चांडिल डैम के विस्थापितों ने कहा- चुनाव से पहले वादे पूरा करे सरकार
चांडिल डैम के विस्थापित राज्य सरकार से नाराज हैं। उनका मानना है कि चुनाव आते ही नेता सक्रिय हो जाते हैं। बाद में कोई उनकी समस्याएं नहीं सुनता है।
जागरण संवाददाता, जमशेदपुर : सुवर्णरेखा बहुउद्देशीय परियोजना के तहत निर्मित चांडिल डैम के विस्थापित आज भी हक और अधिकार की लड़ाई लड़ रहे हैं। डैम निर्माण के 40 वर्ष बीतने के बाद उन्हें राज्य सरकार से घोषित मुआवजा व पुनर्वास पैकेज नहीं मिला है। इससे विस्थापित आहत हैं।
विस्थापित बोनू सिंह का कहना है कि प्रत्येक विस्थापित परिवार को 25 लाख मुआवजा राशि दिलाने की बात कही गई थी। लेकिन ऐसा नहीं हुआ। ईचागढ़ समेत दर्जनों गांव बरसात में आज भी डैम के पानी में डूब जाते हैं। सियासी दलों को विस्थापितों की भावना से नहीं खेलना चाहिए। उन्हें उनका हक मिलना चाहिए। यहीं के विस्थापित अंबिका यादव कहते हैं कि सियासी पार्टियों को विस्थापितों की पीड़ा से कोई सरोकार नहीं है। चुनाव के समय हर कोई इनकी बात करता है। बाद में कोई पूछने भी नहीं आता है। राज्य की सरकार विस्थापितों को हक और अधिकार नहीं देना चाहती है। राज्य में कई प्रकार की पुनर्वास नीतियां बनाकर राज्य सरकार ने विस्थापितों को उलझा दिया है। इस क्षेत्र में विस्थापितों की लड़ाई लड़ने वाले कपूर बागी कहते हैं कि यहां के विस्थापितों की जिंदगी समस्याओं के मकड़जाल में उलझी है। कोई उनकी आवाज सदन में नहीं उठा रहा है। चुनाव के समय विस्थापितों से किए गए वादे पूरे होने चाहिए। सरकार पहले सभी पीड़ितों को संपूर्ण मुआवजा दे। उसके बाद डैम का जलस्तर बढ़ाए। यदि ऐसा नहीं हुआ तो विस्थापित सड़क पर उतर कर राज्य सरकार के खिलाफ आंदोलन के लिए बाध्य होंगे। विस्थापितों का कहना है कि चुनाव आते ही जनप्रतिनिधियों को उनकी समस्याएं याद आने लगती हैं। चुनाव बीत जाने के बाद कोई उनकी हाल पूछने नहीं आता है। विस्थापन ने लोगों की जिंदगी बदरंग कर दी है।