सिस्टम ने छीना निवाला, कुदरत ने रोशनी : झारखंड के इस इलाके में बच्चे हो रहे अंधापन के शिकार
झारखंड के पूर्वी सिंहभूम जिले के एक गांव में कम उम्र में ही बच्चों की रोशनी छिन रही है। तेजी से नाइट विजन रतौंधी और मोतियाबिंद की समस्याएं बढ़ रही हैं।
जमशेदपुर, अमित तिवारी। अंत्योदय योजना के तहत समाज के अंतिम व्यक्ति तक खाद्यान उपलब्ध कराने के सिस्टम में कई विसंगतियां हैं। जिससे पनपता कुपोषण बच्चों को अंधा बना रहा है। इसका प्रत्यक्ष उदाहरण बोड़ाम प्रखंड के पोटकाडीह गांव निवासी विनोद महाली के छह वर्षीय पुत्र प्रकाश महाली को दोनों आंखों की रोशनी चली जाना है। इस कारण से उसका चलना-फिरना बंद हो गया है।
पीडि़त की मां मोकुल महाली बताती हैं कि जन्म के दो साल तक प्रकाश को सबकुछ अच्छी तरह से दिखाई देता था, लेकिन बाद धीरे-धीरे आंखों की रोशनी होती गई। अब उसे बिल्कुल दिखाई नहीं देता। साथ ही उसका शरीर भी फूलता जा रहा है। उनके पास इलाज कराने को पैसा नहीं हैं। कुछ समझ नहीं आता कि जाए तो जाए कहां? मोकुली भी बीमार रहती हैं। वो शारीरिक रूप से काफी कमजोर भी हैं। इसी तरह, पोटका किबाघमारा गांव निवासी जगन्नाथ मुर्मू सात साल की उम्र में मोतियाबिंद से ग्रस्त हो गया था। वह भी शारीरिक रूप से काफी कमजोर है।
विटामिन की कमी छीन रही आंखों की रोशनी
छह साल के प्रकाश की आंखों की चली गई रोशनी। साथ में पीड़ा प्रकट करती हुई मां।
कुपोषण व खून की कमी का असर बच्चों के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। इन दिनों बच्चों में रतौंधी, नाइट विजन, आंखों में सूखापन, मोतियाबिंद, आंखों के पर्दे का हेमरेज, नस में सूजन सहित अन्य समस्याएं तेजी से बढ़ी हैं। सिर्फ नाइट विजन की समस्या से देश में 8.5 फीसद बच्चे ग्रस्त हैं। नाइट विजन में बच्चों को शाम होते ही दिखाई देना कम होने लगता है। इस बीमारी का मुख्य कारण विटामीन-ए की कमी है। विटामीन-बी की कमी से विजन, नर्व, नस में सूजन और रोशनी तक जाने का खतरा रहता है। विटामीन-सी की वजह से आंखों के पर्दे का हेमरेज होता है।
इस तरह की समस्या से बढ़ रही बीमारियां
गर्भवती को संपूर्ण आहार नहीं मिलने से इसका असर जन्म लेने वाले बच्चों पर पड़ता है। बच्चों को मां का दूध नहीं मिलने से विटामीन की कमी होती है और यहीं से समस्या शुरू हो जाती है। बच्चों में दो तरह का मोतियाबिंद होता है। एक जन्मजात मोतियाबिंद व दूसरा जन्म के बाद। इसका मुख्य कारण पौष्टिक आहार की कमी, इंफेक्शन सहित अन्य कारण शामिल हैं।
सही समय पर इलाज से लौटाई जा सकती रोशनी
जन्मजात मोतियाबिंद का इलाज सर्जरी से संभव है। वह भी जन्म के छह सप्ताह के बाद से लेकर दो माह तक की ही उम्र में। उसके बाद करने से पूरी तरह से रोशनी आने की उम्मीद कम हो जाती है। वहीं जिन बच्चों में विटामीन-ए की कमी होता है उसे दवा देकर दूर किया जाता है।
कुपोषण और एनीमिया का गहरा प्रभाव
बच्चों की आंखों पर कुपोषण व एनीमिया का गहरा प्रभाव पड़ता है। इससे संबंधित बीमारियां तेजी से बढ़ी हैं। इसके प्रति लोगों को जागरूक होने की जरूरत है। आंखों की रोशनी का विकास सात साल तक ही होता है। इसलिए सही समय पर इलाज जरूरी है।
- डॉ. कुमार साकेत, नेत्र रोग विशेषज्ञ।