सरकारी शिक्षकों की फरियादः कोरोना काल में भी निभा रहे ड्यूटी, फिर भी हो रही उपेक्षा
Jharkhand Teachers Demand. झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष अरुण कुमार सिंह ने पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त तथा स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के पदाधिकारियों को पत्र लिखकर शिक्षकों की सुरक्षा की मांग की है। विस्तार से पढें।
जमशेदपुर, जासं। झारखंड में सरकारी स्कूलों के शिक्षकों के बिना सरकार व प्रशासन का कोई भी जनकल्याणकारी कार्य पूरा नहीं हो सकता। इसके बावजूद इनकी उपेक्षा होती है। कोरोना काल में भी ये शिक्षक अपनी ड्यूटी निभा रहे हैं। बावजूद इसके इन्हें जिला प्रशासन द्वारा सुरक्षा किट तक मुहैया नहीं कराया जाता है।
कोविड इंश्यूरेंस तक नहीं है। शिक्षा विभाग के पदाधिकारी तो अपने घरों में सिमट कर रह जाते हैं बस आदेश इधर से उधर करते हैं, लेकिन शिक्षकों के पास किसी भी परिस्थिति में आदेश का पालन करने के सिवा उनके पास कोई उपाय नहीं है। कोविड नियंत्रण कार्य में लगे होने के बावजूद उन्हें उचित सम्मान तक नहीं मिलता। पूर्वी सिंहभूम जिले की बात करें तो कोविड के सेकेंड वेब के नियंत्रण के लिए जिले के लगभग 800 शिक्षकों को विभिन्न कार्यो में लगाया गया है। इन्हें एक अदद सुरक्षा किट तक उपलब्ध नहीं कराया गया है। पिछले वर्ष एक शिक्षक संतोष लकड़ा की कोरोना से मौत हो गई थी, उसकी मुआवजे की संचिका अभी तक तक इधर से उधर ही घूम रही है। इन सब कारणों से शिक्षकों में असंतोष बढ़ता जा रहा है।
संघ ने ये रखी मांग
इस मामले को लेकर झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ के जिलाध्यक्ष अरुण कुमार सिंह ने पूर्वी सिंहभूम के उपायुक्त तथा स्कूली शिक्षा एवं साक्षरता विभाग के पदाधिकारियों को पत्र लिखकर शिक्षकों की सुरक्षा की मांग की है। पत्र में बताया गया है कि शिक्षकों का कोविड इंश्यूरेंस विभाग कराना सुनिश्चित करें। शिक्षक तो अपना दायित्व निभा रहे हैं, लेकिन विभाग इससे पीछे हट रहा है। यह अन्याय है। कोरोना से मृत शिक्षक संतोष लकड़ा के मुआवजे के लिए उनकी पत्नी दर दर की ठोकरे खा रही है। पत्र में कम से कम शिक्षकों को आवश्यक सामग्री उपलब्ध कराने की मांग की गई है। अखिल झारखंड प्राथमिक शिक्षक संघ के प्रदेश सलाहकार सुनील कुमार ने कहा कि शिक्षकों के बिना कोई भी यज्ञ पूरा नहीं हो सकता। जिला प्रशासन के पास उतना मैन पावर है ही नहीं। सब कार्य में शिक्षक ही लगाए जाते हैं, इसके बावजूद उनके साथ सौतेला व्यवहार किया जाता है। एक अदद सम्मान तक नहीं मिल पाता। यह शिक्षकों के लिए काफी पीड़ादायक है।