पोषाहार राशि न मानदेय, कैसे चलाएं आंगनबाड़ी
प्रखंड की आंगनबाड़ी कर्मियों ने शुक्रवार को सेविका सहायिका संघ की जिलाध्यक्ष पुष्पा महतो की अगुवाई में अपनी मांगों को लेकर सीओ सह प्रभारी सीडीपीओ जयवंती देवगम को ज्ञापन सौंपा..
संवाद सूत्र, चाकुलिया : प्रखंड की आंगनबाड़ी कर्मियों ने शुक्रवार को सेविका सहायिका संघ की जिलाध्यक्ष पुष्पा महतो की अगुवाई में अपनी मांगों को लेकर सीओ सह प्रभारी सीडीपीओ जयवंती देवगम को ज्ञापन सौंपा। इसमें कहा गया है कि विभाग के आदेशानुसार एक अप्रैल से आंगनबाड़ी केंद्रों का संचालन किया जा रहा है। लेकिन अब तक उन्हें तीन महीने की पोषाहार राशि तथा पांच महीने का मानदेय नहीं मिला है। पोषाहार राशि एवं मानदेय नहीं मिलने के कारण अब केंद्र का संचालन करना मुश्किल हो गया है। सेविकाओं का कहना है कि पोषाहार वितरण के लिए जिस दुकान से हम सामान लेते थे उसने भी अब उधार देना बंद कर दिया है। ऐसी स्थिति में जबकि सेविका सहायिकाओं के लिए परिवार का भरण पोषण करना मुश्किल है, विभाग द्वारा मोबाइल खरीद कर पोषण ट्रैकर में डाटा एंट्री करने का फरमान जारी किया गया है। वर्तमान परिस्थिति में दस हजार रुपये का मोबाइल खरीदना संभव नहीं है। जब तक विभाग मोबाइल मुहैया नहीं करेगा तब तक काम करना संभव नहीं है। सेविकाओं की समस्या से अवगत होने के बाद सीओ ने कहा कि इस संबंध में वे जिला समाज कल्याण पदाधिकारी से बात करेंगी। लेकिन यह सिर्फ यहां की समस्या नहीं है। उन्होंने कहा कि जब सरकारी तंत्र के आप अंग हैं तो प्रयास कीजिए कि विभाग के निर्देशों का पालन सुनिश्चित हो। ज्ञापन सौंपने वालों में भानुमति महतो, सुभद्रा दास, प्रभा घोष एवं मीरा दास शामिल थीं। स्कूल-कॉलेज बंद तो आंगनबाड़ी खुले क्यों : बेहद खतरनाक तरीके से राज्य में फैल रही कोरोना वायरस की दूसरी लहर से बचाव एवं रोकथाम के लिए शासन-प्रशासन तमाम प्रयास कर रहा है। बच्चों के स्कूल- कॉलेज समेत अनेक संस्थान बंद करा दिए गए हैं। जो संस्थान खुले हैं उन पर भी कई तरह की बंदिशें लागू है। सार्वजनिक स्थलों पर धारा 144 लागू कर दिया गया है। रात 8 बजे से सुबह 7 बजे तक लॉकडाउन का पालन कराया जा रहा है। अति आवश्यक कार्य नहीं रहने पर घर से निकलने की मनाही है, लेकिन ऐसे माहौल में भी नौनिहालों के आंगनबाड़ी केंद्र खुले हुए हैं। सरकार के इस निर्णय को लेकर कई तरह के सवाल खड़े किए जा रहे हैं। सबसे अहम सवाल यह पूछा जा रहा है? कि जब सरकार खुद ही 10 वर्ष से कम उम्र के बच्चों तथा 60 वर्ष से अधिक उम्र के बुजुर्गों को घर से बाहर नहीं निकलने की नसीहत दे रही है? तो ऐसे में 3 से 6 वर्ष के बच्चों को आंगनबाड़ी केंद्र बुलाने का क्या मतलब है? क्या आंगनबाड़ी आने वाले बच्चों को कोरोना वायरस अपनी गिरफ्त में नहीं लेगा? क्या विभाग इनकी सेहत के साथ खिलवाड़ नहीं कर रहा है? विदित हो कि गत वर्ष मार्च महीने में लॉकडाउन होने के साथ ही सभी आंगनबाड़ी केंद्रों को बंद कर दिया गया था। इस दौरान बच्चों को पौष्टिक आहार के लिए सूखा राशन देने की व्यवस्था की गई थी। लगभग साल भर तक यह सिस्टम चला। पिछले महीने के अंत में सरकार ने निर्णय लिया था कि एक अप्रैल से आंगनबाड़ी केंद्र खोल दिए जाएंगे। उस समय कोविड-19 के घटते प्रभाव को देखते हुए शायद सरकार ने यह निर्णय तब लिया था। इसके साथ ही आंगनबाड़ी केंद्र संचालन से संबंधित गाइडलाइन भी जारी किया गया था। लेकिन आंगनबाड़ी केंद्रों की जो हालत है? उसमें शारीरिक दूरी एवं अन्य गाइडलाइन का पालन करना संभव ही नहीं है। दूसरी तरफ कोरोना का जानलेवा वायरस तेजी से पांव पसार रहा है। नाम नहीं छापने की शर्त पर एक सेविका ने कहा कि आंगनबाड़ी केंद्र के भवन में इतनी जगह नहीं होती कि बच्चों को दो गज की दूरी पर बिठाकर खिचड़ी खिलाया जा सके। वर्तमान स्थिति में बच्चों में संक्रमण का भय हमेशा बना हुआ है? आंगनबाड़ी केंद्रों के खुले रहने का मामला वरीय अधिकारियों के संज्ञान में है। आंगनबाड़ी खोलने का निर्णय सरकार के स्तर से हुआ है। लिहाजा बंद करने से संबंधित निर्णय भी सरकार के स्तर से ही होना है।
- जयवंती देवगम, सीओ सह प्रभारी सीडीपीओ, चाकुलिया।