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सिविल डिफेंस ही फ्रंटलाइन वर्कर, हम कुछ नहीं; पढिए कही-अनकही खबरें Business Buzz

पिछले दिनों गृह मंत्रालय के अधीन आने वाले सिविल डिफेंस के 82 जवानों को बिना किसी जद्दोजहद के कोरोना की वैक्सीन मिली। इससे रेलवे के कुछ कर्मचारियों और यूनियन नेताओं को नागवार गुजरा। कहना है कि अच्छा सिविल डिफेंस ही फ्रंटलाइन वर्कर हम कुछ नहीं।

By Rakesh RanjanEdited By: Published: Wed, 19 May 2021 05:56 PM (IST)Updated: Wed, 19 May 2021 06:40 PM (IST)
सिविल डिफेंस ही फ्रंटलाइन वर्कर, हम कुछ नहीं; पढिए कही-अनकही खबरें Business Buzz
वैक्सीन की मारामारी है। सभी चाहते है कि उन्हें पहले वैक्सीन मिले।

जमशेदपुर, निर्मल। कोविड-19 में वैक्सीन की मारामारी है। सभी चाहते हैं कि उन्हें पहले वैक्सीन मिले। कोविन में स्लॉट बुक कर रहे हैं तो बुकिंग फूल है। ऐसे में जाएं तो जाएं कहां। लेकिन पिछले दिनों गृह मंत्रालय के अधीन आने वाले सिविल डिफेंस के 82 जवानों को बिना किसी जद्दोजहद के वैक्सीन मिली। यह रेलवे के कुछ कर्मचारियों और यूनियन नेताओं को नागवार गुजरा।

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कहना है कि अच्छा, सिविल डिफेंस ही फ्रंटलाइन वर्कर, हम कुछ नहीं। हम अपनी जान जोखिम में ड़ालकर आक्सीजन ट्रेन से लेकर मालगाड़ी और यात्री ट्रेन चलाएं। एसी मेंटेनेंस, टिकट निरीक्षक, पार्सल व टिकट बुकिंग भी करें लेकिन हम फ्रंटलाइन वर्कर नहीं हैं। जबकि हमारे 60 कर्मचारी कोविड से स्वर्ग सिधार गए। हालांकि, महाप्रबंधक और डीआरएम ने झारखंड-ओडिशा के मुख्य सचिव को पत्र भेजा, रेलवे कर्मचारियों को प्राथमिकता पर वैक्सीन देने की मांग की पर बात नहीं बनी इसलिए सिविल डिफेंस को वैक्सीन हजम नहीं हुई।

टाटा मोटर्स कर्मचारियों को मिले 50 लाख का मुआवजा

टाटा मोटर्स में भले ही ब्लॉक क्लोजर हो लेकिन पिछले दिनों तक कर्मचारियों को कोविड 19 महामारी में भी ड्यूटी पर बुलाकर काम कराया जा रहा है। इसके कारण कई कर्मचारी पॉजिटिव हुए, कुछ भी मौत भी संक्रमण के कारण हो गई। ऐसे में टेल्को वर्कर्स यूनियन के बर्खास्त उपाध्यक्ष आकश दुबे ने यह मांग उठाकर एक नई बहस छेड़ दी है। हालांकि टाटा मोटर्स में पहले से सामाजिक सुरक्षा के तहत कर्मचारियों को 60 से 70 लाख रुपये तक मिलते हैं लेकिन आकाश का तर्क है कि यदि कर्मचारी कोविड 19 से पॉजिटिव होकर मरते नहीं तो आराम से ड्यूटी करते और अपने परिवार का सहारा बने रहते। लेकिन कंपनी प्रबंधन ड्यूटी में बुलाकर उनके जान को जोखिम में ड़ाल रही है। इसलिए जिन कर्मचारियों की मौत कोविड 19 संक्रमण से हो रही है उन्हें कम से कम 50 लाख रुपये हर्जाने के रूप में मुआवजा मिलना ही चाहिए।

नियम तो है लेकिन क्रियान्वित करे कौन

फुटपाथ पर दुकान लगाने वाले स्ट्रीट वेंडरों के लिए कानून तो बहुत है लेकिन इसे क्रियान्वित कौन करे यह बड़ा सवाल है। नेशनल एसोसिएशन ऑफ स्ट्रीट वेंडर ऑफ इंडिया (नासवी) ने पिछले दिनों हेल्पलाइन नंबर जारी किया। सभी स्ट्रीट वेंडरों को हिदायत दी है कि यदि कोई पुलिस वाला दुकान लगाने के एवज में पैसे मांगे या उनके परेशान करें या कम पैसे देकर सामान ले तो इसकी शिकायत करें। लेकिन स्ट्रीट वेंडरों का कहना है कि पानी में रहकर मगरमच्छ से बैर कौन ले। सवाल उठता है कि केंद्र सरकार ने स्ट्रीट वेंडरों के लिए कई सारे कानून बनाए लेकिन इसे क्रियान्वित कौन करेगा। स्ट्रीट वेंडरों को हटाने से पहले उन्हें बसाना भी है और उनके लिए 2004 से ही कानून बना लेकिन स्ट्रीट वेंडरों को न उनका अधिकार मिला और न ही पहचान पत्र। 10-10 हजार रुपये देकर कोरम पूरा कर दिया गया है।

भाई जी घर मत आई, फोनवा में बतिया ली

भाई जी घर मत आई, बड़ जरूर काम बा ता फोनुवा में बतिया ली। टाटा वर्कर्स यूनियन के कुछ पदाधिकारियों ने कोविड से बचने के लिए इस वाक्य को गुरुमंत्र बना लिया है। प्रचंड बहुमत से चुनाव जीतने के बाद टुन्नू चौधरी सहित सभी पदाधिकारियों का जगह-जगह स्वागत सत्कार हुआ। कमेटी मेंबर से लेकर कर्मचारी तक अभिनंदन करने पहुंचे। लेकिन अध्यक्ष टुन्नू चौधरी सहित कुछ पदाधिकारी पॉजिटिव हुए तो बाकी पदाधिकारी भी कान खड़े हो गए। परिवार के बचाव के लिए होम आइसोलेशन हो लिए। पदाधिकारियों के ईद-गिर्द घूमने वाले कमेटी मेंबरों को भी साफ हिदायत दे दी गई है कि कुछ काम हैं तो भी मिलने की क्या जरूरत। फोन पर ही बता दें, हम संबधित अधिकारी से बात कर लेंगे। कोविड पॉजिटिव होने के डर से पदाधिकारियों ने दूरियां बढ़ा ली है। क्योंकि यूनियन कार्यालय भले ही बंद है लेकिन घर पहुंचने वाले भी कम नहीं।


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