Coronavirus News Update: सावधान ! कोरोना की दूसरी लहर आई तो मच जाएगा हाहाकार
हर किसी के मन में एक सवाल चल रहा है कि कोरोना के मामले दिल्ली गुजरात महाराष्ट्र में बढ़ रहा है तो फिर यहां इतनी सख्ती क्यों बरती जा रही है। दैनिक जागरण की टीम ने इसके कारण को ढूंढने का प्रयास किया तो डराने वाली तस्वीर सामने आई।
जमशेदपुर (जागरण संवाददाता) । हर किसी के मन में एक सवाल चल रहा है कि कोरोना के मामले दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र में बढ़ रहा है तो फिर यहां इतनी सख्ती क्यों बरती जा रही है। दैनिक जागरण की टीम ने इसके कारण को ढूंढने का प्रयास किया तो डराने वाली तस्वीर सामने आई। पूर्वी सिंहभूम जिले में कोरोना की अगर दूसरी लहर आती है तो वह तहस-नहस कर देगी। इसकी आशंका शायद जिला प्रशासन को भी हो चुका है। तभी उपायुक्त से लेकर एसएसपी, एसडीओ, सिविल सर्जन, एसीएमओ सहित अन्य वरीय पदाधिकारी सड़क पर उतर आए हैं। यहां तक की मरीजों की संख्या में कमी होने के बावजूद भी आंशिक लॉकडाउन की घोषणा की गई है, जो बड़ा सवाल है।
इसे समझने और सतर्क होने की जरूरत है। कोरोना की पहली लहर से जिला प्रशासन को काफी कुछ अनुभव व अहसास हो चुका है, इसलिए वह दूसरी लहर से किसी भी तरह बचना चाहता है। इधर, स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव डॉ. नीतिन मदन कुलकर्णी ने भी कोरोना की दूसरी लहर से बचने के लिए की गई तैयारी से संबंधित रिपोर्ट मांगी है। लेकिन, हकीकत यही है कि स्थिति दयनीय हो चुकी है।
ये बनेगा परेशानी का कारण
- अब तक कोरोना मरीजों का इलाज टाटा मुख्य अस्पताल (टीएमएच) में मुफ्त में होता था। लेकिन एक दिसंबर से पैसा लगेगा। टीएमएच कोल्हान का सबसे बड़ा डेडिकेटेड कोविड हॉस्पिटल था। यहां एक हजार से अधिक बेड था। हाजारों गंभीर मरीजों का इलाज मुफ्त में हुआ। डॉक्टर से लेकर पारा मेडिकल स्टाफ सभी तैनात रहे। इस कारण से मरीजों को इलाज में ज्यादा परेशानी नहीं हुई। लेकिन, अब शुल्क लगने की वजह से गरीब व मध्य वर्ग के लोग इस अस्पताल में भर्ती नहीं हो सकेंगे। इसका मुख्य कारण है कि एक दिन का खर्च लगभग 17 से 20 हजार रुपए आएगा। कोरोना मरीज को रिकवर होने में कम से कम 10 दिन के समय लग जाता है। यानी एक मरीज को दो लाख से अधिक रुपए चुकाने होंगे। इतनी बड़ी राशि गरीब व मध्य वर्ग नहीं चुका पाएंगे। एक परिवार के कई-कई लोग संक्रमित हो जाते है। ऐसे में सबका इलाज कराना मुश्किल होगा।
- टीएमएच में शुल्क लगने की वजह से सरकारी अस्तालों में भीड़ बढ़ेगी। जबकि सरकारी अस्पतालों की स्थिति ठीक नहीं है। महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज अस्पताल में कोविड मरीजों के लिए 100 बेड आरक्षित जरूर है लेकिन यहां न तो पर्याप्त डॉक्टर हैं और न ही कर्मचारी। किसी तरह राम भरोसे यह अस्पताल चल रहा है। यहां तक की मरीजों को दवा भी बाहर से खरीद कर लानी पड़ती है। अभी हाल में सरकार ने इस हॉस्पिटल को 15 वेंटिलेटर दिया है लेकिन उसे भी संचालित करने के लिए टीम नहीं है। एेसे में मरीजों की स्थिति क्या होगी, इसका अंदाजा आप खुद ही लगा लीजिए।
- जिले के सभी सीएचसी-पीएचसी को कोविड सेंटर बनाया गया था। यहां आउटसोर्स कर्मचारी मोर्चा संभाले हुए थे। इसमें टेक्नीशियन से लेकर नर्स, एंबुलेंस चालक सहित अन्य शामिल थे। लेकिन, कुछ दिन पूर्व ही जिले से लगभग 200 आउटसोर्स कर्मचारियों को हटा दिया गया है। ऐसे में अब उन सीएचसी-पीएचसी में इलाज उपलब्ध करा पाना मुश्किल होगा।
- जिले में लगभग 50 सरकारी डॉक्टर तैनात है। कोरोना की पहली लहर में अधिकांश संक्रमित हो गए। इससे चिकित्सकों की भारी कमी उत्पन्न हो गई। इसे देखते हुए जिला प्रशासन ने निजी चिकित्सकों को मदद के लिए आगे आने को भी कहा। लेकिन, शायद ही कोई चिकित्सक आगे आया होगा। किसी तरह स्थिति पर काबू पाया गया।
- कोरोना की वजह से शहर के सभी निजी नर्सिंग होम बंद हो गए। निजी चिकित्सकों ने अपना क्लीनिक भी बंद कर दिया। ऐसे में कोरोना के साथ-साथ अन्य रोगियों को भी इलाज मिलना बंद हो गया। इस दौरान कई लोगों की जान इलाज के अभाव में हो गई।
- कोरोना की पहली लहर में सभी लोगों का समर्थन मिलते रहा। कोई घर-घर खाना पहुंचाने का काम किया तो कोई मरीजों के इलाज में सहयोग किया। सामाजिक संगठनों द्वारा मास्क से लेकर पीपीई किट व आर्थिक मदद भी किया। लेकिन, अब उनकी स्थिति भी पहले जैसा नहीं रही। ऐसे में निश्चित तौर पर मरीजों की परेशानी बढ़ जाएगी।