मधुमेह, थैलेसीमिया, मोटापा से ग्रस्त बच्चों को भी कोरोना से खतरा नहीं, इनके शरीर में भी एंटीबॉडी
जेनेटिक रोग से जूझ रहे ये बच्चे कब कोरोना संक्रमित हुए उनके माता-पिता को पता भी नहीं चला। खेलते-कूदते ठीक हो गए। इस तरह के एक दर्जन से अधिक मामले आए सामने। इस तरह के मामले जमशेदपुर में लगातार बढ़ रहे हैं। लेकिन घबराने की जरूरत नहीं है।
अमित तिवारी, जमशेदपुर। कोरोना से होनेवाली मौतों में सबसे अधिक वैसे मरीज शामिल हैं जो पूर्व से मधुमेह, मोटापा, हार्ट, ब्लड प्रेशर, थैलेसीमिया सहित अन्य बीमारी से ग्रस्त थे। लगभग 80 प्रतिशत को-मार्बिड के मरीज शामिल हैं। लेकिन, बच्चों के साथ ऐसा नहीं है। बच्चों में होनेवाली मधुमेह टाइप-वन, थैलेसीमिया, मोटापा, सफेद रोग सहित अन्य जेनेटिक (आनुवांशिक) बीमारी के बावजूद उन्हें कोरोना से कोई खतरा नहीं है।
यहां तक कि उन्हें यह भी पता नहीं चला कि वे कब संक्रमित हुए और कब ठीक हो गए। खेलते-कूदते पूरी तरह से स्वस्थ हो गए। अब जब एंटीबॉडी जांच हो रही है पता चल रहा है कि उनके शरीर में एंटीबॉडी विकसित कर गया है। यानी वे पूर्व में संक्रमित हो चुके हैं। इसके बाद अब इन बच्चों को एमआइएससी (मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी) हो रही, जिसे पोस्ट कोविड भी कहा जाता है। इस तरह के मामले जमशेदपुर में लगातार बढ़ रहे हैं। लेकिन घबराने की जरूरत नहीं है। दूसरी लहर के बाद अभी तक 20 से अधिक एमआइएससी (मल्टी सिस्टम इंफ्लेमेटरी) के मरीज सामने आ चुके हैं, जिनमें नौ मरीज वैसे पाए गए हैं, जो पूर्व से जेनेटिक बीमारी (मधुमेह टाइप-1, थैलेसीमिया, मोटोपा, हीमोफीलिया, सफेद दाग, डाउन सिंड्रोम ) से ग्रस्त थे। जब कोरोना पीक पर था तो ये बच्चे भी संक्रमित हुए लेकिन इन्हें थोड़ा भी महसूस नहीं हुआ। सामान्य बच्चों की तरह इन्हें भी कोई लक्षण सामने नहीं आया। जिसके कारण इनके माता-पिता को भी पता नहीं चला।
अभी तक एमआइएसी के सभी बच्चे हुए स्वस्थ
दूसरी लहर के बाद टाटा मुख्य अस्पताल (टीएमएच) में एमआइएसी के नौ, मर्सी अस्पताल में छह, आदित्यपुर ईएसआइसी अस्पताल में चार मामले सामने आ चुके हैं। इसके अलावे कई निजी चिकित्सकों के क्लीनिक में भी एमआइएसी के मरीज पहुंचे लेकिन अभी तक सभी मरीज स्वस्थ हो चुके हैं। ऐसे में किसी भी बच्चों को घबराने की जरूरत नहीं है।
बच्चों में होने वाली प्रमुख जेनेटिक बीमारी
- डाउन सिंड्रोम
- सिस्टिक फाइब्रोसिस
- कंजेनिटल एड्रिनल हाइपरलेशिया
- एपर्ट सिंड्रोम
- एंजेलमैन सिंड्रोम
- आंक्यलोसिंग स्पॉन्डिलाइटिस
- मस्कुलर डिस्ट्रॉफी
- एहलर्स डैमलॉस सिंड्रोम
- हेमोक्रोमैटोसिस
- हीमोफीलिया
- मार्फन सिंड्रोम
- न्यूरोफाइब्रोमैटोसिस
- थैलेसीमिया
बच्चों में विकसित नहीं होता रेसप्टर एसीई-2
बच्चों में रेसप्टर एसीई-2 (एंजियोटेनसिन कंवर्टिन एंजाइम) विकसित नहीं होता है, जिसके कारण कोरोना वायरस उनके फेफड़े को नुकसान नहीं पहुंचा पाता है। वहीं, बड़ों में एसीई-2 पूरी तरह से विकसित हो जाता है जो वायरस को चुंबक की तरह खीेंच लेता और उससे फेफड़ा तेजी से डैमेज होने लगता है। जिसके कारण सांस की परेशानी शुरू हो जाती है और ऑक्सीजन लेवल गिरने लगता है। इस दौरान मरीज की मौत भी हो जाती है।
2253 बच्चों में सिर्फ दो की हुई मौत
कोरोना से अभी तक कुल दो हजार 253 बच्चे संक्रमित हुए हैं। इसमें सिर्फ दो बच्चों की ही मौत हुई है। जबकि उम्र 15 साल के बाद अभी तक कुल 1052 की मौत हुई है।
ये कहते डाॅक्टर
सामान्य बच्चों की तरह जेनेटिक रोग से ग्रस्त बच्चों को भी कोरोना से ज्यादा खतरा नहीं है लेकिन सावधानी जरूरी है। कोरोना की पहली व दूसरी लहर में कई जेनेटिक रोग से ग्रस्त बच्चे संक्रमित हुए हैं ठीक भी हो गए। अभी एंटीबॉडी जांच कराई जा रही है तो उनके शरीर में एंटीबॉडी विकसित मिल रहा है।
- डॉ. शुभोजीत बनर्जी, शिशु रोग विशेषज्ञ, मर्सी अस्पताल।