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ढाई माह से कोरोना संक्रमितों का अंतिम संस्कार करा रहा बुजुर्ग

हर दिन कोरोना संक्रमितों के साथ रहने के बावजूद उन्हें कभी यह छू भी नहीं पाया।

By JagranEdited By: Published: Wed, 23 Sep 2020 08:32 PM (IST)Updated: Wed, 23 Sep 2020 08:32 PM (IST)
ढाई माह से कोरोना संक्रमितों का अंतिम संस्कार करा रहा बुजुर्ग
ढाई माह से कोरोना संक्रमितों का अंतिम संस्कार करा रहा बुजुर्ग

वीरेंद्र ओझा, जमशेदपुर :

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एक ओर जहां पूरी दुनिया में कोरोना को लेकर भय का माहौल है, जमशेदपुर का एक बुजुर्ग बेखौफ होकर कोरोना संक्रमित होकर मरने वालों का अंतिम संस्कार करा रहे हैं। बैंक ऑफ इंडिया से सेवानिवृत्त कैशियर सी. गणेश राव जिस तरह शाम पांच बजे से सभी मृतकों का अंतिम संस्कार होने तक डटे रहते हैं, देखकर अच्छे-अच्छों की रूह कांप जाती है। इसके बदले इन्हें एक रुपये भी नहीं मिलता। ये श्मशान घाट के पैसे से चाय तक नहीं पीते, बल्कि गरीबों की अपनी जेब से मदद भी करते हैं। भुइयांडीह स्थित स्वर्णरेखा बर्निंग घाट पर जब ये पहुंच जाते हैं, तो जिला प्रशासन भी निश्चिंत रहता है। शुरू में अंतिम संस्कार कराने को लेकर पुलिस को लाठीचार्ज तक करना पड़ा था।

68 वर्षीय राव बताते हैं कि जमशेदपुर में पहली बार चार जुलाई को दो कोरोना संक्रमित की मौत हुई थी। आसपास की बस्ती की महिलाएं, पुरुष, बच्चे घाट के पास जुट गए थे। पथराव भी हुआ। बस्तीवासियों की धमकी और कोरोना संक्रमण के डर से उनके यहां के सभी कर्मचारी भाग गए थे। समस्या हुई कि दाह संस्कार हो कैसे। जिला प्रशासन बिष्टुपुर स्थित पार्वती घाट से दो कर्मचारियों को लेकर आया, लेकिन वे भी शव को छूने से डर रहे थे। ऐसे में उन्होंने खुद इलेक्ट्रिक फर्नेस में दोनों शवों को डाला। इससे कर्मचारियों का हौसला भी बढ़ा कि इससे कुछ नहीं होता। इसके बाद तो सबकुछ अपने आप होने लगा। घाट में चार फर्नेस है। इसी बीच दो फर्नेस खराब हो गए, तो मेरे भी हाथ-पैर फूल गए। अंतिम संस्कार कराकर मैं रात को अपनी कार से कोलकाता निकल गया और सुबह-सुबह मिस्त्री लेकर पहुंच गया। दोपहर तक दोनों फर्नेस ठीक हो गए। सरकार से हमें कोई पैसा नहीं मिलता है। सबकुछ समाजसेवियों के भरोसे चल रहा है।

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सितंबर से 422 लोगों का हो चुका है अंतिम संस्कार

सी. गणेश राव ने बताया कि 22 सितंबर तक यहां 422 कोरोना संक्रमितों का अंतिम संस्कार हो चुका है। इन्हीं कार्यों की वजह से इस बार स्वतंत्रता दिवस समारोह में स्वास्थ्य मंत्री बन्ना गुप्ता ने इन्हें सम्मानित भी किया था। गणेश राव मास्क या पीपीई किट भी नहीं पहनते। बस दिखावे के लिए चेहरे पर एक रुमाल बांध लेते हैं। इनका कहना है कि मैं इस बीमारी को सर्दी-खांसी जैसा समझता हूं, लोगों ने हौवा बना दिया है। बस सावधान रहें, सचेत रहें, बेवजह डरे नहीं। मेरा अनुभव बताता है कि आधे से ज्यादा लोग डर या दहशत से मरे हैं।

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मेहर मदन से मिली प्रेरणा

गणेश राव बताते हैं कि उन्हें समाजसेवा की प्रेरणा पारसी समाजसेवी मेहर मदन (मेहरनोस माडेन) से मिली। वे भी बैंक ऑफ इंडिया के कर्मचारी थे। मेहर मदन के पिता स्व.एमडी मदन ने ही जमशेदपुर को-ऑपरेटिव कालेज व एमजीएम मेडिकल कालेज की स्थापना की थी। बहरहाल, उनके परिवार में दो बेटे व एक बेटी है। बेटी की शादी हो गई। बड़ा बेटा साकची में दवा का थोक विक्रेता है। जबकि छोटा बेटा 10 साल से अमेरिका में है। वह वहां सॉफ्टवेयर इंजीनियर है। श्मशान घाट की सेवा को वह ईश्वर की कृपा मानते हैं। वे दूसरों से भी कहते हैं कि आप आएं, सेवा करें, कुछ नहीं होगा। हर दिन कोरोना संक्रमितों के साथ रहने के बावजूद उन्हें कभी यह छू भी नहीं पाया। उन्हें किसी तरह की बीमारी नहीं है, लिहाजा आज तक कोई दवा नहीं ली। 60 वर्ष की उम्र तक 93 बार रक्तदान भी कर चुका हूं। राव एडीएल सोसाइटी व आंध्रा एसोसिएशन से भी जुड़े हैं। 2012 में बैंक से सेवानिवृत्त होने के बाद स्वर्णरेखा श्मशान घाट में सक्रिय हुए, जहां ये घाट प्रबंध समिति के संयुक्त सचिव हैं।


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