मुख्मत्री से लेकर सचिव तक नहीं बदल सके एमजीएम के हालात
मुख्यमंत्री ने खींचा था कायाकल्प का खाका, सचिव ने इस अस्पताल को बताया था नर्क से भी बदतर।
जमशेदपुर (अमित तिवारी)। कोल्हान के सबसे बड़े सरकारी अस्पताल महात्मा गांधी मेमोरियल (एमजीएम) मेडिकल कॉलेज संस्थान। यहां बीते चार साल में सीएम से लेकर स्वास्थ्य मंत्री, खाद्य-आपूर्ति मंत्री, जिला जज, प्रदेश महिला आयोग की चेयरमैन, स्वास्थ्य विभाग के तीन अलग-अलग अपर मुख्य सचिव, कोल्हान के कमिश्नर, डीसी, एडीएम सहित अन्य पदाधिकारी निरीक्षण करने आए हैं। लेकिन स्थिति जस की तस है। डॉक्टर मिलते है तो दवा नहीं और दवा मिलता है तो डॉक्टर नहीं। वर्षों पुराने ढर्रे पर यह अस्पताल चल रहा है। आए दिन इलाज के अभाव व लापरवाही की वजह से मरीज की मौत सुर्खियां बनती है। स्थिति यह है कि इतने बड़े अस्पताल में मलहम, पïट्टी भी मरीजों को नसीब नहीं होती। ऐसे में उन्हें बाहर से खरीद कर लाना पड़ता है। 5 अप्रैल 2015 को स्वास्थ्य मंत्री
स्वास्थ्य मंत्री रामचंद्र चंद्रवंशी ने कहा था कि नर्क से भी बदतर एमजीएम है, प्रदेश में ऐसा अस्पताल नहीं देखा। वह मंत्री बनने के बाद पहली बार यहां पहुंचे थे। इस दौरान वे शौचालय भी गए। वहां पर गंदगी व दुर्गंध देखकर कहा, अधीक्षक साहब अगर आपको यहां बैठा दिया जाए तो क्या करेंगे? वहीं पर एक शव देखकर उनके जुबान से निकल पड़ी 'अस्पताल है कि नर्क, समझ में नहीं आता।
30 जनवरी 2016 को सीएम
सीएम रघुवर दास ने तीन बिंदुओं पर फोकस रखा। इसमें एमजीएम अस्पताल में आधारभूत संरचना का विस्तार, मैनपावर की कमी और बैठक में लिए गए फैसलों को अमली जामा पहनाने का समय-सीमा। तकरीबन सभी विभागों में मशीनों और साजो-सामान की कमी बतायी गई थी जो अब भी बरकरार है। एमजीएम का कायाकल्प करने के साथ-साथ आठ विभागों में आधारभूत संरचना का विस्तार पर जोर दिया गया।
18 अप्रैल 2016 को मंत्री सरयू राय
खाद्य-आपूर्ति मंत्री सरयू राय ने एमजीएम अस्पताल का निरीक्षण किया था। इस दौरान उन्होंने अधीक्षक डॉ. एसएन झा को कई दिशा-निर्देश दिया था। ताकि मरीजों को बेहतर चिकित्सा मिल सकें। उस दौरान उन्होंने पुराने एजेंसियों को भी हटाने का निर्देश दिया था। अस्पताल में आउटसोर्स कर्मचारी समय-समय पर वेतन कम मिलने, पीएफ व मेडिकल सेवा को लेकर हड़ताल व विरोध प्रदर्शन करते रहे है।
31 अगस्त 2017 को महिला आयोग की चेयरमैन
प्रदेश महिला आयोग की चेरयमैन कल्याणी शरण ने सभी वार्डों की स्थिति देखीं थी। सुधार का भरोसा दिया। उन्होंने अधीक्षक से कहा था-आप एसी में बैठे हैं, अस्पताल में कितनी अव्यवस्था है? गंदगी है? देखा है आपने। वार्ड में पंखा नहीं चल रहा है। शौचालय से दुर्गंध आ रही थी। चेयरमैन ने अधीक्षक से कहा ऐसे सफाई होती है। स्थिति सुधारिए। हमलोग मदद के लिए आए हैं। कमी बताइए, उसे दूर किया जाएगा।
एक सिंतबर 2017 को स्वास्थ्य विभाग के प्रधान सचिव
एमजीएम में 164 बच्चों की मौत के बाद स्वास्थ्य विभाग के तत्कालिन अपर मुख्य सचिव सुधीर त्रिपाठी ने मौत की वजह आधारभूत संरचना का अभाव बताया था। उसे दूर करने के लिए एमजीएम में 20 बेड व खासमहल स्थित सदर अस्पताल में 10 बेड का एनआईसीयू खोलने को कहा था। अभी तक कहीं भी नहीं खुला। वहीं एमजीएम में डायटीशियन की भी बहाली नहीं हो सका है। अभी झारखंड सरकार के मुख्य सचिव है।
11 सिंतबर 2017 को कोल्हान आयुक्त
कोल्हान के तत्कालिन आयुक्त ब्रजमोहन कुमार ने देखा था कि इमरजेंसी में अव्यवस्था का आलम है। यहां न तो मरीजों के बेड पर चादर था और न ही बेहतर साफ-सफाई। ड्यूटी पर डॉक्टर भी नहीं मिले थे। एंबुलेंस खराब पड़ी हुई थी। कई दवाएं खत्म थी। इससे नाखुश होकर आयुक्त ने कहा था कि एमजीएम को अस्पताल नहीं, कबाडख़ाना बना रखा है। व्यवस्था में सुधार को लेकर उन्होंने एक बैठक भी बुलाई थी।
24 जुलाई 2018 को स्वास्थ्य विभाग की अपर मुख्य सचिव
स्वास्थ्य विभाग की तत्कालिन अपर मुख्य सचिव निधि खरे सभी चिकित्सकों से बातचीत की और खामियों को जाना। उन्होंने एक माह के अंदर नये भवन में सभी विभागों को शिफ्ट करने का निर्देश दिया था लेकिन अबतक नहीं हो सका है। एमजीएम को ई-हॉस्पिटल बनाने का भरोसा दिया था। बर्न यूनिट को विकसित करने की बात थी। अब स्थिति यह है कि बिना ड्रेसर के ही बर्न यूनिट चल रही है। अभी केंद्रीय गृह मंत्रालय में संयुक्त सचिव है।
13 दिसंबर 2018 को स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव
स्वास्थ्य विभाग के अपर मुख्य सचिव डॉ. नितिन मदन कुलकर्णी ने कहा कि शर्म कीजिए, ये मेडिकल कॉलेज का आईसीयू है। इससे अच्छा तो बाहर में मर जाना बेहतर है। आईसीयू में न तो वेटिंलेटर था और न ही एयर कंडीशन ठीक था। डॉक्टर व नर्सों की टीम भी नहीं थी। पूरे अस्पताल का निरीक्षण किया। एजेंसी के कार्यों से नाखुश दिखे और जल्द बदलने का निर्देश दिया। सुरक्षा एजेंसी को बदल दिया गया है।
एमजीएम की खामियां
- ओपीडी समय पर नहीं आते डॉक्टर।
- शाम में ओपीडी सीनियर डॉक्टर नहीं आते।
- 24 घंटे में सिर्फ एक बाद वार्ड में राउंड लेते हैं डॉक्टर।
- वार्ड में मौजूद नहीं होते डॉक्टर। मरीज की स्थिति गंभीर होने पर इमरजेंसी से बुलाना पड़ता। इसी क्रम में कई मरीजों की मौत भी हो जाती।
- साफ-सफाई की कमी। वार्डों से दुर्गंध आती।
- दवाओं की कमी। बाहर से खरीदना पड़ता दवा।
फैक्ट फाइल
- 3500 मरीज एमजीएम में भर्ती। उन्हें देखने के लिए सिर्फ 19 डॉक्टर ही है।
- 274 स्थायी नर्सों की बजाए सिर्फ 48 नर्स ही तैनात है।
- 109 वरीय रेजीडेंट के पद स्वीकृत। ड्यूटी कर रहे सिर्फ 19।
- 32 तकनीशियन की एमजीएम में जरूरत। ड्यूटी पर एक भी नहीं।