प्रतिभागी Jamshedpur News
आदिवासी समाज प्रकृति पूजक है और प्रकृति के समस्त धरोहरों को अपने पूजा-अर्चना के प्रतीक के रूप में मान्यता देती है।
जमशेदपुर (जासं) । आदिवासी समाज प्रकृति पूजक है और प्रकृति के समस्त धरोहरों को अपने पूजा-अर्चना के प्रतीक के रूप में मान्यता देती है। आदिवासी किसी व्यक्ति के आकार को भगवान नहीं मानते हैं। उनके धार्मिक आस्था एवं विश्वास का केंद्र बिंदु सरना धर्म है। सदियों से आदिवासी समाज का पूजा स्थल पवित्र जाहेरथान, देशाउली एवं सारना स्थल है। ये बातें जाहेर थान कमेटी, दिशोम जाहेर, करनडीह, जमशेदपुर के अध्यक्ष सीआर माझी ने कहीं। उन्होंने कहा कि विश्व हिन्दू परिषद् द्वारा सरना धर्म के अनुयायी को अपना दलाल बनाकर पवित्र सारनास्थल से मिट्टी संग्रह कर हिंदू धर्म के भगवान श्रीराम के मंदिर निर्माण के लिए भेजने की बात करना अत्यंत निंदनीय है।
युवा सारना विकास समिति द्वारा रांची के विभिन्न प्रखंड क्षेत्र के सारना स्थल से मिट्टी संग्रह करना शर्मनाक व निंदनीय है। अयोध्या में श्रीराम मंदिर निर्माण के लिए रांची के विभिन्न प्रखंड क्षेत्रों के सारना स्थलों से मिट्टी संग्रह करने की खबर पर प्रतिक्रिया देते हुए जाहेर थान कमेटी ने कहा कि प्रकृति पूजक आदिवासी समाज द्वारा अनेक वर्षों से सारना धर्म कोड की मांग की जा रही है। विगत लोकसभा चुनाव में भाजपा भी इसे अपने चुनावी घोषणा पत्र में शामिल किया था, लेकिन अबतक उसे पूरा नहीं किया। उन्होंने कहा कि मंदिर निर्माण में आदिवासियों को कोई आपत्ति नहीं है, बल्कि उसका सम्मान और आदर किया जाएगा। लेकिन आदिवासियों के धार्मिक आस्था के प्रतीक सरना स्थल, जाहेर थान, देशाउली जैसे पवित्र स्थल की पवित्रता नष्ट कर उन्हें जबरन प्रतिभागी नहीं बनाया जा सकता है।